Book Title: Barsanupekkha Author(s): Kundkundacharya, Vishalyasagar Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 8
________________ बारसाणु वेदस्ता હ (४) अन्यत्व भावना :- यह शरीर आदि भी अन्य है। पुनः जो बाह्रा द्रव्य हैं। वे तो अन्य ही हैं। आत्म ज्ञान दर्शन स्वरूप है। इस प्रकार अन्यत्व का चिंतन अन्यत्व अनुप्रेक्षा है। (५) संसार भावना:- यह संसारी जीव जिनमार्ग को न जानता हुआ प्रचुर जन्म मरण युक्त बुढ़ापा भय से युक्त द्रव्य, क्षेत्र काल, भाव, भत्र रूप पांच प्रकार के संसार दीर्घकाल तक भ्रमण करता है। ऐसा चिंतवन करना संसार अनुप्रेक्षा है। (६) लोक भावना:- अधोलोक वैत्रासन के समान है। मध्य लोक झल्लरी के समान है। और ऊर्ध्वलोक मृदंग के समान है। एवं चौदह राजू प्रमाण इस लोक की ऊंचाई हैं। इस लोक में जीव अपने कर्मों द्वारा निर्मित सुख, दुख का अनुभव करते हैं। भयानक अनन्त मय समुद्र में पुनः पुनः जन्म मरण करते हैं। ऐसा चिंतवन करना लोकानुप्रेक्षा है। (७) अशुभ अनुप्रेक्षा:- (अशुचि भावना ) मॉस अस्थि कफ वसा रुधिर चर्म पित्त ऑत मूत्र इन अपवित्र पदार्थों की झोपड़ी रूप बहुत प्रकार के दुख और रोगों के स्थान स्वरूप इस शरीर को अशुभ ही जानो ऐसा चिंतवन करना अशुभ अशुचि अनुप्रेक्षा है। (८) आस्रव भावना:- हिंसा आदि आस्रव द्वार से पाप का आना होता है। उससे निश्चित ही विनाश होता है। जैसे कि आम्रव से सहित नौका समुद्र में डूब जाती है। इस प्रकार बहु प्रकार का कर्म दुष्ट है जो कि ज्ञानावरण आदि से यह आठ प्रकार का है। तथा दुख रूप है। फलवाला है ऐसा चितवन करना आम्रव अनुप्रेक्षा है। , (९) संवर भावना:- मिथ्यात्व अविरति कषाय और योग इनसे आत्मा में जो कर्म आते हैं। वे क्रमशः सम्यग्दर्शन, विरति, इन्द्रिय निग्रह और योग निरोध इन कारणों से नहीं आते हैं। रुक जाते हैं। इस प्रकार कर्मों का आना आस्रव और कर्मों का रुकना संवर हैं। (१०) निर्जरा भावना:- जिनका आम्रव रुक गया है जो तपश्चर्या से युक्त होते हैं उनकी निर्जरा होती है। जिनके सर्वकर्म निजीर्ण हो चुके है। ऐसा जीव जन्म मरण के बंधन से छूटकर अनन्त सुख को प्राप्त कर लेता है। इस कारण निर्जरा अनुप्रेक्षा का चिंतवन करना चाहिए।Page Navigation
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