Book Title: Bhadrabahu Samhita
Author(s): Bhadrabahuswami, A S Gopani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 42
________________ प्रस्तावना पण जणाववामां आव्युं छे के उपद्रव हीन चंद्र जो श्रवणमां, मघामां, अने अनुराधामां देखाय तो एक खारी ( १०८, ३५, ४८ ), भरणीमां देखाय तो ओगणीस आढक ( १०, २१ ), मूळमां अने पूर्वाफाल्गुनीमां एक खारी ( १०; ५१, (३६) अने पुनर्वसुमां एकाणु आढक वर्षा थाय ( १०; ३१ ). आज बाबत वा. सं. मां ए रीते जणाववामां आवी छे के जो उपद्रव हीन चंद्र श्रवण, मघा, अनुराधा, भरणी, मूळ, पूर्वाफाल्गुनी अने पुनर्वसुमां देखाय तो अनुक्रमे चौद, चौद, चौद, चौद, चौद, पचीस अने वीस द्रोण वर्षा थाय ( २३; ७ ). भ. सं. मां जणाव्युं छे के उपद्रव हीन चंद्र जो विशाखामा देखाय तो एक खारी ( १०, ४६ ), उत्तराषाढामां बार द्रोण ( १०; ६ ), उत्तराभाद्रपदमां होय तो नेवु आढक ( १०; १५ ); उत्तराफाल्गुनीमां होय तो सडसठ आढक ( १०, ३८ ), अने रोहिणीमां होय तो एकाणु आढक वर्षा थाय ( १०; २५ ) ज्यारे वा. सं. ( २३; ८ ) मां ते ज बाबतना संबंधमां एम जणान्युं छे के अनुक्रमे वीस, वीस, पचीस, पचीस, अने पचीस द्रोण वर्षा थाय. भ. सं. मां कहेवामां आव्युं छे के उपद्रव हीन चंद्र जो पूर्वाभाद्रपदमां देखाय तो चोसठ आढक ( १०; १३ ), पुण्यमां बेंतालीस आढक ( १०; ३२ ), अश्विनीमां ओगणपचास ( १०; १९ ), अने आर्द्रामां बत्रीस आढक ( १०; २९ ) वर्षा थाय ज्यारे वा. सं. ( २३, ९ ) मां ते ज नक्षत्रोमां अनुक्रमे बार, बार बार, अने अढार द्रोण वर्षा थाय एम जणाव्युं छे. " उपद्रव हीन" चंद्र अमुक नक्षत्रोमा देखाय तो अमुक द्रोण, के आढक प्रमाण वरसाद पडे एम वा. सं. मां जणाव्युं छे ज्यारे “उपद्रव हीन” शब्दो भ. सं. मां वपराया नथी परंतु में अध्याहृत मुक्या छे. वर्षा प्रमाण बताबवा माटे वा. सं. 'द्रोण' शब्द सर्वत्र योजवामां आवेल छे ज्यारे भ. सं. मां 'द्रोण' शब्द एक नक्षत्रना संबंधमां, 'आढक' शब्द अढार नक्षत्रोना संबंध, अने 'खारी' शब्द छ नक्षत्रोना संबंधमां बापरवामां आव्यो छे. एक द्रोण एटले चार आढक एवं बहुमान्य परिमाण कोष्टक स्वीकारीए तो भ. सं. अने वा. सं. ना फळादेश वच्चे, निरुपद्रव चंद्र पूर्वाषाढा अने रेवतीमां देखाय तो सोळ द्रोण वरसाद वरसे ए सिवाय अन्यत्र क्यांय साम्य नथी. आश्लेषा अने शतताराना संबंधमां भ. सं. मां फळादेश ज करवामां आव्यो नथी. भ. सं. मां शुभ फळ तरीके अमुक परिमाण वरसाद उपरांत, सुभिक्ष, क्षेम, आरोग्य, अने सस्यनिष्पत्ति जेवा सूचक शब्दो वापरवामां आव्या छे अने अशुभ फळ तरीके अमुक परिमाण वरसाद पडशे एवा तात्पर्यना कथन उपरांत तीड, उंदर, पोपट, सर्प, अने अजगरादिनो उपद्रव थशे के वधशे एवं वधारानुं कथन तेम ज व्याधि अने अनीतिनुं जोर जामशे एवं पण स्पष्ट कहेवामां आव्युं छे ज्यारे वा. सं. मां अमुक द्रोण वरसाद पडशे ए सिवाय शुभाशुभ फळ तरीके कांई ज विशेष कहेवामां आव्युं नथी. वळी, भ. सं. मां 'अपग्रह' पूरतुं खास वैशिष्ट्य छे. 