Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Sthanakvasi Author(s): Devvachak, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma Publisher: Padma PrakashanPage 37
________________ 6555555555555555555555555555555555555555550 55555555554 अर्थ-जहाँ क्षमा आदि उत्तम गुणरूप भव्य भवनों की पंक्तियाँ हैं, श्रुतज्ञानरूपी बहुमूल्य रत्न जहाँ भरे हुए हैं, जहाँ सम्यक्त्वरूपी विशुद्ध वीथियाँ (मार्ग) बने हुए हैं और जो निर्मल चारित्र (पंच महाव्रतरूप परकोटे) से सुरक्षित है ऐसा संघनगर आपका कल्याण करे । (देखें चित्र २) May the city-like sangh (religious organization) which has forgiveness and other virtues as its rows of gorgeous houses, which is abundant with scriptural knowledge as its valuable gems, which is crisscrossed by samyaktva (a specific state of righteousness where right perception and right knowledge start translating into right conduct) as its clean streets and which is protected by purity of conduct (observation of five great vows) as its rampart, ameliorate you. ( See Illustration 2) 1 संघचक्र की स्तुति PANEGYRIC OF THE SANGH-WHEEL ५ : संजम - तव तुंबारयस्स, नमो सम्मत्त - पारियल्लस्स । अप्पsिचक्कस्स जओ, होउ सया संघ चक्कस्स ॥ अर्थ संयम जिसकी नाभि (केन्द्र) है; तप के बारह प्रकार जिसके बारह आरे ( आरक) हैं, सम्यक्त्व जिसकी आभामय परिधि (घेरा) है, ऐसे संघचक्र को नमस्कार हो । विरोधियों द्वारा जो सदा अपराजेय है, वह अद्वितीय संघरूपी चक्र सदा जयवंत रहे। यह संघचक्र जन्म-मरणरूपी बंधनों को काटने वाला है। Obeisance to the wheel like sangh which has discipline as its hub, which has twelve austerities as its spokes and which has samyaktua as its radiant rim. May the unique wheel like sangh that is invincible to any opposition always be victorious. This disc-weapon-like sangh cuts the bonds of rebirth. विवेचन - चक्र अथवा वृत्त के आकार का गति से आदि सम्बन्ध है। वाहन की गति भी उसके पहिए ( चक्र) पर निर्भर करती है। अतः वाहक की उपमा भी चक्र से दी जाती है । संघ, धर्म के द्रव्य तथा भाव घटकों का वाहक है । अवरोध का नाशक होने से चक्र आयुधरूप भी है। चक्र धारण करने से षट्खण्ड विजयी सम्राट् चक्री तथा त्रिखण्डजयी वासुदेव अर्धचक्री कहलाते हैं। चक्ररल जहाँ विद्यमान रहता है वहाँ किसी भी प्रकार के उपद्रव नहीं होते। संघ को चक्र की महिमा प्रदान करने में संघ की सर्वकल्याणकारिता ही मुख्य हेतु है । संघचक्र का मूल केन्द्र संयम है। संयम के श्री नन्दी सूत्र Shri Nandisutra Jain Education International ( ६ ) @*********555555556 *555555555555555555555555556 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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