Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य यक्षदेवसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ७१०-७३६
लाभ उठाया और श्री भगवतीजी सूत्र बड़े ही श्रानन्द से सुना । इतना ही क्यों पर आस पास के नगरों के लोग भी बहुत संख्या में श्राये थे ! उन्होंने श्री भगवतीजी सूत्र सुनकर अपने जीवन को सफल बनाया। क्यों कि उन लोगों को इस प्रकार का सुश्रवसर मिलना कहाँ सुलभ था। सूरिजी के विराजने से केवल वीरपुर के लोगों को ही नहीं पर सिन्ध प्रान्त वालों को बड़ा ही लाभ मिला ।
सूरिजी माई के एक सुपूत पुत्र थे । माता पिता के करजा को अदा करने को कुछ अर्सा तक सिन्ध में विहार किया । और सर्वत्र धूमधूम कर जैन धर्म का खूब प्रचार बढ़ाया
जिस समय आचार्य श्री सिन्ध में विराजमान थे उस समय देवी सच्चायिका सूरिजी के दर्शन करने को आई थी। उसने प्रार्थना की कि प्रभो ! आप एक बार उपकेशपुर शीघ्र पधारें आपको बड़ा भारी लाभ होने वाला है । और इस कार्य के लिये ही मैं आपकी सेवा मे हाजर हुई हू ?
सूरिजी ने कहा देवीजी उपकेशपुर में ऐसा कौनसा लाभ होने वाला है ? कारण कि मेरा विचार पांचाल में होकर पूर्व देश की यात्रा करने का है। फिर जैसी आपकी इच्छा |
देवी-पूयवर ! पांचाल और पूर्व में श्राप फिर भी विहार कर सकते हो पर इस समय तो आपको उपकेशपुर ही पधारना चाहिये ।
सूरिजी ने सोचा कि देवी की जब इतनी आग्रह है तो वहाँ कोई लाभ होने वाला ही होगा । आपश्री नेफरमा दिया कि ठीक है देवीजी क्षेत्र स्पर्शना होगा तो मैं मरूधर की ओर ही विहार करूँगा । बस देवी तो सूरिजी को वंदन करके चली गई और सूरिजी ने थोड़े ही समय में मरुधर की ओर विहार कर दिया और क्रमशः विहार करते उपकेशपुर के नजदीक पधार भी गये ।
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इधर पूर्व में आभापुरी नगरी का कर्माशाह एक संघ लेकर उकेशपुर भगवान महावीर के दर्शन एवं देवी सचायिका की यात्रा के लिये आया था । शाह कर्मा ने स्थावर तीर्थ के साथ जंगम तीर्थ अर्थात् श्राचार्य यदेवसूरि के दर्शन किये । आचार्यश्री ने एक दिन व्याख्यान में ऐसा वैराग्य का उपकेश दिया कि संघपति कर्मा ने अपने ज्येष्ठ पुत्र को घर का भार सौंप कर सूरिजी के पास दीक्षा लेने को तैयार होगया । आपके अनुकरण रूप १७ नारी और १३ पुरुषों ने भी निश्चय कर लिया एवं सब ३१ मुमुक्षुओं को सूरिजी ने दीक्षा दी। उसी रात्रि में देवी सच्चायिका ने सूरिजी को बन्दन कर अर्ज की कि क्यों पूज्यवर ! उपकेशपुर पाधारने से आपको लाभ हुआ है न ? आपके कर कमलों से ३१ भावुकों का उद्धार हुआ। जिसमें कर्मा तो एक शासन का उद्धारक ही होगा ।
सूरिजी ने कहा देवीजी ! भला कहीं श्रापका कहना कभी व्यर्थ जाता है; आप तो इस गच्छ की शुभचिन्तका हैं और आपकी सहायता से ही इस गच्छ की दिन व दिन वृद्धि हुई है । देवीजी आप खूब पुन्य संचय कर रही हो | आचार्य रत्नप्रभसूरि से श्राज पर्यन्त जितने आचार्य हुये हैं आपने सब की सेवा की है और देवता के अवसर सब श्राचार्यों ने आपको धर्मलाभ दिया है और आशा है कि भविष्य के लिये भी आप इसी प्रकार करती रहेंगी । देवी ने कहा पूज्यवर ! आचार्य रत्नप्रभसूरि का मेरे पर स्त्रीम उपकार हुआ है कि मैं इस भव में तो क्या पर भवोंभव में भूल नहीं सकती हूँ। मैं व्यर्थ घोर पातक संचय कर रही थी जिससे छुड़ा कर जैनधर्म की उपासिका बनाई। मैं आप लोगों की जितनी सेवा करती हूँ इसमें मैं अपना अहोभाग्य समझती हूँ इत्यादि बातें होने के बाद देवी सूरिजी को वन्दन कर चली गई ।
उपकेशपुर के लिये देवी की विनति ]
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