Book Title: Ath Shatkalyanak Nirnay
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 16
________________ [ ४ ] पांच स्थान हुये कहो अथवा पांच कल्याणक हुये कहो, ईन तीनों शब्दों का तात्पर्यार्थ एकही होता है इस बातका विशेष निर्णय आगे करमेमें आवेगा ॥ और स्वाति नक्षत्र में भगवान् का मोक्षहुवा इस तरह से गिनती मुजब श्री वीरप्रभु के छः कल्याणक पंचांगी के अनेक शास्त्रानुसार प्रत्यक्षपने सिद्धहै इस लिये छः कल्याणकों को निषेध करने वाले गच्छकदाग्रही उत्सूत्र भाषण से और कुयु क्तियों से बाल जीवों की सत्य बातपर से श्रद्धाभ्रष्ट करके मिथ्यात्व बढ़ाते हुये संसार वृद्धिका हेतु करते है सो न्याय दृष्टि से विवेकी पुरुषों को विचार करना चाहिये, तथा गर्भापहारको कल्याणकत्वपनेसे निषेध करनेके लिये कुयुक्तियों करके भोले जीवोंको भ्रमाने में आते है जिसका भी निर्णय आगे करने में आवेगा । } और गणधर महाराज श्रीसुधर्मस्वामीजीने श्रीस्थानां गजी सूत्रके पंचमें स्थानांग के प्रथम उद्देशमें श्रीपद्म प्रभु जी श्री सुविधिनाथजी श्री शीतलनाथजी आदि १४ तीर्थं कर महाराजों के व्यवनादि पांच पांच कल्यणकों की व्याख्या करीहै उसीमें भी श्री वीरप्रभुके कल्याणकाधिकारे गर्भापहार को कल्याणकत्वपने में खुलासा पूर्वक गिना है जिसका भी पाठ यहां पाठक वर्गको निःसंदेह होने के लिये दिखाता हूं, सो सूत्र वृत्ति सहित (जैनागम संग्रह के भाग तीसरे में ) रूपाहुवा श्रीस्थानांगजी सूत्र के पृष्ठ ३६३ । ३६४ का पाठ नीचे मुजब जानो यथा; - पठमप्पभेण भरहा पंचचित होत्या, तंजा, चित्ता हि जुए चहत्ता गर्भवकुंते, वित्ताहिं जाए, चित्ताहिं मु'डे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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