Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar Publisher: Padma PrakashanPage 29
________________ STTUUTTUVUUTTUVUUUUUUU P(६) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ही 15 एवं खलु अम्हे लवणसमुदं पोयवहणेणं एक्कारस वारा ओगाढा, सव्वत्थ वि य णं लद्धट्ठा डा र कयकज्जा अणहसमग्गा पुणरवि निययघरं हव्वमागया। तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया! - 15 दुवालसमं पि लवणसमुदं पोयवहणेणं ओगाहित्तए।' त्ति कटु अण्णमण्णस्सेयमढे पडिसुणेति, ड र पडिसुणित्ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एवं वयासी15 एवं खलु अम्हे अम्मयाओ ! एक्कारस वारा तं चेव जाव. निययं घरं हव्वमागया। तं इच्छामो दी र णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणा दुवालसमं लवणसमुदं पोयवहणेणं ओगाहित्तए।' । 15 सूत्र ३ : चम्पानगरी में माकन्दी नाम का एक समृद्ध सार्थवाह (व्यापारी) रहता था। उसकी ड र भद्रा नाम की पत्नी थी। भद्रा के दो आत्मज पुत्र थे जिनके नाम थे-जिनपालित और जिनरक्षित। ड र दोनों माकन्दी पुत्रों ने एक बार परस्पर इस प्रकार विचार विनिमय किया15 "हमने जहाज द्वारा लवण-समुद्र की ग्यारह बार यात्रा की है। प्रत्येक बार हमने धन-लाभ ड र किया, करने योग्य अन्य सभी कार्य किये और अन्त में यथासमय निर्विघ्न घर लौटे। अतः हेड 15 देवानुप्रिय ! हम उसी प्रकार बारहवीं यात्रा भी करें तो अच्छा होगा।' दोनों ने परस्पर विमर्श कर दे 15 यह निर्णय ले लिया और अपने माता-पिता से बोले र “हे माता-पिता ! हम ग्यारह बार लवण-समुद्र की यात्रा से सफल व सकुशल लौट चुके हैं। टा 15 अब आपकी आज्ञा प्राप्तकर हम बारहवीं बार पुनः वैसी यात्रा करना चाहते हैं।" 2 3. A wealthy merchant named Makandi lived in Champa. The name of his B wife was Bhadra. The couple had two sons — Jinapalit and Jinarakshit. One ] 15 day these two sons of Makandi deliberated> "We have made eleven voyages across the sea. Every time we earned a lot 2 of money, enjoyed as much as we could, and returned in time without any problem. As such, Beloved of gods! It would be good if we go on a twelfth voyage." They both agreed and approached their parents for permission - "Mother and father! We have successfully and safely completed eleven sea 5 voyages. With your permission we want to go on a sea voyage again, for the 2 twelfth time.” र यात्रा की अनुमति 15 सूत्र ४ : तए णं ते मागंदियदारए अम्मापियरो एवं वयासी-'इमे ते जाया ! अज्जग जाव. डा र परिभाएत्तए, तं अणुहोह ताव जाया ! विउले माणुस्सए इड्डी-सक्कार-समुदए। किं भे सपच्चवाएणं ही 15 निरालंबणेणं लवणसमुद्दोत्तारेणं? एवं खलु पुत्ता ! दुवालसमी जत्ता सोवसग्गा यावि भवइ। तं द र मा णं तुब्भे दुवे पुत्ता दुवालसमं पि लवणसमुदं जाव ओगाहेह, मा हु तुब्भं सरीरस्स वावत्ती र भविस्सइ। vururrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr UUUUN 15(6) JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA ynnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnns Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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