Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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[Ans.] Gautam ! The unsmelt matter particles are minimum whereas 41 the untasted matter particles are infinite times more than these and the * untouched are still infinite times more. 4 [१८-३ ] तेइंदियाणं घाणिंदिय-जिभिंदिय-फासिंदियवेमायत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति।
[१८-३ ] त्रीन्द्रिय जीवों द्वारा किया हुआ आहार घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय के रूप में बार-बार परिणत होता है।
[18-3] Matter ingested by the three-sensed beings continues to get transformed into the sense organs of smell, taste and touch.
[१९-३] चरिंदियाणं चक्खिदिय-घाणिंदिय-जिभिंदिय-फासिंदियत्ताए भुज्जो भुजो परिणमंति। - [१९-३ ] चतुरिन्द्रिय जीवों द्वारा किया हुआ आहर चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय के रूप में बार-बार परिणत होता है। . [19-3] Matter ingested by the four-sensed beings continues to get transformed into the sense organs of sight, smell, taste and touch.
विवेचन : विकलेन्द्रिय जीवों की स्थिति-जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है, उत्कृष्ट द्वीन्द्रिय की बारह वर्ष की, त्रीन्द्रिय की ४९ अहोरात्र की एवं चतुरिन्द्रिय की छह मास की है। ___एक अन्तर्मुहूर्त में असंख्यात समय होने से वह असंख्येय भेद वाला होता है, इसलिए द्वीन्द्रिय जीवों को आभोग आहार की अभिलाषा असंख्यात समय वाले अन्तर्मुहूर्त के पश्चात् बताई है।
Elaboration–The minimum life-span of vikalendriyas (two to foursensed beings) is Antar-muhurt (less than fourty eight minutes). The maximum life-span is twelve years for two-sensed beings, forty nine days and nights (Ahoratra) for three-sensed beings and six months for foursensed beings.
One Antar-muhurt has infinite Samayas or fractions. This has been specified in the statement—'The desire for voluntary intake rises indeterminately within one Antar-muhurt of innumerable Samayas.'
[२०] पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं ठितिं भणिऊणं ऊसासो वेमायाए। आहारो अणाभोगनिव्वत्तिओ अणुसमयं अविरहिओ आभोगनिव्वत्तिओ जहन्नेणं अंतोमुहत्तस्स, उक्कोसेणं छट्ठभत्तस्स। सेसं जहा चउरिदियाणं जाव चलियं कम्मं निजरेंति।
[२०] पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कहकर उनका उच्छ्वास विमात्रा से कहना चाहिए, उनका अनाभोगनिर्वर्तित आहार प्रतिसमय होता है। आभोगनिर्वर्तित आहार जघन्य अन्तर्मुहर्त्त में और उत्कृष्ट दो दिन व्यतीत होने पर होता है। इसके सम्बन्ध में शेष वक्तव्य ‘अचलित कर्म की निर्जरा नहीं करते', यहाँ तक चतरिन्द्रिय जीवों के समान समझना चाहिए।
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| भगवतीसूत्र (१)
(34)
Bhagavati Sutra (1)
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