Book Title: Agam 44 Chulika 01 Nandi Sutra
Author(s): Devvachak, Jindasgani Mahattar, Punyavijay
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 136
________________ नन्दीसूत्र-तच्चूय॑न्तर्गतानां विषय-व्युत्पत्यादियोतकानां शब्दानामनुक्रमः । पत्र-पक्ति शब्द पत्र-पति पत्र-पंक्ति १३-२२ शब्द विमाणपविभत्ती वियाण वियाह वियाहचूला विरायने विविध विसाल विमुद्धतराग शब्द सजग सचबहुअगगिजीव सवतो संकिलिङ्क १८-५ . १७-११,१२ १९-५ १-१८.१९ श्रुतम् ६५--१२ ___ सइंसभाव सच्चप्पवाद समोगिभवत्थंकवणाण ७६-१२ सजोगी ७६-१ संज्ञा ४७-५ +संताणचोदक +संधर संलह गागत संकः [धन, *सण्यास ४४-४ विहार ४५-२१,२६ संख्य ४५-२५.२६ सिद्ध केवलणाम २८-८ सुत सुतगिन्सित ७४-७ ३२-१०,११ सण्गक्खर विहारकप्प ५८...२१ सम्गित वीतरागमन ५८--१८ सगी-संजी वीमंसा [१ णियः विवादि. ३६-१३ सनत [सं. स्वत: एहि दल-भावति विरि सती ४६-१३. सतंबुद्ध वी मंसा भणति ( पत्र ३६), १५,१६ राभाव २ आत-पर-इह-परस्थयहिला सम ऽहिनविमरिसो वीमनः पत्र समता ४६), अवा संकप्पतो समाण चेर विविधा आमरि सणा वोमंसा (पत्र ४६)।] सनुढाणसुम चारिय-पवाद समंता ६३-१० सम्मत्त ६२-२ सयंवुद्धसिद्ध ४-१९ सरीरपज्जती ६२--५ सललित वेणइय ६१-२१ सलिंगसिद्ध व्यञ्जन सवण व्यञ्जनाक्षर सवणता ६४-२२ सुयअण्माण सुयणाण ५०-२४ मुसवण ६-६ मुस्सव ग १७-१२ सम्पत्ती १२-२,३ वृत्ती वेला वेद २६-२३ २२-१४ हायमाण-हस्समाण २-१५ हेदिमखुड्डागपतर २४-१९ १२-२ हेतृवदेसअसगी-हेतुवाय४७.१०.११ ३५-२६ हेतृवदेससगी-हेतुवायस ४७-४,१० Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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