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अनेकान्त
के दरवाजे पर एक पपासनी दि० जन मूर्ति उत्कीर्ण है। पर नत्य पथक तथा वाद्य पथक अनेक वाद्यों से अलंकृत है
मूल मंदिर की रचना दो भागों मे बट सकती है। दरवाजे पर भी अनेक वाद्यपटु बताये गये हैं। इस सभागर्भागार और सभामडप । गर्भागार-बाहर से पचकोणा- मंडप की दीवाल में १२ तथा गर्भागार के पास के दो ऐसे कृति होकर प्रत्येक बाजू में जो देवली रखी है उनमे एक- कुल १४ स्तभ है। इस बीच एक और चार स्तंभ वाला एक क्षेत्रपाल की स्थापना की गई है। सभामडप चौरस सभामंडप है। इसके पश्चिम-दक्षिण के स्तंभ पर एक ६ है, इसके पूर्व, पश्चिम और दक्षिण मे ३ दरवाजे है। इंची खड़ी नग्न प्रतिमा है। इस बीच के सभामडप में इन तीनों द्वार के सामने स्वतंत्र तीन छोटे सभामडप जमीन पर पाषाण की कमलाकार रचना की है। बनाये गये थे, लेकिन सामने के दर्शनीय भाग का सभामडप जब गर्भागार में प्रवेश करते है तो वह अन्दर से नष्ट हा है। उसके अवशेष प्रभी वहा पड़े हुए है । एक चौरस और एकदम 'लेन देख कर अाश्चर्य होता है । अन्दर बडा भन्न धर्मचक्र भी उस प्रसिद्ध कुवा के पास रखा कोई शिल्प या नक्शीका काम नहीं है । सीधे हाथ के कोने गया है।
मे एक अखड पापागाका मानम्तभ है । उस पर सामने का मदिर पूर्वाभिमुख है। मदिर में प्रवेश करने के पहले उल्लेख करने वाला शिलालेख है। अन्दर वेदी पर तथा ऊपर उल्लेखित शिलालेखो पर नजर जाती है। तथा बाहर भी सगमरमर की अनेक दि० जैन मूर्तिया है तथा उसके ऊपर प्राज 'श्री प्रतरिक्ष पाश्वनाथ दिगम्बर जैन पापाण की एक पच परमेष्ठी की प्रतिमा वहा है जो अति पौली मदिर' ऐसा बोर्ड भी लगा हुआ है। इस पर से प्राचीन है। श्वेताम्बर यात्री भी यह कहते है कि यह मदिर दिग- इस मदिरकी मूर्तिया, यत्र, शिलालेख तथा घण्टा प्रादि म्बरों का ही है। तथा अनपढ़ प्रादमी भी इस मंदिर के उपकरण मबधी दो लेख अनेकान्त के पिछले अंको में क्रमश शिल्प को देखकर कहते है कि यह मदिर दिगम्बर जैनो प्रसिद्ध हए ही है। अदाजा १०-१५ साल पहले इस मदिर का ही है। क्योंकि इस मदिर के जो ३ द्वार है उन पर के प्रसिद्ध कूप का गार निकालते समय एक दो फुट को प्राज बाज २ यक्षेन्द्र तथा कम से कम एक फुट ऊँची ऐसी पद्मासनी पाषाण की प्रतिमा मिली थी, उसका सिर धड़ से दो-दो खड़गासन प्रतिमाजी उत्कीर्ण है, और ऊपर एकेक अलग था, लेकिन शिल्पकार ने पूरी वीतरागता उसमे भर पपासन मति है। इसी तरह गर्षागार के द्वार पर भी दी थी। यह प्राचीन प्रतिमा इस मदिर मे स्थापन की एक पद्मासन मूर्ति है।
होगी मगर परचक्र के प्राकमग मे इसका विध्वस किया तथा गर्भागार के पास सीधे हाथ के कोने में स्तभ गया होगा। इसलिए उसे जल समाधि दी गई है। पर एक ६ इंच की खडी नग्न प्रतिमा उत्कीर्ण है। रचनाकाल और क्रम-इस मंदिर को देखने के बाद इसलिए गर्भागार में जाकर प्रभुजी के दर्शन करने के ऐसा लगता है कि इस मदिर का काम चार बार प्रा है पहले मन मभामंडप के स्तम्भो पर के शिल्प देखने में दग और वह भी अन्त मे अधूरा ही रहा है। महाद्वार का होता है। वह जैसा थोडा पीछे हटता है वैसे ही उसको अकेला रहना या परिकर नही होना यह तो उसकी पश्चिमोत्तर बाज के स्तम्भ पर पूर्वाभिमुख खडी ६ इच ऊची अपूर्णता ही दिखती है। मगर मूल मदिर मे पापाण का हाथ मे पीछी कमण्डलु लिए हुए प्रतिमा दिखाई देती है। इस काम दो दफे हुआ है, बाद मे चना और ईट का काम भी पर से जान पडता है कि इस मदिर के निर्माण में किसी दो दफे होकर ऊपर शिखर को सिर्फ चाल छोड़ी है, दि. जैन मुनि का सहयोग जरूर रहा होगा।
शिखर की अपूर्णता पूरे बाधकाम की अपूर्णता ही बताती उसी स्तम्भ पर प्रभुजी के जन्माभिषेक समय प्रभु के है। माता-पिता को जो कृत्रिम निद्रा पाती है उसका दृश्य पाषाण का काम दो दफे हमा था, यह कहने के दो बहुत ही उठावदार है। बाजू मे उन माता पिता की सेवा हेतु है । (१) मदिर पर जो दर्शनीय भाग के दरवाजे पर करने वाले देवगण है। उसी पोर उसके सामने के स्तंभ लेख खुदा है उसमे ई०स०१४०६ तथा जयसिंह राजा