Book Title: Bhadrabahu Samhita
Author(s): Bhadrabahuswami, A S Gopani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 51
________________ १८ भद्रबाहुसंहिता शस्त्र, अग्नि जेवो देखाय तो गरमी, श्रृंगी देखाय तो विजयदायक, अने चित्र-विचित्र देखाय तो सस्यनाश करनारो थाय छे. आ रीते बन्ने ग्रंथोमा आ बाबत पूरतुं लगभग सादृश्य छे. जेना जन्मनक्षत्रने विवर्ण एवो भास्कर सेवे तो तेने ते पीडाकारी थाय छे (भ. सं. २२, १४) ज्यारे वा. सं. (३, २९ ) मां कडं छे के राजाना जन्मनक्षत्रमा विराजमान सूर्य छिद्रवाळो देखाय तो ते रा आम एकंदरे आ बाबतमां पण बन्ने संहिताओमा साम्य छे. कबंधथी आवृत्त सूर्य जो पूर्व दिशामां देखाय तो ते वंग, अंगादि देशोनो हणनारो थाय छे एम भ. सं. (२२,५) मां कर्ष छ ज्यारे वा. सं. (३, १७) मां एम कर्जा छे के सूर्यमंडळमां कबंध देखाय तो ते व्याधिभयने उत्पन्न करे छे. आ रीते आ घटना पूरतुं पण बन्ने संहिता ग्रंथोमा लगभग ऐक्य छे. बन्ने ग्रंथोमां अन्य बाबतो चर्ची छे. परंतु ए जुदी जुदी छे एटले तुलना नथी करी. चंद्रचार भ. सं. ना तेवीसमा अध्यायमा अने वा. सं. ना चोथा अध्यायमां चंद्रचार वर्णववामां आवेल छे. भ. सं. (२३, १६) मां कडं छे के काईक उत्तर शृंगवाळी, स्निग्ध, श्वेत, विशाळ अने पवित्र चंद्र प्रशस्त छे; ते उपरांत (२३, ३-४) मां कयुं छे के उत्तरशृंगवाळो अश्मकादि देशो अने दक्षिणोन्नत क्षत्रिय, ब्राह्मण वगेरेनो नाश करे छे ज्यारे वा. सं. (४,१६) मां कां छे के जो चंद्र उत्तर दिशामा काईक उंचो होय तो धान्यवृद्धि, अने करे छ अने दक्षिण तरफ कांईक उंचो होय तो दुर्भिक्ष करे छे. आ उपरथी जणाशे के बन्ने बच्चे आ बाबत पूरतो भेद छे अने साम्य पण छे. भ. सं. (२३, १५-१६) मां कयुं छे के हस्ख, रूक्ष, अने श्याम चंद्र भयावह छे ज्यारे स्निग्ध, शुक्ल, महाश्रीमान् चंद्र प्रशस्त छे. तेम जश्वेत, पीत, रक्त, अने श्याम चातुर्वर्ण्य माटे अनुक्रमे सुखद छ भने विपरीत होय तो ते भयावह छे; ज्यारे (वा. सं. ४, २९) कयुं छे के जो चंद्र भस्मतुल्य, रूक्ष, अरुणवर्ण, किरणहीन, अने श्यामवर्ण होय तो ते क्षुधा, संग्राम, रोग अथवा चोरना भयने सर्जे छे. वळी (१; ३०) मां कर्तुं छे के चंद्र हिमकण, कुंदपुष्प, अने कुमुद कुसुम नेवा शुभ्रवर्णवाळो होय तो ते शुभदायी छे. आ रीते, बन्ने ग्रंथोमां आ घटनातुं साम्य छे. भ. सं. (२३, २५-३५) मां चंद्र गोवीथ्यादि वीथिमा प्रवेश करे तो अमुक शुभाशुभ फळ आपे तेम कहुं छे ज्यारे वा. सं. (४४-७) मां चंद्र अमुक नक्षत्रोमा प्रवेश करे तो अमुक शुभाशुभ फळ आपे एम कडं छे. एटले एका वीथि अने बीजामा नक्षत्र छे तेथी तेनी तुलना थई शके नहि. शुक्लपक्षमां चंद्रनो भौमादिथी घात थाय तो शुं शुभाशुभ फळ आवे अने कृष्णपक्षमा घात थाय तो शुं शुभाशुभ फळ आवे ए बाबतो भिन्न, भिन्न रीते वा. सं. (४, २१, २३, २५, २६, २७) मां जणावी छे ज्यारे भ. सं. मां आवो मेद-शुक्ल, कृष्ण पक्षनो-नथी पाडवामां आव्यो अने फळ कथन करवामां आव्युं छे (२३, ४१, ४३, ४७, ४९, ५१). बच्चे ग्रंथोमार्नु फळ, शुभाशुभतानी दृष्टिए लगभग समान छे. भ. सं. मां एक वैशिष्ट्य छे अने ते ए के सूर्यथी चंद्रघातर्नु फळ पण आप्युं छे (२३, ४९). ग्रहयुद्ध प्रहयुद्धनी चर्चा भ. सं. ना चोवीसमा अध्यायमा अने वा. सं. ना सत्तरमा अध्यायमा करवामां आवी छे. आ अध्यायनी चर्चा जेटली स्पष्ट पणे, विशद रीते, विस्तारपूर्वक अने सचोट ताथी वा. सं. मां करवामां आवी छे तेटली भ. सं. मां नथी करवामां आवी. ए बाबत बन्ने ग्रंथोमा वर्णवेला आ अध्यायना वाचनथी आपाततः जणाई आवे छे. ग्रहयुद्धना मेद, उल्लेख, अंशुमर्दन, अने अपसव्यादि प्रकार वा. सं (१७३) मां जेवा प्रतिपाद्या छे तेवा भ. सं. मां नथी. आनंद, पौर, अने यायीना वा. सं. (५७, ६-७) मा जे प्रमेद छे ते पण भ. सं. मां नथी. गुरु मंगळने जीते; गुरु शुक्रने हणे; इत्यादि इत्यादि एक ग्रह बीजाने जीते.अगर हणे ते वस्तु प्रहना नाम आपीने वा. सं. (१७; १३-२६) मां जेम सचोट रीते दर्शावाई छे तेम दर्शाववाने बदले भ. सं. (२४, ११, १३, १५, १७) मां मात्र एम ज कही देवामां आव्युं छे के भौमघात, सोमघात, राहुघात, अने शुक्रघात थाय तो शुं फळ आवे-जो के ग्रहयातनु अशुभतासूचक आ फळ बन्ने संहिता ग्रंथोमा सामान्य रीते लगभग सरखं छे. भ. सं. (२४, १३) मां वर्णवेलं सोमघातनुं फळ वा. सं. मां बिलकुल नथी. धोळो धोळाने, लोहित लोहितने, पीळो पीळाने, अने. काळो काळाने हणे तो शुं फळ आवे ए भ. सं. (२५, १८, १९, २०, २१) मां जेम जणाववामां आव्यु छे तेम वा. सं. मां नथी तेथी आ बाबत भ. सं. नी विलक्षणता सूचक छ एम जरूर कहेवू जोइए. एक अथवा एकथी वधारे ग्रहो रोहिणीने हणे तो अपग्रह थाय अने एनुं फळ भय छे ए कथन भ. सं. (२४,३२) मा जेम मळी आवे छे तेम वा. सं. मां क्यांय मळतुं नथी. तेथी अपग्रह वाळी आ बाबत पण भ. सं. नी वैशिष्ट्य दर्शक छे एम कहेवं जोईए. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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