Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
View full book text
________________
वि० सं० ३१०-३३६वर्ष ।
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
सूरिजी ने कर्मा को दीक्षा देकर उसका नाम धर्मविशाल रख दिया था। मुनि धर्मविशाल ने सूरिजी की विनय भक्ति कर जैनागमों के ज्ञान का अध्ययन कर लिया । इतना ही क्यों पर उस समय के वर्तमान साहित्य व्याकरण न्याय काव्य तर्क छन्द ज्योतिष एवं अष्टांग महानिमित्तादि सर्वशास्त्रों का पारगामी होगया सूरिजी महाराज ने एक समय विहार करते हुये पद्मावती नगरी में पदार्पण किया। वहाँ के श्रीसंघ ने सूरिजी का सुन्दर स्वागत किया सूरिजी का व्याख्यान हमेशा हो रहा था । एक दिन के व्याख्यान में पुनीत तीर्थ श्रीशत्रुजय का वर्णन आया जिसको सूरिजी ने इस प्रकार प्रतिपादन किया कि उसी सभा में प्र.ग्वटवंशीय शाह रावल ने प्रार्थना की कि पूज्यवर ! श्राप यहाँ विराजें मेरा विचार तीर्थ यात्रार्थ संघ निकालने का है। सूरिजी ने कहा 'जहासुखम' रावल ने श्रीसंघ की अनुमति लेकर संघ की तैयारियें करनी शुरू करदों : श्रामत्रण पत्रिकायें भेज कर बहुत दूर दूर से संघ को बुलाया । इस संघ में कई चार हजार साधुसाध्वी और सवा लक्ष यात्रीगण की संख्या थी। आचार्यश्री के नायकत्व में संघपति रावल ने संघ निकाल कर अनंत पुण्य संचय किया। इस संघ में शाह रावल ने नौ लक्ष द्रव्य व्यय किया । कमशः रास्ते में जितने तीर्थ आये सब यात्रा पूजा कि । जिर्णोद्धार और गरीबों की सहायता में खूब धन व्यय किया।
संघ ने तीर्थ पर जाकर यात्रा पूजा प्रभावना साधर्मीवात्सल्य कर लाभ प्राप्त किया कई मुनियों के साथ संघ लौट कर वापिस श्रागया और सूरिजी कच्छ, सिन्ध, पांचाल श्रादि प्रदेश में विहार करते हस्तनापुर पहुँचे । वहाँ से तप्तभट्ट गोत्रिय शाह नन्दा के निकाले हुए सम्मेत शिखर तीर्थ का संघ के साथ पूर्व के तमाम तीर्थों की यात्रा की वहाँ से लौटकर पुनः हस्तनापुर पधारे । वह चर्तुमास सूरिजी का हत्तनापुर में ही हुआ। सूरिजी के विराजने से धर्म की अच्छी प्रभावना हुई । बाद चर्तुमास के विहार करते हुये मथुरा सोरीपर आदि नगरों में होते हुये पुनः मरुधर में पधारे। जब सूरिजी शाकम्भरी नगरी में पधारे तो आपके शरीर में अकस्मात वेदना हो आई । मृरिजी ने शाकम्भरी में मुनि धर्मविशाल को अपने पद पर आचार्य बनाकर आपका नाम कक्कसूरि रख दिया और आपने अनशनत्रत धारण कर लिया और पंच दिन में ही आप समाधि के साथ स्वर्ग पधार गये ।
आचार्य श्री के शासन में भावुकों की दीक्षा १-सोपार पट्टन के बलाहागौ० शाहदेदा ने सूरिजी के पास दीक्षा ली २-सेवानी के बाप्पनाग शाहपुनड़ ने , ३--देवपट्टन के भूरिंगौ शाहनाथा ने ४-बानपुर के भाद्रगौ. शाहगुणपाल ने ५-कोटपुर के आदित्यनाग शाहसहजपाल ६- पुनोली हे सुचंतिगौ० शाहदेहल ७-प्रापव के श्रेष्टिगौ० शाहपेथा ८-शौर्यपुर के चिचटगो० शाहकल्हा ने , ९-चक्रपुर के क्षत्रिय कु. शाहगंगा
१८-सोतावा के ब्राह्मण शाहदेवा ने ७६०
[ शाकम्भरी नगरी में सूरिजी का स्वर्गवास
IA AE EArrar TET
m
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org