Book Title: Bhadrabahu Samhita
Author(s): Bhadrabahuswami, A S Gopani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 33
________________ in Education International For Private & Personal Use Only [ भद्रबाहुसंहिता सिंघी जैन ग्रन्थमाला] राणा श्री सई ज्ञाया। मागधेषु पुरख्यात ना चारा अमृखुरामा ना जनपदा कोर्सना ना गुण विश्वषिते। तत्रा विमेनजि डा जायका राज ऐःखले व स्मिनाशेलो उदिया तो नाम्रा एंड गिरिःखत ॥ श्ना नाहरू समा की सोनाना विहगा सवितः। चउध्यादे। मारातिश्व साइनिश्रो शातित ।। सवासानं महा ज्ञानं ज्ञान विज्ञान साग रातप। युक्त क्रियाशच्या तर बाऊं निराश्रये ॥। ४ द्वादशां गम्य विचार निर्गव सम हा घुर्तिः। शिव शिष्टेन तचाव दिन नमस्य शिरसा वन मूड शिष्पावनस्पतिं । साईषु प्रतिमन सो दिव्यं ज्ञानं सरः॥६ पार्थिवानाः हिना वा यति कृणी मुख काम्यया । था व काना हि नार्घाय दिव्यं ज्ञानं ब्रवीहिना सत्यातंचा राजा निमित्रता। विजिगाड चिरमति मुख्याधि मही सदा ॥ राजाति पूजिता सार्वशिक्षावाध जारिए। विहरति निसद्विना । चनरा ज्ञानिष्ट जिता । पापस्वत्यातिकंहद्वाजसु (ईशांत रंगवा स्फीती जनव दो (वेव संश्राय पुराव दिना ॥ : १०या व काश्विरमं कल्पादिवा ज्ञातिनाहउना। संश्राययुः परं तीर्थ सदास झामि ।।११ सार्वनामिव सत्रानां दिव्यं ज्ञान सुखावहे | ति कुकाणां शिशाषण पराये ।डाप्जा विनं।॥। १२ विनास द्वादशाना शिव मूल्यामवसाना विनाराहि ज्या सामावहितमुच्यता३ सुरक्याल डायँ विस्पष्टं शिष्य मुरवावहै । स ज्ञताषित न किए ज्ञानं द्रवी द्विनः। १४ उल्कासमा साताव्यासात्यशिवा मनूनी । विद्या तिश्चाणि संख्या घावातान् । नगरं गतयात्रा त्या दिकं त वाह वारंटशनगृहमुचमवः ॥ १६वा ति कां ताम्रमांशू तिथातया। करणानिनिमित्तेवर ताणां पातुमेव ॥ १७ ॥ द्यातिषं कंव लंकाले नामवेद्यासदेव ॥ल सव्यंजनविला ॥१८ क्लोनलच स विपरित पराजये। त सबैमनु शर्वणात काहि म दातपः। एस इनिसान्यया दिष्टान् लग व नूका हैसि। शुश्रूषवासावियमान्य जसाधवः ।। 20 इति निर्येन बाऊक निमित्रांगस खायानाम्प्रवामाः। तत्रोवाच लगवान दिशा सा श्रवण समयावचा व विन्यासेादशांग विशारद । लवद्भिर्यदहं पृष्टो निमित्रं जिनसा बितासमासव्यास सार्वनिश्वाधत यथा विधिः॥ २ असते यान्यमाज्ञावाविकारसु स उच्यत । एवं विकारा विज्ञयो प्रसते न्यागमः ३ पाटण प्रति, आद्य पत्र जैन ज्ञानगंवार

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