Book Title: Bhadrabahu Samhita
Author(s): Bhadrabahuswami, A S Gopani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 54
________________ प्रस्तावना २१ शब्द 'सुद्धि' थी बताववामां आव्यो छे. आq दरेक शब्दना संबंधमां समजी लेवू. प्रतिना हासियामां छूटी गयेल अक्षरो के शब्दो मूकवामां आव्या छे; कोई कोई स्थळे शब्दार्थ पण लखवामां आव्यो छे. आ अक्षरोमा अने प्रतिना अक्षरोमां साम्य जणातुं होई एम मानवा मन ललचाय छे के प्रति लखनारे पाछळथी प्रति मेळवी होवी जोईए अने जे जे अक्षरो के शन्दो खूटता लाग्या ते बधा तेणे हांसियामां नोंध्या होवा जोईए. प्रामाण्य अने शुद्धिनी दृष्टिए A प्रति पछी आ प्रति आवे. ___C:-आ अपूर्ण प्रति श्री हेमचंद्राचार्य जैन ज्ञानमंदिर (वाडी पार्श्वनाथनो जैन ज्ञानभंडार), पाटणथी मेळववामा आवी हती. तेनो नंबर ६८१४ छे. बन्ने बाजुए लखेल एवा सत्तावीस पृष्ठ छे. तेनी लंबाई. पहोळाई छे. पृष्ठनी जमणी तथा डावी बाजु उपर .९ इंचनो अने उपर तथा नीचेना भाग उपर .५ इंचनो हाँसियो राखवामा आवेल छे. पृष्टनी दरेक बाजु उपर आशरे पंदर पंक्तिओ अने दरेक पंक्तिमां शुमारे बावन, त्रेपन अक्षरो समाववामा आव्या छे. प्रतिनी हालत घणी सारी छे. अक्षरो मरोडदार अने सुवाच्य छे. अक्षरो ज्यां छूटी गयेल छे त्यां......ावी रीते ए हकीकत दर्शाववामा आवी छे. A प्रतिमां मने ज्यां ज्यां संदिग्धता जणायेली त्या त्यां आ प्रति घणी ज उपकारक थई पडेली छे. जमणी तथा डाबी बाजुना हांसियामां तथा पृष्ठना मध्य भागमा मोटा चांदला जेवू चिह्न मूकवामां आवेल छे. प्रतिनी शरुआत "श्री सर्वज्ञाय” अने तेनो अंत "किकिंधराश्चैव कर्णाटा" शब्दथी करवामां आवेल छे. प्रति अपूर्ण छे ए आगळ जणाववामां आव्युं छे. आदित्यचार सुधीजें वर्णन आ प्रतिमां मळी आवे छे. छेल्ला पृष्टना डावी बाजुना हांसियामा मुकेल चांदलाना चिह्नमां १६४० नो आंक मुकवामां आव्यो छे ते उपरथी अनुमान करी शकाय के आ प्रतिनुं लेखन संवत् १६४० मां करवामां आव्युं होय; कारण के ए आंक 'ग्रंथाग्रम्' जणावतो नथी ए स्पष्ट छे. D:-आ प्रति पाटणमांथी मेळववामां आवी हती. तेनी पृष्ठ संख्या ८८ छे. आ प्रतिना त्रीजा भागना पृष्ठो उपर बीजी बाजुए लखवामांज नथी आव्यु. पृष्ठमां एकंदरे बार पंक्तिओ अने दरेक पंक्तिमा अंदाज छत्रीस अक्षरो लखवामां आवेल छे. प्रति संपूर्ण छे. प्रतिनी लंबाई, पहोळाई ११४५.२ इंच छे अने उपर, नीचे .८ इंचनो तथा जमणी, डाबी बाजु उपर १.३ इंचनो हांसियो राखेल छे. प्रतिनी शरुआत “श्री जिनाय नमः॥" अने तेनो अंत "संवत् १९४५ना श्रावण सुद ११ बुधवारें ॥" आ प्रमाणे छे. आ छेल्ला शब्दोथी ए स्पष्ट थाय छे के प्रतिलेखन संवत् १९४५ ना श्रावण सुद ११ ने बुधवारे पूरू करवामां आव्यु हतु. प्रतिलेखन सारी रीते करवामां आवेल छे परंतु भाषा अने छंदनी दृष्टिए घणुंज शैथिल्य छे. ए रीते आ प्रति B प्रतिने अनुसरनारी गणी शकाय. क्वचित ज अक्षरो छूटी गया छे; त्यो......आवी रीते ए बाबत दर्शाववामां आवी छे. प्रति थोडा समय पहेला ज लखायेली छे एटले प्रतिना कागळोनी हालत सारी होय एमां नवाई नथी. अक्षरो मरोडदार अने सुवाच्य छे. प्रतिमा क्यांय भूषा चिह्नो के हांसियामां कोई बाबत लखेली नथी. कागळो जाडा वापरवामां आव्या छे. उतावळमां पोतानी नोंध खातरज जाणे के नकल न करवामां आवी होय तेम नकल करी नाखी छे. भाषानो काई ज विचार करवामां आवेल नथी. शब्दे शब्दे व्याकरण दोषो जणाया छे. छतां शंकास्पद स्थळोए एणे पण प्रकाश पाथर्यो छे एटला पूरती ते उपयोगी अने उपकारक गणाय... पाठांतर छंद अने व्याकरण शुद्धि जे पाठथी सचवाती हती तेने सर्व प्रथम पसंदगी आपी छे. अन्य पाठने पादनोंधमां जणाव्यो छे. पाठ परत्वेनी प्रतिओनी बहुमति पण पाठनी पसंदगीमां बीजे नंबरे ध्यानमा राखी छे. कोई स्थळे में ( ) कौंसमा पाठांतरो सूचव्या छे परंतु ते बधा कामचलाउ समजवा. [ ] कौंसमां मुकेल शब्द के अक्षर खास करीने छंदोभंग दोष के व्याकरण दोष निवारवा मुकेल छे एम बतावे छे. अध्यायने अंते "भद्रबाहुसंहितायाम्", "नैर्ग्रन्थे भद्रबाहुके निमित्ते", अने “नम्रन्थे भद्रबाहुके निमित्ते संहितायाम्" एवा समाप्ति सूचक पदो प्रतिओनी बहुमति अनुसार मुक्या छे. सूची अने परिशिष्ट विषय तथा शब्दानुसार सूची ग्रंथनी उपयोगितामां वधारो करशे एम धारीने तैयार करी मूकेल छे. अभ्यासीनी सुगमता अने सवड खातर, भ. सं. ना जे श्लोकोनी वा. सं. ना जे श्लोको साथे में तुलना करी छे ते वा. सं. ना श्लोको अध्याय प्रमाणे में परिशिष्टमां मुकेल छे. आभार आ ग्रंथना संपादनमा आवश्यकीय तमाम प्रतिओ मेळवी आपी तेम ज मारा उत्साहने वारंवार उत्तेजित करी मने जे अवार नवार प्रेरणा आपी छे ते खातर हुं आ स्थळे मारा विद्यागुरु आचार्य जिनविजयजी, ऑन० डिरेक्टर-भारतीय विद्या भवन, ना अत्यंत उपकारनी नोंध लई कृतज्ञ थाउं छं. भारतीय विद्या भवन चोपाटी रोड, मुंबई. ७ अमृतलाल सवचंद गोपाणी. मार्गशीर्ष पूर्णिमा, सं. २००५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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