Book Title: Agam 44 Chulika 01 Nandi Sutra
Author(s): Devvachak, Jindasgani Mahattar, Punyavijay
Publisher: Prakrit Granth Parishad
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अणुओगसुयं मूलपढमाणुओगो गंडियाणुओगो य ] सिरिदेववायगविरइयं णंदीमुत्तं ।
१०९. 'मूलपढमाणुयोगो' त्ति, इह मूलभावस्तु-तीर्थकरः, तस्य प्रथम-पूर्वभवादि, अहवा [जे० २२१ प्र० ] मूल एव प्रथमः मूलपहमाणुयोगो । एत्थ तित्थगरस्स अतीनभवभावा वट्टमाणभवे य जम्मादिया भावा कहि जति । अहवा मूलस्स जे पढमा भावा ते मूलपढमाणुयोगो भण्णति । एत्थ तित्थकरस्स जे भावा प्रसूतास्ते परियायसुत-सिस्साइया भाणितव्वा ॥
११०. से किं तं गंडियाणुओगे? गंडियाणुओगेणं कुलगरगंडियाओ तित्थगरगंडियाओ 5 चकवट्टिगंडियाओ दसारंगंडियाओ बलदेवगंडियाओ वासुदेवगंडियाओ गणधरगंडियाओ भद्दबाहुगंडियाओ तवोकम्मगंडियाओ हरिवंसगंडियाओ ओमप्पिणिगंडियाओ उस्सप्पिणिगंडियाओ चित्तंतरगंडियाओ अमर-णर-तिरिय-निश्यगइगमणविविहपरियट्टणेसु एवमाइयाओ गंडियाओ आघविज्जति । से तं गंडियाणुओगे । से तं अणुओगे ४ ।।
११०. गंडियाणुओगो त्ति इक्खुमादिपर्वगंडिकावत् एकाहिकारत्तणतो गंडियाणुओगो भणितो। ता य 10 कुलकरादियाओ, विमलबाहगादिकुलकराणं "पुन्वभव जम्म णाम प्पमाण" गाहा [ आव. नि. गा. १४९ ] एवमादि जं किंचि कुलकरस्स बत्तव्यं तं सव्वं कुलकरगंडियाए भणितं । एवं तित्थकरादिगंडियामु वि। 'चित्तंतरगंडिय' त्ति चित्रा इति-अनेकार्था, अंतरे इति-उसभ-अजियंतरे ता दिवा, गंडिका इति-खंडं, अतो चित्तरगंडिका भणिता । तासि पेरूवणे पुवायरिएहिं इमा विधी दिवाआदिच्चजसादीणं उसभस्स पयोपदे णरवतीणं । सगरमुताण सुबुद्धी इणमो संख परिकहेति ॥१॥
15 चौदस लक्खा सिद्धा णिवईणेक्को य होति सबढे । एवेकेकटाणे पुरिसजुगा होतऽसंखेजा ॥२॥ पुणरवि चोइस लक्खा सिद्धा निवतीण दोण्णि सबढे । दुगठाणे वि असंवा पुरिसजुगा होति णातव्या ॥३॥ जाव य लक्खा चोदस सिद्धा पण्णास होति सबढे । पण्णासटाणे वि तु पुरिसजुगा होतऽसंखेज्जा ॥४॥ ऐगुत्तरा तु लक्खा संबढे णेय जाय पण्णासा । एक्के कुत्तरठाणे पुरिसजुगा होतऽसंखेजा ॥५॥१।। विवरीयं सचढे चोदस लक्खाई निब्बुनो एगो । स चेव य परिवाडी पागासा जाब सिद्धीए ॥६॥२। तेण पर दुलरवादी दो दो ठाणा य समग वचंति । सिवगति-सपढेहिं इणमो तासि विही होइ ।।७।। दो लक्खा सिद्धीर दो लक्खा णरवतीण सबढे । एवं तिलक्ख चतु पंच जाव लक्खा असंखेजा ॥८॥३। सिवगति-सचट्टेहिं चित्तंतरगंडिया ततो चउरो । एगादेगुत्तरिया एगादिविउत्तरा वितिया ॥९॥ ततिएगादितिउत्तर तिगमादिविउत्तरा चतुत्थेवं। जि०२२१ द्वि०पडमाए सिद्धेको दोणि य सचट्ठसिद्धम्मि।।१०।। तत्तो तिण्णि णरिंदा सिद्धा चत्तारि होति सबढे । इय जाव असंखेजा सिवगति-सबट्ठसिद्धेहिं १ ॥११॥ 25 ताहे विउत्तराए सिद्धक्को तिणि होति सबढे । एवं पंच य सत्त य जाव असंखेज दो वि त्ति २ ॥१२॥ एग चतु सत्त दसगं जाव असंखेज होति दो वित्ति । सिवगति-सबढेहिं तिउत्तराए तु तव्वा ३ ॥१३॥
१परूवणा पुवायरिपहि इमा दिट्ठा आ. दा. ॥ २ एगुत्तरा उ ठाणा सबढे चेव जाव पण्णासा । पक्केकंतरठाणे दा० ॥ ३ सम्वट्ठाणे य आ० ॥ ४ तेसिं हारि वृत्तौ ॥ ५ दोणि त्ति दा० ॥ ६ रा पत्थ णेयव्वा आ० । 'राए मुणेयव्वा दा.॥
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