Book Title: Bhadrabahu Samhita
Author(s): Bhadrabahuswami, A S Gopani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 24
________________ किंचित् प्रास्ताविक भभण कंपोजिटरने लेखकनी लखेली कॉपीमां जे अक्षर जेवो समजाय ते माटे तेवा ज अक्षरनुं बीबूं ते गोठवे छे. 'सायण' शब्दमा लखेलो 'य' जो तेने 'प' जेवो लागे तो ते 'य' ना बदले 'प' मूकी 'सायण' नुं 'सापण' रूपे कंपोज करशे. ते जरीत अभण लहियाओनी पण समजवी जोईए. उदाहरण तरीके, प्रस्तुत ग्रन्थनी पाटण अने पूना वाळी जे बन्ने प्रतियोनो निर्देश उपर करवामां आव्यो छे, तेना लहियाओना लखाणने ज जो ए दृष्टिए आपणे जोईए तो तेनी दरेक पंक्ति आवी जातनी भूलोथी भरेली देखाशे. लहियाओना भक्षरो एटला बधा सुन्दर लागे छे के प्रथम दृष्टिए आपणने ए उत्कृष्ट स्वरूपनी आदर्श नकलो जेवी जणाय छे, परंतु ज्यारे एने शुद्धाशुद्धतानी दृष्टिए जोवा मांडिए छे तो ते भ्रान्तिनी प्रतिमूर्तियो जेवी ज लागे छे. उदाहरण तरीके, पूनावाली प्रतिमां प्रथमाध्यायनो समाप्तिसूचक पुष्पिका लेख ज्यारे "इति निग्रंथे भद्रबाहुके निमित्ते अंगसंचयो नाम प्रथमोध्यायः॥ छ॥" आवी रीते शुद्ध भाषामा लखेलो छे, त्यारे ए ज पुष्पिकानी पंक्ति पाटणवाळी वधारे प्राचीन अने वधारे सुवाच्य अक्षरोमां लखेली प्रतिमां, नीचे बताच्या प्रमाणे, भ्रष्टस्वरूपमां लखेली छे "इति निर्ग्रथन (?) भद्रबाहुके निमित्तोंग (?) समुयो (?) नाम प्रथमोऽध्यायः ॥ छ ॥" आ नानकडी पंक्तिमा लहियाए ३ भूलो करी छे. 'नैपॅथे' ना बदले 'निग्रंथन', 'निमित्ते अंग' ना बदले 'निमित्तोंग', 'संचयो' ना बदल 'समुयो'. आ भूलो लहियाने जूनी लिपिनुं वळण बराबर न समजावाथी थवा पामी छे. आवी रीते अपठित लिपिकारोना हाथे भा ग्रंथमा घणा पाठो भ्रष्ट रूप पामेला छे अने तेथी पण ग्रंथनी संकलनामा घणी ज शिथिलबन्धता आवी गएली दृष्टिगोचर थाय छे. प्रस्तुत ग्रन्थ अपूर्ण लागे छे. वळी प्रस्तुत ग्रन्थ, एना प्रथम अध्यायमा जणावेल 'अंगसंचय' रूप विषयानुक्रमनी दृष्टिए अपूर्ण लागे छे. ए विषयानुक्रम प्रमाणे तो एमां लगभग १५ थी ५० जेटला अध्यायो होवा जोईए. त्यारे आ उपलब्ध कृतिमा २६ ज अध्याय मळे छे. एअध्यायोमाथी २ थी २४ अध्याय सुधीन विषयनिरूपण तो अनुक्रममा सूचव्या प्रमाणे ज यथाक्रमे करवामां आवेलुं छे, परंतु २५ मा अध्यायमां ज्यारे अनुक्रम प्रमाणे 'वातिक' योगोनुं वर्णन आवq जोईए त्यारे एमां तेना बदले 'संग्रहयोगार्घकांड' नामना विषयर्नु वर्णन आपेलुं छे. २६ मो अध्याय 'स्वप्न' विचारविषयक छ जे अनुक्रम प्रमाणे यथास्थाने मळतो आवे छे, परंतु ते पछी मुहूर्त, तिथि, करण, निमित्त