Book Title: Bhadrabahu Samhita
Author(s): Bhadrabahuswami, A S Gopani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 36
________________ प्रस्तावना "जैन साहित्यना संक्षिप्त इतिहास" ("जै. सा. सं. इ") ना ३३ मा टिप्पणमा तेगा रचनार स्व. श्री. मो. द. देसाई लखे छे के भ. सं. नामनो निमित्त ग्रंथ उपर्युक्त भद्रवाहनो बनावेलो नथी. वराहमिहिरे वाराही (बृहत ) संहिता (वा. सं.) रची अने भद्रबाहुए भ. सं. रची ए मात्र किंवदंती छे. राजशेखरकृत "प्रबंध कोश" (चतुर्विंशति प्रबंध) नो महिर प्रबंध आ कथननी पुष्टि करे छे (जुओ "जै. सा. सं. इ. पेरा. ६४२). आ भद्रबाहुए भ. सं. रची एवो विश्वस्त अने प्रमाणोपेत उल्लेख उपलब्ध ऐतिहासिक ग्रंथोमा मळतो नथी. ज्यारे मुनि आत्मारामजी कृत "तत्त्वादर्श' नामना ग्रंथना अंतिम परिच्छेदमा आभ. सं. ने श्रुतकेवली भद्रबाहए बनावी हती एम जणाव्युं छे तेग जसं. १९५९ मां भीमसी माणेक प्रकाशित भ. सं. नागना ज्योतिष शास्त्रना गुजराती अनुवादमा उक्त प्रकाशके आ "भ. सं. ग्रंथ जैनना ज्योतिष विषयमा आद्य ग्रंथ छे. तेमना रचनार श्री भद्रबाहुस्वाभी चौदपूर्वधर श्रुतकेवली हता" एग स्पष्ट लत्यु छे. तथा सं. १९७९ मां मेसर्स मेघजी हीरजी प्रकाशित "श्री भद्रबाहुसंहिता" नी प्रस्तावना (पृ. ६) मा प्रकाशक लखे छे “आ ग्रंथ जैन ज्योति प शास्त्रनो मुख्य अने मूळ ग्रंथ छे. तेना रचनार त्रिकाळदर्शी श्री भद्रबाहु खागी जैन धर्मना इतिहासमा एक सूर्य रूपे प्रकाशी रह्या छे'. तेओ विशेषमा तेज प्रस्तावनाना ते ज पृष्टमां लखे छे "श्री भद्रवाह स्वामीना भाई श्री वराहमिहिर तेमना संप्रदायमा सारी रीते माननीय अने आदरणीय लेखाय छे. तेभ ज तेमनुं ज्योतिष संबंधी साहित्य पण योग्य रूपमा उपलब्ध थई शके छे. राजसभामां वराह नार श्री भगवाहु स्वामी ज्योतिष संबंधी आटलं थोडं लखी विरमे ए कोई रीते मानवामां आवे तेवी वात नथी" वगेरे वगेरे. उक्त प्रकाशक एज प्रस्तावनाना पृष्ट, ७ उपर लखे छे “आ ग्रंथ विषे केटलाक भाईओर्नु एम एण कहे, थाय छे के त्रिकाळदर्शी भदबाहुखामी अने आ ग्रंथना लेखक भद्रबाह ए बन्ने जुदी जुदी व्यक्ति होवी जोइए". आ ग्रंथो उपरांत एक भ. सं. जामनगर निवासी पंडित श्रावक हिरालाल हंसर जे प्रसिद्ध करी बहार पाडी छे. ते संस्कृतमा छे. परंतु एक ज प्रति उपरथी पाठांतरो नोंच्या विना छपावी बहार पाडी छे, तेम ज तेमा प्रस्तावना के एवू काई नथी ते उपरथी संपादक नुं आ ग्रंथना कर्तृत्व विषे शुं मानQ हतुं ते समजवू अशक्य छे-जो के एमणे ए ग्रंथना प्रारंभमां मथाळे (कत्ता भद्रबाहु) एम लस्युं छे ते उपरथी भद्रबाहु कृत ए भ. सं. छे एग तो तेओ मानता हता एम जणाय छे. - भद्रबाह नामधारी आचार्य एक करतां वधारे थया होय एम मानवामा आपत्ति नथी. प्रथम भद्रबाह जेओ चौदपूर्वधर हता तेमणे तो आ ग्रंथ रच्यो नथी ए बात आगळ स्पष्ट थई गई छे कारण के तेमणे