Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 405
________________ फफफफफफफफफ தததத*******மிழமிழ***************மிதமி*தமிழ******** 卐 卐 [ उ. ] गोयमा ! चमरस्स णं असुर्रिदस्स असुररण्णो अग्गमहिसीओ देवीओ महिड्ढीयाओ जाव 5 महाणुभागाओ। ताओ णं तत्थ साणं साणं भवणाणं, साणं साणं सामाणियसाहस्सीणं, साणं साणं महत्तरियाणं, साणं साणं परिसाणं जाव एमहिड्ढीयाओ, अन्नं जहा लोगपालाणं अपरिसेसं । फ्र ६. [ प्र. ] भगवन् ! जब असुरेन्द्र असुरराज चमर के लोकपाल ऐसी महाऋद्धि वाले हैं, यावत् वे इतना विकुर्वण करने में समर्थ हैं, तब असुरेन्द्र असुरराज चमर की अग्रमहिषियाँ ( पटरानी देवियाँ) कितनी बड़ी ऋद्धि वाली हैं, यावत् वे कितना विकुर्वण करने में समर्थ हैं ? 5 6. [Q.] Bhante ! When so great is the opulence ( riddhi )... and so on up to... capacity of transmutation (vikurvana) of Lok-pals (protector gods of 5 people) of Chamarendra, the Indra (overlord) of Asurs, then how great is the opulence ( riddhi )... and so on up to ... capacity of transmutation 5 ( vikurvana) of chief queens (Agramahishis) of Chamarendra, the Indra 5 (overlord) of Asurs ? [ उ.] गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की अग्रमहिषी - देवियाँ महाऋद्धिसम्पन्न हैं, यावत् महाप्रभावशालिनी हैं, वे अपने-अपने भवनों पर, अपने-अपने एक हजार सामानिक देवों (देवीगण ) फ्र पर, अपनी-अपनी (सखी) महत्तरिका देवियों पर और अपनी-अपनी परिषदाओं पर आधिपत्य करती हुई विचरती हैं; यावत् वे अग्रमहिषियाँ ऐसी महाऋद्धि वाली हैं। इस सम्बन्ध में शेष सब वर्णन 5 लोकपालों के समान कहना चाहिए। 卐 卐 [Ans.] Gautam ! The chief queens (Agramahishis) of Chamarendra, the Indra (overlord) of Asurs have great opulence... and so on up to... influence. Reigning over their abodes, their respective one thousand Samanik Devs (gods of same status), their respective Mahattarika Devis (friendly goddesses), and their respective assemblies (parishads) they live... and so on up to ... so great is their opulence. Remaining details should repeated as has been stated about Lok-pals. तृतीय शतक : प्रथम उद्देशक 卐 ७. सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति भगवं दोच्चे गोतमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता 5 नमंसित्ता जेणेव तच्चे गोयमे वायुभूई अणगारे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तच्चं गोयमं वायुभूतिं अणगारं एवं वयासी - एवं खलु गोतमा ! चमरे असुरिंदे असुरराया एमहिड्डीए तं चैव एवं सव्वं वयासी- 5 एवं खलु गोतमा ! चमरे असुरिंदे असुरराया एमहिड्डीए तं चैव एवं सव्वं अपुट्ठवागरणं नेयव्वं अपरिसेसियं जाव अग्गमहिसीणं जाव वत्तव्वया समत्ता । 卐 फ (347) Jain Education International 卐 சு 卐 ७. 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है; हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है' (यों कहकर ) द्वितीय गौतम 卐 अग्निभूति अनगार श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन - नमस्कार करते हैं, वन्दन- 5 करके जहाँ तृतीय गौतम गोत्रीय वायुभूति अनगार थे, वहाँ आये। उनके निकट पहुँचकर वे, तृतीय गौतम वायुभूति अनगार से यों बोले- हे गौतम! असुरेन्द्र असुरराज चमर ऐसी महाऋद्धि वाला 5 गोत्रीय नमस्कार फ्र 卐 फ्र फ 卐 For Private & Personal Use Only 卐 फ Third Shatak: First Lesson 5 25 55 55 5 5 5 55 5555555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 52 卐 www.jainelibrary.org

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