आदि विषयोनां वर्णनवाळा अध्यायो होवा जोईए जे सर्वथा उपलब्ध नथी. तेम ज प्रारंभमां जेम प्रास्ताविकरूपे ग्रन्थारंभ विषयक केटलुक उपोद्घातात्मक वर्णन करवामां भाग्युं छे तेम अन्तमा उपसंहारसूचक पण जे काईक वर्णन होवू जोईए, ते पण उपलब्ध अन्तिम अध्यायमा नथी मळतुं. तेथी आ ग्रन्थ प्रस्तुत स्वरूपमा अपूर्ण छे, एम मानवु प्राप्त थाय छे. एम लागे छे के उपलब्ध भाग, ए ग्रंथनो पूर्वभाग के पूर्षखंड हशे अने ए पछी आवता मुहूर्त आदि विषयोना अध्यायो उत्तरखंडरूपे हशे, जे प्रस्तुत कृतिना प्रतिलिपिलेखकोने उपलब्ध थयो नहिं होय, के पछी ते पहेला ज क्यारेक नष्ट थई गयो होय. पूनावाळी प्रतिना लेखकने जे जूनी ताडपत्रीय भादर्श प्रति मळी हती तेमा ए ग्रन्थना संपूर्ण २६ अध्यायो लखेला हता त्यारे पाटणवाळी प्रतिना लहियाने जे प्रति मळी हती तेमां २२ अध्याय ज पूरा हता अने ते पछीनो अध्याय अपूर्ण हतो. अने ए अध्याय पण पूनावाळी प्रति करतां तद्दन जुदा ज प्रकारनो भने जुदा ज विषयना वर्णनवाळो देखाय छे. पूनावाळी प्रतिमां 'आदित्यचार' विषयवाळा २२ मा अध्याय पछी २३ मो अध्याय 'चन्द्रचार' विषयक मळे छे, त्यारे पाटणनी प्रतिमां ते राहुना 'अन्तश्चार' विषयनो छ. ए विषय बीजी कोई उपलब्ध प्रतियोमा मळतो नथी. तेथी ए पाटणवाळी प्रति कोई जुदी ज परंपरावाली प्रतिनी प्रतिलिपि होवानी पण सूचक लागे छे. ए प्रतिमां शब्दो, वाक्यो अने श्लोकोना पाठभेदो पण घणा विपुल प्रमाणमा दृष्टिगोचर थाय छे. अध्यायोनी समाप्तिसूचक पुष्पिकापंक्तियो पण घणा भागे जुदी जातनी मळे छे. पूनावाळी प्रतिमा एकचार' विषयक २३१ श्लोकनो जे अध्याय छे तेने पाटण मा २ अध्यायोमा विभक्त करेलो छे. १ थी १८४ सुधीना लोकोनो 'शुक्रचार' नामनो जुदो अध्याय छे अने ते पछीना ४२ श्लोकोनो शुक्रना 'वक्रचार' नामनो जुदो अध्याय करवामां भाव्यो छे. तेना श्लोकांको पण जुदा ज लखवामां आव्या छे. ग्रन्थनी शैली अने संकलनानी दृष्टिए जोतां पाटणनो अध्यायविभाग बराबर पण लागे छे. कारण के १८४ मा श्लोकसाथे 'शुक्रचार'नो विषय समाप्त थाय छे, अने . पाटणवाळी प्रतिमां आ बन्ने अध्यायोना पृथक्त्वसूचक पुष्पिकालेखो आ प्रमाणे छे-प्रस्तुत पुस्तकना पृ. ४४ उपर जे १८४ मो श्लोक छे ते पछी आ प्रमाणे अध्यायसमाप्तिज्ञापक पंक्ति छे-'इति नैथे भद्रबाहके निमित्ते शुक्रचारः समाप्तः।' तथा पृ. ४६ उपर जे अध्यायसूचक पुष्पिका मुद्रित छे तेना स्थाने पाटण° मां आ प्रमाणे पंक्ति छ-'इति शुक्रचारस्य वक्रचारः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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