Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं
स्वातन्त्र्य है- भौतिकवादी समाजवाद की कुढ़न नहीं । इसमें व्यवस्था है, श्रद्धा है, आस्था है । क्योंकि भौतिकवादी तार्किक दर्शन की भाँति सबका खण्डन मात्र नहीं है या यह मार्क्सवाद का दिमागी पुलाव नहीं, जो दैशिक सीमाओं में फँसकर आगे नहीं बढ़ सकता । यह भारतीय अध्यात्मवाद है जहाँ आकर सारी मान्यताओं के त्याग के बाद अध्यात्म के राह का अनुगमन कर सकता है । इसको मनुष्य पा सकता है, इससे मनुष्य बदला जा सकता है, इससे समाज बदला जा सकता है और इसमें दो राय नहीं कि बुद्ध की सामाजिक तथा वैयक्तिक व्यवस्था भौतिकवाद या समाजवादी व्यवस्था तथा प्रजातन्त्रात्मक विचार स्वातन्त्र्य और स्वनियन्त्रित अध्यात्मशासन की व्यवस्था का विचित्र संयोजन है जिसे समझने की जरूरत है। उस पर भाषण देकर नहीं पहुँचा जा सकता । कर्म की आवश्यकता है । कहा भी है
परिसंवाद - २
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जयति सुखराज एकः कारणरहितः सदोदितो जगताम् । च निगदनसमये वचनदरिद्रो बभूव सर्वज्ञः ॥
यस्य
( तत्त्वसिद्धिः का मङ्गलाचरण )
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