Book Title: Agam 44 Chulika 01 Nandi Sutra
Author(s): Devvachak, Jindasgani Mahattar, Punyavijay
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 113
________________ जिणदासगणिमहत्तरविग्इयाए चुण्णीए संजुयं [सु० १११-१२ ताहे-तियगादिविउत्तराए अउणनीसं न तियग ठावेतुं । पहमे णस्थि तु खेयो सेसेमु ईमो भवे खेवो ॥१४॥ दुग पण णवगं तेरस सत्तरस दुवीस छ च अटेव । वारस चोइस तह अट्टवीस छब्बीस पणुवीसा ॥१५॥ एकारस तेवीसा सीताला सतरि सत्तमत्तरि या । इग दुग सत्तासीती एगत्तरिमेव वावट्ठी ॥१६॥ अउणत्तरि चउनीसा छाताल सतं तहेव छब्बीसा । एते रासीखेवा तिगअंतंता जहाकमसो ॥१७॥ सिवगति-सट्टेहिं दो दो ठाण दिसामुक्त णेया । नार उगतीमटाणे उणतीसं पुण छवीसाए ॥१८॥ विसमुत्तरा य पढमा एवमसंख विसतरा णेया । सत्य धि अंतिल्लं अण्णाए आदिमं ठाणं ॥१९॥ गतं ॥ अउणत्तीसं वारा ठावेतुं पत्थि पढमए खेदो । सेसे अडतीसाए सवत्थ दुगादियो खेवो ॥२०॥ सिवगति पढमादीए वितियाए तह व होति सट्टे । इय एगंतरिताई सिक्गति-सव्वट्ठठाणाई ॥२१॥ एवमसंखेजाओ चित्तंतरगंडियाओ तब्धा । जाव जितसत्तुराया अजितांजणपिता समुप्पण्णो ४ ॥२२॥ 10 एवं गाहाहिं चित्तंतरगंडिया समत्ता । इमा एतासि ठवणा | सिद्धा लकवा १४१४ १४ १४:१४ | १४ १४ १४.१४ १४|१४ | सबढे लकवा | १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० | ५० एवं जाव असंखेजा पुरिसजुगा सिद्धा । अतो परं | सिद्धा लक्खा १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० | ५० | 15 | सबढे लक्खा | १४ १४, १४ १४ | १४ १४ | १४ १४ | १४ | १४ १४ एवं पि असंखेज्जा पुरिसजुगा सिद्धा । एते वि लक्खा| सिद्धा लक्खा ! २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२| | सबढे लक्खा २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२ एवं जाव असंखेजा आवलिया दुगादिएगुत्तरा दो [ जे० २२२ प्र० ] वि गच्छंति ।। 20 | सिद्धा१ | ३ ५, ७ ९ ११ १३ १५ १७ १९| | सबढे २ ४६ ८ १० | १२ १४ १६ १८ २० एवं असंखेजा । एगादेगुत्तरा पढमा चित्तंतरगंडिया णेया ॥ | सिद्धा १.५ ९ १३ १७ २१ २५ २९ ३३ ३७ ४१ | सबढे ३ ७ / ११ १५ १९ : २३ २७ ३१ | ३५। ३९। ४३ | 25 एवं असंखेजा । एनादिविउत्तरा वितिका चित्तंतरगंडिया ॥ १ मे भवे खेवा आ॥२ चित्रान्तर गण्डिका-तद्यन्त्रकदम्बकविशेषजिज्ञामुभिद्रष्टव्या अस्मत्सम्पादितनन्दिसूत्रहारिभद्रीवृत्त्यनन्तरमुद्रितदुर्गपदव्याख्यायाः १६७ तमे पत्रे टिप्पणी ॥ Jain Education Intemational Jain Education international For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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