Book Title: Agam 44 Chulika 01 Nandi Sutra
Author(s): Devvachak, Jindasgani Mahattar, Punyavijay
Publisher: Prakrit Granth Parishad
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जिणदासगणिमहत्तरविग्इयाए, चुण्णीए संजुयं [सु० २३-२७ गा. ४४-५१ वसाणट्ठाणेसु वट्टमाणस्स वट्टमाणचरित्तस्स विसुज्झमाणस्स विसुज्झमाणचरित्तस्स सव्वओ समंता ओही वड्डइ ।
जावतिया तिसमयाहारगस्स सुहुमस्स पणगजीवस्स । ओगाहणा जहन्ना ओहीखेत्तं जहन्नं तु ॥४४॥ सव्वबहुअगणिजीवा णिरंतर जत्तियं भरेज्जंसु । खेत्तं सव्वदिसागं परमोही खेत्तनिद्दिट्ठो ॥ ४५ ॥ अंगुलमावलियाणं भागमसंखेज्ज दोसु संखेज्जा । अंगुलमावलियंतो आवलिया अंगुलपुहत्तं ॥ ४६ ॥ हत्थम्मि मुहत्तंतो दिवसंतो गाउयम्मि बोद्धव्यो। जोयण दिवसपुहत्तं पक्वतो पण्णवीसाओ ॥४७॥ भरहम्मि अद्धमासो जंबुद्दीवम्मि साहिओ मासो । वासं च मणुयलोए वासपुहत्तं च रुयगम्मि ॥४८॥ संखेज्जम्मि उ काले दीव-समुद्दा वि होंति संखेज्जा । कालम्मि असंखेज्जे दीव-समुद्दा उ भइयव्वा ॥४९॥ काले चउण्ह वुड्डी कालो भइयव्वु खेत्तवुड्डीए । वुड्डीए दव्व-पज्जव भइयव्वा खेत्त-काला उ ॥ ५० ॥ सुहुमो य होइ कालो तत्तो सुहुमयरयं हवइ खेत्तं ।
अंगुलसेढीमेत्ते ओसप्पिणिओ असंखेज्जा ॥ ५१ ॥
से तं वड्डमाणयं ओहिणणं । 20 २३. वर्धनं वड्ढी, पुवावत्थातो उवरुवरि वड्ढमाणं ति, तं च उस्सण्णं चरणगुणविसुद्धिमपेख, ततो
पसत्यज्झवसाणट्ठाणा तेआदिपसत्थलेसाणुगता भवंति, पसत्थदव्वलेसाहि अणुरंजितं चित्तं पसत्थज्झवसाणो भण्णति, पसत्यज्झवसाणातो य चरणा-ऽऽतविमुद्धी, चरणा-ऽऽतविसुद्धीतो य चरणपञ्चतलद्धीणं वड्ढी भवति ।
इमाओ य जहण्णुकोस-विमज्झिमोधिवड्डिदंसणगाहाओ जहा पेढियाँए ॥ ४४-५१ ॥ १'सायट्ठा सं• ॥२ वड्ढमाण ल. ॥ ३ वीसं तु ल । वीसंतो ३० ॥ ४ वि शु० । य मो•॥५ णाणयं से. ॥ ६ क्सत्तणतो पसत्थं आ० दा० ॥ ७ आवश्यकनियुक्तिपीठिकायां गाथाः ३०-३० ॥
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