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णमोत्थूणं समणस्स भगवओ महावीरस्स
गणधर भगवत्सुधर्मस्वामि प्रणीत
भगवती सूत्र
शतक १८
गाहा - १
१ पढमे २ विसाह ३ मायंदिए य ४ पाणाइवाय ५ असुरे य । ६ गुल ७ केवलि ८ अणगारे ९ भविए तह १० सोमिलद्वारसे ॥
भावार्थ - जीवादि के विषय में प्रथम अप्रथम आदि भावों का प्रतिपादक प्रथम उद्देशक है । विशाखा नगरी में श्रमण भगवान् महावीर पधारे, इस विष
क दूसरा उद्देशक है | माकन्दी पुत्र अनगार की पृच्छारूप तीसरा उद्देशक है । प्राणातिपातादि पाप और इनकी विरति विषयक चौथा उद्देशक है। असुरकुमार देव की वक्तव्यता का पांचवां उद्देशक है। गुड़ आदि के वर्णादि विषयक छठा उद्देशक है । केवलज्ञानी के विषय में अन्यतीर्थियों के मन्तव्य विषयक सातवां उद्देशक है । अनगार-क्रिया सम्बन्धी पृच्छा का आठवाँ उद्देशक है । भविक द्रव्य नैरयिक आदि विषयक नौवाँ उद्देशक है और सोमिल ब्राह्मण के प्रश्न युक्त दसवाँ उद्देशक है । इस प्रकार इस अठारहवें शतक में बस उद्देशक हैं ।
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