Book Title: Anekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ पौली मंदिर, शिरपुर नेमचन्द धन्नूसा जैन शिरपुर जिला अकोला मे श्री प्रतरिक्ष पार्श्वनाथ प्रभु मादि की दि० जैन प्रतिमाएं स्थापित है, तो भी इस नाम के दो दिगम्बर जैन मंदिर हैं। जहा प्राज देवाधिदेव ही श्री प्रतरिक्ष पाश्वं प्रभु की मूर्ति के लिए यह मंदिर १००८ श्री अंतरिक्ष पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है बधाया गया था इसलिए इस मदिर को प्राज भी श्री पं. और जिसके दोनो मंजिल पर अनेक दिगम्बर जैन मूर्ति पार्श्व पौली मंदिर ऐसा ही कहते हैं। पादुका, गुरुगादी प्रादि विराजमान है। इसका विवेचन या यों कहिए कि यह इस मदिर का विशेष नाम' हम आगे करेगे। आज जिस मदिर की जानकारी हम है, शास्त्रो मे जिसे 'नाम निक्षेप' कहते है। क्योंकि इस वाचक को देना चाहते है वह है दूसरा मदिर। जो गाव मंदिर पर जो शिलालेख ई. स. १४०६ का सत्कीर्ण है के पश्चिम मे और हेमाडपंथी है। यह मदिर एलिचपुर उसमे 'अंतरिक्ष श्री पार्श्वनाथ' यह नाम है। और इसी के धोपाल ईल राजा ने बनवाया है। यह मदिर बगीचे मे लिए इस मंदिर को श्री प्रतरिक्ष पार्श्वनाथ पौली मदिर है और यहा के ही पुगने कुवां के जल से श्रीपाल-ईल कहते है। गजा का कुष्ट रोग गया था। आज भी श्रद्धापूर्वक इसी पानी का उपयोग करने से अनेको लोगो के कुष्ट, इस लेख के ऊपर के एक शिला पर 'श्रीमन्नेमिचन्द्राचर्मरोग, नष्ट हो रहे है और उदर व्याधि भी चली जाती चार्य प्रतिष्ठित दिगंबर जैन मदिर' ऐसा लेख मिलता है। है ऐमा अनुभव प्राता है। दीर्घ काल भगवान की इससे इतना तो स्पष्ट है कि यह मदिर प्राज तक प्रतिप्रतिमा इसी कप मे रही है तो उसके ससर्ग से उस जल ष्ठित है, ऐसा जो श्वेताम्बर कहते है वह प्रसत्य है और होगये होगे तो प्राश्चर्य नही। श्री नेमिचद्राचार्य नाम के दि० मुनि के तत्वावधान में इस मंदिर की प्रतिष्ठा हुई है। बड़ी भक्ति और श्रद्धा के बाद राजा ईल को यह प्रतिमा मिली थी। अत वे इस प्रतिमा को एलिचपुर मंदिर की रचना शैली और शिल्प-यद्यपि इस ले जाना चाहते थे। लेकिन वह यहां ही-जहा बस्ती । र मदिर का काम देवगिरी के हेमाद्विपत के करीबन एक मदिर बना है-स्थिर हो गई । इसलिए बीच मे शतक पहले प्रारम्भ हुपा था, तो भी बाद मे ही पूरा ही इसकी स्थापना करने के बजाय जहाँ इसको प्राप्त करने का प्रयत्न किया गया इसलिए इस मदिर को किया वहा ही इसके लिए भव्य मंदिर बना कर उसमे हेमाडपथी ही कहते है। अर्थात् यह मदिर मूल में पूरा इस प्रतिमा को स्थापन करना इस हेतु से ईल राजा ने पापाण का ही है और पाषाण को मिट्टी या चना सेन यह मंदिर निर्माण किया। लेकिन मूति यहा से न हटने जोड़ते हुए लोहे के कांच से जोड़ा गया है। के कारण इस मंदिर में प्रभु की मूर्ति की स्थापना न हा मदिर के सामने एक महाद्वार बनाया गया है इससे सकी। यद्यपि इस मंदिर में बाद में अन्य अनेक पात्र प्रस्टिा के दौ-गि १. श्वे. लोग कहते हैं कि "राजा को इस मंदिर निर्माण ऐमा लगता है, लेकिन वह पूरी न हो सकी, पोर यह करने के बाद गर्व हो गया था, इसलिए प्रतिमा ने प्रवेशद्वार प्राज धूप तथा पानी के मार से जीर्ण हो गया इस मंदिर में प्रवेश नहीं किया" यह बात एकदम है। इसकी मरम्मत प्रदाजा २०० साल पहले हो गई थी मगर अभी इसकी पश्चिम बाजू गिर गई है। इसके पूर्व

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 316