Book Title: Bhadrabahu Samhita
Author(s): Bhadrabahuswami, A S Gopani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 43
________________ भद्रबाहुसंहिता अनेक आकार वाळु गंधर्वनगर देखाय तो राष्ट्र, शहेरो अने गामडाओमा क्षोभ थशे ए घटनानुं सूचक छ ज्यारे वा. सं. (३६, ५) प्रमाणे अनेक रंगनी पताका, ध्वज, अने तोरण युक्त गंधर्वनगर रणमां हाथी, घोडा, अने मनुष्यना बेशुमार संहारतुं सूचक छे. गंधर्वनगरना आ प्रकरण पूरतुं बन्ने ग्रंथोमा मोटा भागर्नु साम्य छे-कोई विशिष्ट फळ बताववा पूरतुं वैषम्य भले ए बन्ने वच्चे होय. भ. सं. मां विस्तार घणो छे. जुदी, जुदी दिशामां अने जुदा, जुदा खुणामा, जुदा, जुदा आकारनुं अने रंगनुं गंधर्वनगर देखाय तो शुं फळ मळे. ए बाबतो विगतथी चर्ची छे अने एटले ज एमां एकत्रीश श्लोको छे ज्यारे वा. सं. मां मात्र पांच ज श्लोको छे. बधा अध्यायोमा एक बाबत भ. सं. मां सळंग रीते तरी आवे छे अने ते विस्तृत वर्णननी. वा. सं. मां संक्षिप्तता छे परंतु सचोटता छे अने संपूर्णता छे. भ. सं. मां विस्तार छे परंतु पुनरुक्ति अने शैथिल्य पण छे. आ वस्तु बन्ने परंपराना पार्थक्यनी निदर्शक गणवी के केम ए सवाल छे. गर्भलक्षण गर्भलक्षणनी चर्चा भ. सं. ना बारमा अध्यायमा अने वा. सं. ना बावीसमा अध्यायमां आवे छे. सातमे सातमे मासे तथा सातमे सातमे दिवसे मेघना गर्भनो पाक थाय छे (भ. सं. १२, ४); जे नक्षत्र अने मुहूर्त्तमा मेघनो गर्भ बंधायो होय तेनाथी छठे मासे वरसाद वरसे छे (भ. सं. १२:६). वा. सं. (२२,७) मा आ बाबता एम जणाव्यु छे के मेघनो गर्भ थाय ते पछी एक सो पंचाणु दिवसमा मेघनो प्रसव थाय छे. भ. सं. (१२; ३ अने ५) प्रमाणे दिवसना भागमा उत्पन्न थयेल मेघगर्भ रात्रे अने रात्रिनो दिवसे तथा पूर्व संध्यानो पश्चिम संध्यामां अने पश्चिम संध्यानो पूर्व संध्यामां मेघगर्भ प्रसवने पामे छे ज्यारे वा. सं. (२२, ८) प्रमाणे दिवसनो गर्भ रात्रि काळमां, रात्रिनो गर्भ दिवसमां अने संध्यानो गर्भ विपरीत संध्यामां प्रसव पामे छे. पूर्व, उत्तर, अने ईशान कोणने आश्रीने जे मेघगर्भ बंधाय छे ते पूजित गणवामां आव्या छे (भ. सं. १२; १९) ज्यारे वा. सं. (२२, १४, १६) अनुसार उत्तर, ईशान कोण, अने पूर्व दिशाना वायुमा आकाश विमल, आनंदकर, अने मृदु होय छे. चंद्र अने सूर्य स्निग्ध, सफेद, अने घणा घेरदार होय छे. इंद्रधनुष अने गंभीर गर्जनयुक्त सूर्याभिमुख, वीजळीनो प्रकाश करवावाळो उत्तर, ईशान, अने पूर्व दिशामां आवेल मेघ पक्षी अने मृगकुलना शांत रहेवाथी संध्या काळ रमण ठीक लागे छे. अहीं (वा. सं.) हमणां जणाव्यु ते वर्णन जुदुं छे छतां एनो ध्वनि भ. सं. नी हकीकतना ध्वनि जेवो छे. भ. सं. प्रमाणे जे नक्षत्र, तिथि, मुहूर्त, करण, अने दिशामां जो स्निग्ध (चीकणा) मेघ उत्पन्न थाय तो ते पूजित छे (१२, २६) ज्यारे वा. सं. मां कहुं छे के स्थूळ अने घणा ज चीकणा मेघो वाळु आकाश शुभ छे (२२; १५). ठंडो वायु, वीजळी, गर्जना, अने परिवेष युक्त तमाम गर्भ प्रशस्त छ एम भ. सं. (१२, ८) मा जणाव्युं छे ज्यारे वा. सं. मां कडं छे के चैत्रमा बधो गर्भ पवन, मेघ, वृष्टि, अने परिवेष युक्त होय तो ते शुभ छे. वैशाखमां वायु युक्त होय तो ते गर्भ शुभ छे (२२, २२). जळचर प्राणिओना आकार वाळो मेघ प्रशस्त छे (भ. सं. १२, २४); सारीआकृति अने सारा रंग वाळो मेघ पूजित छे (भ. सं १२, २७). वा.सं. मां आ बाबतमा एम निर्देश करवामां आव्यो छे के मोती, चांदी, तमाल, नील कमळ, अंजननी द्युतिना जेवो अथवा जळचर प्राणिओना जेवा आकार वाळो मेघ घणो वरसाद वरसावे (२२,२३). उल्का, वज्र, दिग्दाह, गंधर्वनगर, केतु, ग्रहयुद्ध, निर्घात, परिघ, इंद्रधनुष, राहुदर्शन वगेरे उत्पातोथी गर्भनो नाश थई जाय छे-आ कथन बन्ने संहिताग्रंथोमां लगभग समान छे (भ. सं. १२; १० थी १३. वा. सं. २२, २५-२६). भ. सं. (१२; १६) मां कहेवामा आव्युं छे के आर्दी अने आश्लेषामा उत्पन्न थयेल गर्भ उत्तम पाणी वरसावे छे ज्यारे वा. सं. (२२, २९) मा ए गर्भ शुभदायी छ एम जणाव्युं छे. आ गर्भलक्षणनी बन्ने ग्रंथोमा करवामां आवेली चर्चा उपरथी से'जे समजी शकाशे के मूळ बाबतो पूरतुं बन्नेमा घणुं ज सादृश्य छे. उत्पात उत्पातनुं वर्णन भ. सं. ना चौदमा अध्यायमा अने वा. सं. ना छेताळीसमा अध्यायमा करवामां आव्युं छे. बन्ने ग्रंथोमां उत्पात संबंधी जे विचारो, अनुमानो, अने अवलोकनो रजू करवामां आव्या छे तेनी तुलना बीजा बधा विषयो करता रसिक अने महत्त्वनी छे. तेनुं एक मुख्य कारण ए पण छे के वा. सं. मां आ विषयनी रजूआत अने चर्चा अन्य विषयोने मुकाबले कांईक सविस्तर करवामां आवी छे. एथी बन्ने ग्रंथोनी आ विषयनी छणावट शक्य बने छे. आ बाबत सर्व प्रथम स्पष्ट करवी जोइए के वा. सं. मां उत्पातोनुं वर्गीकरण अने वर्णन कांइक ट्रंकु छतां सुस्पष्टपणे करवामां आव्युं छे ज्यारे भ. सं. मां बधा श्लोको कोई ढंग-धडा विना जेम आवे तेम लखी काढवामां आव्या छे. एटले लांबा विवेचननी दृष्टिए भ. सं. मूल्यवान छे छतां व्यवस्थित निरूपणना मुद्दा पूरती वा. सं. करता घणीज उतरती छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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