Book Title: Agam 44 Chulika 01 Nandi Sutra
Author(s): Devvachak, Jindasgani Mahattar, Punyavijay
Publisher: Prakrit Granth Parishad
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मल्लगदिट्ठनो]
सिरिदेववायगविरइयं गंदीमुत्तं । णं जाणति के वेसे सद्दाइ ?, तओ ईहं पविसति तओ जाणइ अमुगे एस संदाइ ?, तओ अवायं पविसइ तओ से उवगयं हवइ, तओ णं धारणं पविसइ तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं असंखेज्जं वा कालं ।
[२] से जहाणाभए केई पुरिसे अव्वत्तं सदं सुणेज्जा तेणं सद्दे ति उग्गहिए, णो चेव णं जाणइ के वेस सद्दे त्ति, तओ ईहं अणुपविसइ ततो जाणति अमुगे एस सद्दे, ततो 5 णं अवायं पविसइ ततो से उवगयं हवति, ततो धारणं पविसइ तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं असंखेज्ज वा कालं। एवं अव्वत्तं रूवं, अव्वत्तं गंध, अव्वत्तं रसं, अव्वत्तं फासं पडिसंवेदेज्जा।
[३] से जहाणामए केई पुरिसे अवत्तं सुमिणं पंडिसंवेदेज्जा, तेणं सुमिणे त्ति उग्गहिएँ ण पुण जाणति के वेस सुमिणे ति, तओ ईहं पविसइ तओ जाणति अमुगे 10 एम सुमिणे त्ति, ततो अवायं पविसइ ततो से उवगयं हवइ, ततो धारणं पंविसइ तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं असंखेज्जं वा कालं । से तं मल्लगदिटुंतेणं ।
१ के वि एस मो० मु० ॥ २ सद्दे त्ति ख० । सद्द त्ति सं० ॥ ३ तओ उवयाणं गच्छति, तओ से उवग्गहो हवइ ख० ॥ ४ गच्छति सं० सं० शु० ल० ॥ ५ संखेजकालं असंखेजकालं ल० ॥ ६ केयि शु० ॥ ७ सुणेह तेणं डे. ल.॥ ८ सद्द त्ति खं० शु० । सद्दी त्ति जे० डे० ल• मो० ॥ ९ सद्दाइ, तो ईहं पविसइ सर्वासु सूत्रप्रतिषु हारि. मलय० वृत्त्योश्च ॥ १० गच्छति खं० सं० शु० ल० ॥ ११ पडिवज्जेति संखेज खं० सं०॥
१२ →-एतचिह्नमध्यवत्तिसूत्रस्थाने जे० मो. मु. प्रतिषु रूप-गन्ध-रस-मशविषयाणि चत्वारि सूत्राण्युपलभ्यन्ते । तानि चेमानि
से जहानामए केई पुरिसे अश्वत्तं रूवं पासिजा, तेणं रूवे त्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस रुवे त्ति, तओ ईहं पविसइ तओ जाणइ अमुगे पल रूवे ति, तओ अवायं पविसइ तओ से उवगयं हवइ, तो धारणं पविसइ तओ णं धारेइ संखिज्जं वा कालं असंखिज्जं वा कालं ।
से जहानामए केई पुरिसे अव्वत्तं गंधं अग्घाइजा, तेणं गंधे ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस गंधे त्ति. तओ ईहं पविसइ तओ जाणइ अमुगे पस गंधे तो अवायं पविसइ तओ से उवगयं हवइ, तो धारणं पविसइ तओ णं धारेइ संखिजं वा कालं असंखिज्जं वा कालं ।
से जहानामए केई पुरिसे अव्वत्तं रसं आसाइजा, तेणं रसे त्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस रसे त्ति, तओ ईहे पविसइ तओ जाणइ अमुगे एस रसे, तओ अवायं पविसइ तओ से उवगयं हवा, तो धारणं पविसइ तओ गं धारेइ संखिज्ज वा कालं असंखिज वा कालं ।
से जहानामए केई पूरिसे अश्वत्तं फासं पडिसंवेइज्जा, तेणं फासे नि उम्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस . फासे ति, तओ ईहं पविसइ तओ जाणइ अमुगे एस फासे, तओ अवायं पविसइ तओ से उवगयं हवइ, तो धारणं पविसेइ तभी णं धारेइ संखिज्जं वा कालं असंखिज्जं या कालं ॥
१३ केयि शु० ॥ १४ पासिजा मो० ल० शु० ॥ १५ सुमिणो त्ति डे० ल० । सुविणो त्ति मलयगिरिटीकायाम् ॥ १६ ५ नो चेव णं जा मो० मु० ॥ १७ के वि मुंडे० ल० ॥ १८ गच्छति ख० सं० शु० ल० ॥ १९ पडिवजति सं० सं०॥
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