'अपग्रह ' नी बाबतनो जरा जेटलो पण निर्देश वा. सं. मां नथी. आम प्रवर्षण नामना दसमा अध्याय पूरती भ. सं. नी लाक्षणिकता खास ध्यान खेचे तेवी छे. आ असाधारणता परंपरानुं पार्थक्य बतावे छे. गंधर्वनगर भ. सं. ना अगियारमा अध्ययायमां तेमज वा. सं. ना छत्रीसमा अध्यायमा गंधर्वनगरनुं वर्णन करवामां आव्युं छे. रक्त, पीत, कृष्ण अने सफेद रंगनुं गंधर्वनगर अनुक्रमे क्षत्रीय, वैश्य, शूद्र, अने ब्राह्मणोनो नाश करे छे (भ. सं. ११; २७. बा. सं. ३६; १ ) प्राकार अने तोरण युक्त स्निग्ध गंधर्वनगर शांत दिशामा देखाय तो ते राजाने माटे विजयकर छे (भ. सं. ११; १० ); ध्वज युक्त, अने पताका युक्त स्निग्ध अने सुप्रतिष्ठित गंधर्वनगर जो शांत दिशामां नजरे पडे तो राज्य वृद्धिने बतावनाएं छे ( भ. सं. ११, २० ); विदिशामां देखवामां आवतुं गंधर्वनगर सघळा वर्णो माटे दारुण नाश बतावनारुं छे (भ. सं. ११; २३ ). आवी ज मतलबनुं वर्णन वा. सं. ( ३६, २) मां पण छे. सघळी दिशाओमां गंधर्वनगर देखाय तो ते सर्व दिशाओमां सर्व वर्ण वच्चे विरोध उभो थशे ए बाबतनुं सूचक छे ( भ. सं. १३३८ ). इंद्रायुध, धूम, अने अग्निना जेवुं गंधर्वनगर माणसोमां अग्निनो भय उत्पन्न थशे ए घटनानुं दर्शक छे ( भ. सं. ११,१२ ). वा. सं. ( ३६, ३ ) मां एम जणान्युं छे के गंधर्वनगर बधी दिशाओमां देखाय तो अथवा हंमेशां देखाय तो ते राजा अने राज्य बन्ने माटे भय देनारुं छे एम बतावे छे. धूम, अभि, अने इंद्रध्वज जेवुं गंधर्वनगर देखाय तो ते चोर अने वनवासीओना घातनो निर्देश करे छे. अहींयां जो के बन्ने ग्रंथोमां अनिष्ट घटनाओनी बाबतमां फळादेश जूदो छे छतां अनिष्टोत्पादक छे ए वस्तु तो बन्ने मां सरखी ज छे. वाम दिशानुं गंधर्वनगर परचक्रनो भय; दक्षिण दिशानुं स्वपक्षागमन, अने वृद्धिनुं सूचक छे अने पाणी पडशे एम बतावनारुं छे ( भ. सं. ११; १५-१६ ) राजा घणा राज्यो उपर जय मेळवशे एम दक्षिण दिशानुं गंधर्वनगर सूचवे छे ( भ. सं. ११; १९ ) दीप्त दिशामा जणातुं ध्वज युक्त अने पताका युक्त गंधर्वनगर राजमृत्यु सूचक छे ( भ. सं. ११, २२ ). वा. सं. ( ३६, ४) मां आज बाबतना अनुसंधानमां थोडाक फेरफार साथै एम कहेवामां आव्युं छे के दीप्त दिशामां गंधर्बनगर देखाय तो राजमृत्युने दर्शावनाएं छे अने वाम दिशामां देखाय तो शत्रुभय अने दक्षिण दिशामां देखाय तो जय सूचवनारुं छे. भ. सं. ( ११; २५ ) प्रमाणे अनेक वर्ण अमे जय, भद्र० प्रस्ता० २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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