Book Title: Bhadrabahu Samhita
Author(s): Bhadrabahuswami, A S Gopani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 35
________________ भद्रबाहुसंहिता (३) राजा, भिक्षु, अने श्रावकोना हित माटे ए ग्रंथनी रचना करवामां आवी हती. (४) आ ग्रंथना रचनार भगवान भद्रबाहु दिगंबर हता. हवे आपणे ए दरेक मुद्दा विशिष्ट रूपे तपासीए :- (१) पुरातन काळमां मगध देशमा जैन धर्मनी असर सर्वत्र व्यापेली हती. तेनी राजधानी राजगृह-राजगृहीमा हती. परंतु तेनो राजा सेनजित् करीने कोई थई गयो हतो एम खास जणायु नथी. जैन साहित्यमा 'सेणियना साधारण नामथी प्रसिद्ध एवो जैनधर्मानुयायी महान राजा श्रेणिक मगधमां थई गयो हतो ए वात इतिहाससिद्ध छे. आ श्रेणिक राजाना पितानु नाम 'प्रसेनजित' हतुं. कदाच ए ज 'प्रसेनजित्' राजाने लक्षीने आ भ. सं. मां उल्लेख करवामां आवेलो होय. अथवा प्राकृत 'सेणिय' शब्दमांथी सेनजित् शब्द उपजावीने तेनो उल्लेख करवामां आव्यो होय. भ. सं. मांजगावेल पांडुगिरि कदाच राजगृहनी आसपासमां आवेल पर्वतोनी पांडुगुफाने अनुलक्षी यो जायो होय. जो के एतिहासिक श्रुति अनुसार तो, द्वादशांगवेत्ता भद्रबाहुना समयमा मगधनो राजा चन्द्रगुप्त मौर्य हतो अने तेनी राजधानी पाटलीपुत्र तुं. (२) द्वादशांगने भगवान महावीरे अर्थ रूपे प्ररूप्या अने गणधरोए तेने सूत्र रूपे ग्रथित कर्या जे वारमा अंग-दृष्टिवाद-सिवाय वल्लभीवाचनानुसार अत्यारे मोजुद छे. ए वार अंगो जैनशासनना सौथी प्राचीन ग्रंथो छे. बारमा अंगमां चौदपूर्वनो समावेश थाय छे, आ अंग वखत जतां लुप्त थयुं. तेमां दर्शनविषयक चर्चा, अनेक विषयो उपर रहस्यमय विचारणा अने चमत्कारी विद्याओनां वर्णनो हता. ते बारमुं अंग पांच विभागमा विभक्त थयुं हतुं. तेमांना त्रीजा पूर्व नामना विभागमां चौद पेटा विभागो हता जेमांनुं एक विद्यानुप्रवाद नामर्नु दसमुं पूर्व हतुं तेमां अनेक अतिशयोवाळी विद्या, साध. ननी अनुकूळताथी सिद्धिप्रकर्ष बडे जगावी छे. आ पूर्वमा अष्टांगनिमित्तनु शान समाविष्ट होया पूरो संभव छे एटले निमित्त ज्ञानने जिनभाषित के सर्वज्ञभाषित कहेवामां परंपराए को वांधो नथी. आचार्य भद्रबाह चौद पूर्वधारी हता एटले आ दसना विद्यानुप्रवाद नामना पूर्वनुं ज्ञान एमने हतुं ए सुनिश्चित छे. (३) आचार्य भद्रबाहुए ए ज्ञानने टुंकामां कही संभळाववानी शिष्य- प्रशिष्योनी विनतिने स्वीकारी होय तो ते राजा, भिक्षुओ, अने श्रावकोना हितनी एकमात्र दृष्टिथीज स्वीकारी होवानी संभावना छे. (४) आचार्य भदबाहु, जेओ चौद पूर्वधारी हता तेओ सर्वशभाषित, जिनभाषित निमित्तानुसार कोईपण निमित्तग्रंथ राजा, भिक्षु के श्रावकना हित माटे परोपकारी दृष्टिथी