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[ १६ ] आप्तमीमांसा केवल आप्तकी ही मीमांसा नहीं है, किन्तु आप्तके व्याजसे समस्त दर्शनोंकी मीमांसा है । साथ ही जैनदर्शनके प्राण स्याद्वाद, अनेकान्तवाद, सप्तभंगीवाद और नयवादको समझनेकी तो कुञ्जी है। इस एक ग्रन्थके अवगाहनसे समस्त भारतीय दर्शनोंका सम्यक् रूप दृष्टि पथमें आ जाता है। आशा है इस व्याख्यासे इसके पठन-पाठनको और भी अधिक बल मिलेगा तथा विद्वद्गण इस कृतिका मूल्यांकन सम्यक्रीतिसे कर सकेंगे।
वाराणसी ३१-१२-७४
कैलाशचन्द्र शास्त्री
अधिष्ठाता श्री स्याद्वाद महाविद्यालय
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