Book Title: Bhadrabahu Samhita
Author(s): Bhadrabahuswami, A S Gopani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 16
________________ बाबू श्री बहादुर सिंहजी-स्सरणाञ्जलि वेनाथी तद्दन विमुख रहेता हता. तेमने शाख मात्र सारा वाचननो भने कलामयवस्तुओ जोवा-संग्रहवानो हतो.ज्यारे जुओ त्यारे, तेओ पोतानी गादी उपर बेठा बेठा साहित्य, इतिहास, स्थापत्य, चित्र, विज्ञान, भूगोल के भूगर्भविद्याने लगता सामयिको के पुस्तको वाचता ज सदा देखाता हता. पोताना एका विशिष्ट वाचनना शोखने लीधे तेओ इंग्रेजी, बंगाली, हिंदी, गुजराती आदिमां प्रकट थता उच्च कोटिना, उक्त विषयोने लगता विविध प्रकारनां सामयिक पत्रो भने जर्नस्स् आदि नियमित मगावता रहेता हता. आर्ट, आर्किऑलॉजी, एपीग्राफी, न्युमिमटिक, ज्योग्राफी, आइकोनोग्राफी, हिस्टरी अने माइनिंग आदि विषयोना पुस्तकोनी तेमणे पोतानी पासे एक सारी सरखी लाईब्रेरीज बनावी लीधी हती. तेओ खभावे एकान्तप्रिय अने अल्पभाषी हता. नकामी वातो करवा तरफ के गप्पां सप्पा मारवा तरफ तेमने बहु ज भभाव हतो. पोताना व्यावसायिक व्यवहारनी के विशाळ कारभारनी बाबतोमा पण तेओ बहु ज मितभाषी हता. परंतु ज्यारे तेमना प्रिय विषयोनी-जेवा के स्थापत्य, इतिहास, चित्र, शिल्प आदिनी-चर्चा जो नीकळी होय तो तेमा तेओ एटला निमम थई जता के कलाको ना कलाको वही जता, तो पण तेओ तेथी थाकता नहीं के कंटाळता नहिं. तेमनी बुद्धि अत्यंत तीक्ष्ण हती. कोई पण वस्तुने समजवामां के तेनो मर्म पकडवामां तेमने कशी वार न लागती. विज्ञान अने तत्त्वज्ञाननी गंभीर बाबतो पण तेओ सारी पेठे समाजी शकता हता अने तेमनुं मनन करी तेमने पचावी शकता हता. तर्क अने दलीलमा तेओ म्होटा म्होटा कायदाशास्त्रीयोने पण आंटी देता. तेम ज गमे तेवो चालाक माणस पण तेमने पोतानी चालाकीथी चकित के मुग्ध बनावी शके तेम न हतुं. पोताना सिद्धान्त के विचारमा तेओ खूब ज मक्कम रहेवानी प्रकृतिना हता. एक वार विचार नक्की कर्या पछी अने कोई कार्यनो स्वीकार कर्या पछी तेमाथी चलित थवानुं तेओ बिल्कुल पसंद करता नहि. व्यवहारमा तेओ बहुज प्रामाणिक रहेवानी वृत्तिवाळा हता, बीजा बीजा धनवानोनी माफक व्यापारमा दगा फटका के साच-झूठ करीने धन मेळववानी तृष्णा तेमने यत्किंचित् पण थती न हती. तेमनी आवी व्यावहारिक प्रामाणिकताने लक्षीने इंग्लेंडनी मर्केन्टाईल बेंकनी डायरेक्टरोनी बॉडे पोतानी कलकत्ता-शाखानी बॉर्डमां, एक डायरेक्टर थवा माटे तेमने खास विनंति करी हती के जे मान ए पहेलां कोई पण हिंदुस्थानी व्यापारीने मळ्यु होतुं. प्रतिभा अने प्रामाणिकता साथे तेमनामां योजनाशक्ति पण घणी उच्च प्रकारनी हती. तेमणे पोतानी ज स्वतंत्र बुद्धि अने कार्य कुशळता द्वारा एक तरफ पोतानी घणी मोटी जमीनदारीनी अने बीजी तरफ कोलीयारी विगेरे माईनींगना उद्योगनी जे सुव्यवस्था अने सुघटना करी हती ते जोईने ते ते विषयना ज्ञाताओ चकित थता हता. पोताना घरना नानामा नाना कामथी ते छेक कोलीयारी जेवा म्होटा कारखाना सुधीमां-के ज्यां हजारो माणसो काम करता होय-बहु ज नियमित, व्यवस्थित अने सुयोजित रीते काम चाल्यां करे तेवी तेमनी सदा व्यवस्था रहेती हती. छेक दरवानथी लई पोताना समोवडीया जेवा समर्थ पुत्री सुधीमा एक सरखं उच्च प्रकारचं शिस्त-पालन अने शिष्ट आचारण तेमने त्यां देखातुं हतुं सिंधीजीमां आवी समर्थ योजकशक्ति होवा छता-अने तेमनी पासे संपूर्ण प्रकारनी साधनसंपन्नता होवा छता-तेओ धमालवाळा जीवनथी दूर रहेता हता अने पोताना नामनी जाहेरातने माटे के लोकोमा म्होटा माणस गणावानी खातर तेओ तेवी कशी प्रवृत्ति करता न हता. रावबहादुर, राजाबाहादुर के सर-नाईट विगेरेना सरकारी खिताबो धारण करवानी के काउनीलोमा जई ऑनरेबल मेंबर बनवानी तेमने क्यारेय इच्छा थई न हती. एवी खाली आडम्बरवाळी प्रवृत्तिमा पैसानो दुर्व्यय करषा करता तेओ सदा साहित्योपयोगी अने शिक्षणोपयोगी कार्योमा पोताना धननो सद्व्यय करता हता. भारतव. र्षेनी प्राचीन कळा अने तेने लगती प्राचीन वस्तुओ तरफ तेमनो उत्कट अनुराग हतो अने तेथी ते माटे तेमणे लाखो रूपिया खD हृता. सिंधीजी सायेनो मारो प्रत्यक्ष परिचय सन् १९३० मां शरू थयो हतो. तेमनी इच्छा पोताना सद्गत पुण्यश्लोक पिताना स्मारकमा जैन साहित्यनो प्रसार अने प्रकाश थाय तेवी कोई विशिष्ट संस्था स्थापन करवानो हतो. मारा जीवनना सुदीर्घकालीन सहकारी, सहचारी अने सन्मित्र पंडितप्रवर श्री सुखलालजी, जेओ बाबू श्री डालचंदजीना विशेष श्रद्धाभाजन होई श्री बहादुर सिंहजी पण जेमनी उपर तेटलो ज विशिष्ट सद्भाव धरावता हता, तेमना परामर्श अने प्रस्तावथी, तेमणे मने ए कार्यनी योजना अने व्यवस्था हाथमां देवानी विनंति करी अने में पण पोताने अभीष्टतम प्रवृतिना आदर्शने अनुरूप उत्तम कोटिना साधननी प्राप्ति थती जोई तेनो सहर्ष अने सोल्लास खीकार कर्यो. रंभ दिवसे, विश्ववंद्य कवीन्द्र श्री रवीन्द्रनाथ टागोरना विभूतिविहारसमा विश्वविख्यात शान्तिनिके. तनना विश्व भारती-विद्या भवनमा 'सिंघी जैन ज्ञानपीठ' नी स्थापना करी अने त्यां जैन साहित्यना अध्ययन-अध्यापन भने संशोधन-संपादन दिनुं कार्य चाल कयु. मा विषेनी केटलीक प्राथमिक हकीकत, आ ग्रंथमाळाना सौथी प्रथम प्रकट थएला 'प्रबन्धचिन्तामणि' नामना ग्रंथनी प्रस्तावनामा में आपेली छे, तेथी तेनी अहिं पुनरुफि करवानी जरूर सभी. सन् १९३१ ना प्रारंभ दिवसे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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