Book Title: Bhadrabahu Samhita
Author(s): Bhadrabahuswami, A S Gopani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 50
________________ प्रस्तावना १७ एक मासमां सूर्य, चंद्र-बन्नेनुं -प्रहण थाय तो पृथ्वी उपर संग्रामादि अशुभ थाय छे एम भ. सं. ( २०, ५० ) मां जाव्युं छे ज्यारे वा. सं. ( ५; २६ ) मां कयुं छे के ए घटनाथी शस्त्रकोप अने राजानी सेनानो नाश थाय छे. आ रीते पण बन्ने संहिता प्रथोमां आ विलक्षण घटना विषेनुं फळ पण लगभग सरखुं ज छे. ग्रहण, मोक्षनी घटना संबंधमां भ. सं. ( २०; ५२ - ५४ ) मां कहेवामां आव्युं छे के ग्रहण पछी पूर्वमां मोक्ष थाय तो पूर्वनो राजा नाश पामे (भ. सं. २०, ५२ ), दक्षिणमां मोक्ष पामे तो दाक्षिणात्योनो नाश थाय ( भ. सं. २०, ५३ ), पश्चिम दिशामा मोक्ष भाय तो नाविकोनो ( भ. सं. एजन ), अने निश्चल, सुप्रभ, कान्त, चंद्र मोक्ष पछी निकले तो ते राजाना विजय माटे तथा क्षेम अने शिव माटे होय छे ( भ. सं. २०३ ५४ ). वा. सं. मां कह्युं छे के दक्षिणमां मोक्ष थाय तो ( ५८४) दक्षिणना शत्रुओमां झघडा अने पूर्वमां मोक्ष थाय तो क्षुधा, अने शस्त्रभय ( ५ ८८) उत्पन्न थाय छे. • आम आ घटना पूरतुं बन्ने प्रथोमां सादृश्य छे. करवामां आवी छे. ए उपरांत, बन्ने संहिता उपर जणावेली बाबतो बन्नेमां वर्णववामां आवी छे तेथी तेनी तुलना ओम घणी बाबतो भिन्न भिन्न पण छे. जेवी रीते, भ. सं. मां केटले महिने ग्रहण थाय तो शुं अशुभ फळ मळे ? कई तिथिमां प्रहण थाय तो शुं खराब फळ मळे ? कया मासमां अने कई राशिमां ग्रहण थाय तो शुं फळ मळे ? ग्रस्त ग्रह मंडळ उपर बुधादिनी दृष्टि पडती होय तो शुं फळ मळे ? आकाशना अमुक भागमां ग्रहण थाय तो तेनुं फळ शुं ? ग्रहणनी उत्पतिम रूढिगत मान्यताओ शुं छे ? इत्यादि, इत्यादि बाबतोनो विचार करवामां आव्यो छे. केतुचार भ. सं. ना एकवीसमा अध्यायमा अने वा. सं. ना अगियारमा अध्यायमां आ केतुचार वर्णववामां आवेल छे, बन्ने संहिताओमां आ केतुचारनुं वर्णन जुदी, जुदी भूमिका उपर करवामां आव्युं छे. छतां मुख्य, मुख्य बाबतोमां बजे बच्चे संगति छे. वा. सं. मां केतुना दिव्य, आंतरीक्ष, अने भौमादि त्रण मोटा भेदो पाडवामां आव्या छे तथा केतुनी संख्या संबंघेना अनेक नाना, मोटा महर्षिओना मत टांकवामां आव्या छे. तेमां सूर्यादि ग्रहोथी उत्पन्न थता केतुओना नाम अने फळ सहित विशद वर्णनो करवामां आव्या छे. आ बाबतो भ. सं. मां नथी. भ. सं. (२१; ६ ) मां कृत्तिकाथी यम सुधीना नक्षत्रो केतुथी आधूमित थाय तो तेनुं अशुभ फळ आवे छे एम एक ज श्लोकमां संक्षिप्त पणे कही देवामां आव्युं छे ज्यारे वा. सं. ( ११; ५४ - ५८ ) मां ते ते नक्षत्रोने प्रत्येक प जणावी कया कया देशो उपर आफतमा ओळा उतरे ते बहु ज सरस रीते जणाव्युं छे. भ. सं. (२१; ७ - १८ ) मां अंगारकादि केतुओना नामो फळ साथे बताववामां आव्या छे तेमांथी वा. सं. कबंध ( ११, १७ ), कनक ( ११; १८ ), अने गुरुमकेतु ( ११:२६ ) - ए त्रणना वर्णनोमां शुभाशुभता पूरतुं साम्य छे - विगत अने विस्तारमां न्यूनाधिक्य अने वैशिष्ट्य बाद करीए तो पण. श्वेतकेतु सुभिक्षद छे एवं भ. सं ( २१; १९ ) अंगारकादि केतुओनुं फळ धूमकेतु जेवुं होय छे बच्चे समान छे. जळ केतु जळ आपे छे ए बाबत पण आ सिवाय बच्ने प्रथोमां केतु संबंधेना वर्णनो अने जातिनो विरोध नथी. कथन वा. सं. ( ११; ८ ) ना कथन साथे सादृश्य धरावे छे. ए सिद्धांत भ. सं. ( २१ २१ ) अने वा. सं. ( ११,३८ ) बनेमां समान छे ( भ. सं. २१, ४९. वा. सं. ११, ४६ ) . फळादेशो पोत पोतानी अनोखी ढबे चर्च्य छे छतां बन्नेमा कोई सूर्यचार भ. सं. ना बावीसमा अध्यायमा अने वा. सं. ना त्रीजा अध्यायमा सूर्यचार वर्णववामां आव्यो छे. भ. सं. ( २२; २ ) मां कह्युं छे के उदय वखते सूर्यं सुरश्मी, स्फटिकनी कांतिवाळो, महान द्युतिवाळो होय तो सुभिक्ष करनारो अने राजाना हितने करनारो छे; वा. सं. (३,४० ) मां कथन छे के सूर्य निर्मळ देहवाळो, विकाररहित रंगवाळो देखाय तो ते जगतनुं मंगळ करनार थाय छे. भ. सं. ( २२, ३-४ ) मां एम पण बह्युं छे के जो सूर्य रातो देखाय तो ते शस्त्रकोप, भय, अने मोंघवारी उत्पन्न करे छे अने राजा तथा स्थविरोना अहितने करनार थाय छे. पीळारंगनो देखाय तो तथा राता किरण वाळो देखाय तो ते व्याधि अने मरणने उभा करे छे. विरश्मि अने धूम जेवो काळो देखाय तो ते क्षुधा, आर्ति, अने रोगने देनारो छे ज्यारे वा. सं. होय तो ब्राह्मणोनो नाश, रक्तवर्ण होय तो क्षत्रियनो नाश, पीतवर्ण ते शूद्रोनो नाश करे छे तेमज ते ज ग्रंथ ( ३; २९ ) मां ए उपरांत एम पण कयुं छे के सूर्यबिंब काळारंगनुं देखाय तो ते कीटभय अने राखना जेवुं रंगवालुं होय तो परराष्ट्रथी भय उभा करे छे. वळी ते ज ग्रंथ ( ३; ३० ) मां विशेष प्रकारे कर्तुं छे के ससलाना रंग जेवो सूर्य देखाय तो युद्ध थाय छे अने चंद्रना रंग जेवो देखाय तो ते देशना राजानो नाश करे छे. भ. सं. ( २२; १६ - १७) मां कयुं छे के सूर्य सोनाना रंग जेवो देखाय तो वर्षा, लोही वर्णो देखाय तो भद्र० प्रस्ता• ३ Jain Education International ३; २५) मां कह्युं छे के सूर्य रुक्ष, अने श्वेतवर्ण होय तो वैश्यनो नाश अने काळा वर्णनो होय तो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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