रचेला ग्रंथो पैकीमा भ. सं. नुं नाम उल्लेखेल होय एवं उपलब्ध अने विश्वसनीय जैन ऐतिहासिक साहित्यमा क्यांय यांचवामां आव्यु नथी. हवे मानीए के भद्रबाहु नामधारी बीजा आचार्य वराहमिहिरना वखतमां थई गया-जो के आ पण एक पूरे पूरी ऐतिहासिक घटना नथीअने तेमणे आ ग्रंथ रच्यो होय ए पण संभवतुं नथी; कारण के आ ग्रंथना रचयिता भद्रबाहु पोते पोताने माटे 'प्रोवाच' (२:१) जेवा परोक्ष भूतनी क्रियानो प्रयोग न करे. कारण के एथी तो उलटुं एम सिद्ध थाय के प्रश्नोत्तरीनो आखो बनाव कर्त्तानी उपस्थितिमा बन्यो नो'तो. मानो के कोई निकट ना शिष्ये एमने पूछ्युं अने एमणे जे कडं ते ए शिष्ये आ ग्रंथ रूपे गुंथ्युः एम पण न बनी शके, कारण के परोक्ष भूतनो प्रयोग तो घणा पुरातन काळ माटेज संभवे. मतलब के भद्गबाहु नामना आचार्ये-चौदपूर्वधारी आर्य भद्रबाहु करत बीजाए-जेओ प्रबंधान्तर्गत आख्यायिका प्रमाणे वराहमिहिरना सहोदर हता तेमणे आ ग्रंथ अर्थ रूपे कोईने कह्यो होय अने पाछळथी ए निमित्तविषयक आशयोने ग्रंथबद्ध करी कोई विद्वाने एने भ. सं. नुं नाम आप्यु होय. बीजी संभावना ए छे के कोई विद्वाने पोते ज पोतानी मेळे ग्रंथ गमे तेम लखी काढी एने भ. सं. नुं नाम आप्यु होय. कारण के भद्रबाहुनुं नाम एक प्रख्यात ज्योतिर्विद् अने नैमित्तिक तरीके जैन परं परामा जाणीतुं छे. शिष्योए भद्रबाहुने विनति करी अने तेथी तेमणे दिव्य ज्ञान प्रकट कर्यु जे आ भ. सं. मा छे-ए प्रतिज्ञावाक्यनो लाक्षणिक अर्थ तो 'प्रोवाच' शब्दना प्रयोग उपरथी ए ज काढवो उचित लागे छे के भद्रबाहुए पोताना शिष्योने दिव्यज्ञान (निमित्त ज्ञान) आप्यु जे परंपराए जैन साधुओ पासे उत्तरोत्तर आवतुं गयु. काळक्रमे कोई जैन साधु विद्वानने ए ज्ञान के जे अर्धदग्ध स्थितिमा आवी गयु हतुं तेने ग्रंथस्थ करवानों विचार आव्यो अने तेणे ते अधकचरा ज्ञानने, ते जेम मझु हतुं तेमनुं तेम ज, कोई पण जातिना भाषाना, छंदग, अने व्याकरणना संस्कार आप्या विना ग्रंथारूढ कयें अने ए ज्ञानना मूळ दायक भगवाहु तरफ्नु पोतार्नु ए ज्ञान मारेनुं ऋण अदा करवा एने भ. सं. एबुं नाम आप्यु होय; कारण के एम मान्या विना "भगवाहुवचो यथा" ए शब्दोनो प्रयोग समजावी शकातो नथी. आ भ. सं. नामना ग्रंथना लेखक “भद्बाहवचो यथा" एवा शब्दोनो उपयोग पोते न करे. ए अभिमानीपणु बतावे छे अने एवं अभिमान प्रदर्शन जेनविद्वत्परंपराने अनुकूळ नथी. भद्रबाहु केटला थई गया, क्यारे थई गया, अने कये समये थई गया ते वावतोनी उपर प्रमाणे चर्चा करी रह्या पछी उपसंहार रूपे हुं अने ए जवाबतनी एक नूतन, सचोट, प्रामाणिक, अने एथी करी तद्दन खीकार्य एवी विचारसरणी नीचे रजु करुं छु जे आ प्रमाणे छे. एना विस्तृत रदीया माटे मुनि पुण्यविजयजीनो "छेदसूत्रकार अने नियुक्तिकार" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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