रची शके ए बात मानी शकाय तेवी छे. परंतु एमणे एवो कोई ग्रंथ वास्तविकमां लख्यो हतो के केम ए आपगे हवे उपलब्ध ऐतिहासिक सामग्री द्वारा नकी करवानुं रहे छे अने ए प्रमाणाधारे निश्चित न थई शके तो पाछळथी कोइए एनी रचना करी होय अने एमना प्रभावान्वित नाम उपर चढावी दीधी होय तो ते क्यारे अने कोणे रची तथा केवा संयोगोमां रची वगेरे बाबतो उपर विचारवान प्राप्त थाय छे. भद्रबाहु दशवकालिकना रचनार शय्यंभवना शिष्य यशोभदने संभृतिविजय अने भद्रवाह'नामना बे ब्राह्मण शिष्य हता. तेमांना आर्य भगवाहु चौदपूर्वधारी हता. विद्वानोनो एक वर्ग एम माने छे के आ भदबाहुए पूर्वनो खास आधार लइने "आवश्यक", "दशकालि", "उत्तराध्ययन", "आचारांग", "सूत्रकृतांग", "दशाश्रुतस्कंध", "कल्प", "व्यवहार" "सूर्यप्रज्ञप्ति' अने "अविभाषितो” उपर एम दस नियुक्तिओ रची. आमांना "व्यवहार”, “दशा श्रुतसंध", तथा 'कल्प' पोते ज रचेल छे अने नियुक्तिओं पण एना उपर पोते ज बनावी छे. आ उपरांत, "पिंडनियुक्ति”, “ओघनियुक्ति, "संसक्तनियुक्ति", "उवसग्गहर", देवचंद्रसूरि विरचित "शांतिनाथचरिय' ना मंगलाचरणामा उल्लेखेल प्राकृतमा “वसुदेवचरिता"दि ग्रंथो रच्या हता. स्थूलभद्रने चौद पूर्वनी वाचना आपनार आ भद्रबाहु हता. तेओ वीरात् १७० मा खर्गवासी थया. दिगंबर कथानुसार, वीरात् १५५ मां वर्गवारा पामेल चंद्रगुप्त राजाए तेमना शिष्य थई साधुदीक्षा लीधी हती. मग. धमां बारवी महाभीषण दुकाळ पयो हतो ते वखते संघनो निर्वाह मुश्केल थतां कंठस्थ श्रुतज्ञाननो लोप थवानो संभव उत्पन्न थयो. मगधमां पाटलीपुत्रमा संघ भेगो भयो अने जे काई याद हतुं ते बधुं एकत्रित करी नाखवानो विचार कर्यो. अगीआर अंगो तो एकत्रित थई शक्या परेतु बारमुं दृष्टिवाद नष्टप्राय थई गयुं हतुं. केवळ आर्य भद्रबाहु ज ते जाणता हता. तेओ ते वखते नेपाळ देशमा महाप्राण नामनुं ध्यान धरी रखा हता. तेथी स्थूलभद्रने तेमनी पासे मोकली तेनुं ज्ञान हस्तगत कयु. भद्रबाहुनो अनुयायी वर्ग मगध पाछो फर्यो. आ वखते भद्रबाहु साथे दक्षिणमां निकळी गयेल साधुवर्ग अने मगधमा ज पाठक रहेल साधुवर्ग ए बच्चे बचे सूत्रो अने आचार पूरतो तफावत उत्पन्न थई गयो हतो. मगधमां रही गयेलामां दुकाळनी कठोरताने कारणे शशिल्य प्रवेशतां राफेद वस्रो पहेरवानी प्रथा चालु थई गई हती परंतु बहार विहार करी जनाराए महावीरनी कडकमां कडक आज्ञा मुजब दृढ रही ना रहेवार्नु ज अपनाव्यु. आम, जन संघमा दिगंबर अने श्वेतांबर एम बे तड पड्या. दिगंबरोए तेमनी अनुपस्थितिमा पाछळ गुंथेल आगमोने न स्वीकार्या. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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