Book Title: Agam 44 Chulika 01 Nandi Sutra
Author(s): Devvachak, Jindasgani Mahattar, Punyavijay
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 25
________________ जिणभदखमासमणं निच्छियमुत्तऽथदायगामलचरणं । तमहं वंदे पयो परमं परमोवगारकारिणं महग्धं ।। २ ॥ ॥जीतकल्पचूर्णिः समाप्ता । सिद्धसेनकृतिरेषा ।। (१४) आवश्यकचूर्णी । अन्तः करणनयो—सवेसि पि नयागं० गाधा ॥ इति आवस्सगनिज्जुत्तिचुण्णी समाप्ता ।। मंगलं महाश्रीः ।। (१५) दशकालिकसूत्रअगस्त्यसिंहचूर्णी । अन्तः एवमेत धम्मसमुकित्तगादिचरण-करणाणेगपरूवणागभं नेवाणगमणफलावसागं भवियजणागंदिकरं चुण्णि समासवयणेण दसझालियं परिसमत्तं ।। नमः । वीरवरस्स भगवतो तित्ये कोडीगणे सुविपुलम्मि । गुगगयवहाभस्सा वैरसामिस्स साहाए ॥१॥ महरिसिसरिससभावा भावाऽभावाण मुगितपरमत्था । रिसिगुत्तखमासमणा खमा-समाणं निधी आसि ॥२॥ तेसिं सीसेण इमा कलसभवमइंदणामधेन्जेगं । दसकालियस्स चुण्णी पयाण रयणातो उवणथा ।। ३ ।। रुयिरपद-संधिणियता डेयपुणरुत्तवित्थरपसंगा । वक्खाणमंतरेणावि सिस्समतिबोधणसमत्था ॥ ४॥ ससमय-परसमयणयाण जंथ ण समाधितं पमादेणं । तं खमह पसाहेह य इय विण्णत्ती पवयणीणं ॥५॥ ॥ दसकालियचुण्णी परिसमत्ता ॥ (१६) दशकालिकसूत्रचूणि वृद्धविवरणाख्या । अन्तः अज्झयणाणंतरं 'कालगओ समाधीए' जीवणकालो जस्स गतो समाहोए त्ति । जहा तेण एत्तिएण चेव ...... आराहगा भवंति त्ति ॥ दशवकालिकचूर्गी सम्मत्ता ॥ ग्रन्थाग्रन्थ ७४०० ॥ (१७) उत्तराध्ययनचूणि । अन्तः वाणिजकुलसंभूतो कोडियगणितो य वज्जसाहीतो । गोवालियमहतरओ विक्खातो आसि लोगम्मि ।। १ ।। ससमय-परसमयविऊ ओयस्सी देहिमं सुगंभीरो । सीसगणसंपरिवुडो वक्वाणरतिप्पियो आसी ॥२॥ तेसि सीसेण इमं उत्तरझयणाण चुग्गिखंडं तु । रइयं अगुग्गहत्थं सीसाणं मंदबुद्धीणं ।। ३ ।। जं एत्थं उस्मुत्तं अयाणमाणेण विरतितं होजा । तं अणुओगधरा मे अणुचिंतेउं समारेंतु ॥ ४॥ ॥ षट्त्रिंशोत्तराध्ययनचूर्णी समाप्ता ॥ ग्रन्थाग्रं प्रत्यक्षरगणनया ५८५० ॥ (१८) नन्दीमत्रचूर्णि । अन्तः णि रे ण ग म त ण ह स दा जि या (?) पसुपतिसंखगजट्रिताकुला । कमद्विता धीमतचिंतियक्खरा फुडं कहेयंतऽभिधाण कत्तुणो ॥१॥ शकराज्ञो पञ्चसु वर्षशतेषु व्यतिक्रान्तेपु अष्टनवतेषु नन्द्यध्ययनचूर्णी समाप्ता इति ॥ ग्रन्थानम् १५०० ॥ (१९) अनुयोगद्वारसूत्रचूर्णि । अन्तः चरणमेव गुणो चरणगुणो । अहवा चग्णं चारित्रम् , गुणा खमादिया अणेगविधा, तेनु जो जहदिओ साधू सो सव्वणयसम्मतो भवतीति ॥ ॥ कृतिः श्रीश्वेताम्बराचार्यश्रीजिनदासगणिमहत्तरपूज्यपादानामनुयोगद्वाराणां चूर्णिः ॥ १. इस चूर्णि पर टिप्पन रचनेवाले श्रीश्रीचंद्रमूरिजी प्रस्तुतचूणिका बृहच्चूणिके नामसे उल्लेख करते हैं । Jain Education Intemational Jain Education Intermational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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