Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 416
________________ B 555555555555555555555555558 [Ans.] Gautam ! Devendra Shakra, the Indra (overlord) of Devs (gods) has great opulence... and so on up to... influence. He reigns over 3.2 4 million celestial vehicles (vimaan-vas) and eighty four thousand Samanik Devs (gods of same status)... and so on up to... (Trayastrinshak and Lok-pal gods), three hundred thirty six thousand Atmarakshak Devs (guard gods) and numerous other gods. The description about his power of transmutation (Vaikriya shakti) should be repeated as has been stated about Chamarendra. The difference being that he can pervade an area equivalent to that of two Jambu Dveeps with his transmuted forms. However, Gautam ! The aforesaid great power is theoretical. In practice ___he has never performed transmutation (to said extant), neither he does, nor will he do. १३. [प्र. ] जइ णं भंते ! सक्के देविंदे देवराया एमहिड्ढीए जाव एवइयं च णं पभू विकुवित्तए एवं ॐ खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी तीसए णामं अणगारे पगइभद्दए जाव विणीए छठें छट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुण्णाइं अट्ठ संवच्छराइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेत्ता सर्टि भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सयंसि विमाणंसि उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिए अंगुलस्स असंखेज्जइ फ़ 5 भागमेत्ताए ओगाहणाए सक्कस्स देविंदस्स देवरणो सामाणियदेवत्ताए उववन्ने। तए णं से तीसए देवे अहुणोववन्नमेत्ते समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छइ, तं जहाआहार-पज्जत्तीए, सरीर इंदिय-आणापाणपज्जत्तीए भासा-मणपज्जत्तीए। तए णं तं तीसयं देवं पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावंगयं समाणं सामाणियपरिसोववण्णया देवा करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु जएणं विजएणं वद्धाविंति, वद्धावित्ता एवं वयासी-अहो ! णं देवाणुप्पिएहिं ॐ दिव्या देविड्ढी, दिव्या देवजुती, दिव्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागते, जारिसिया णं देवाणुप्पिएहिं दिव्या देविड्ढी, दिव्या देवज्जती, दिव्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते अभिसमनागते, तारिसिया णं सक्केणं देविदेणं ॐ देवरण्णा दिव्या देविड्ढी जाव अभिसमन्नागता, जारिसिया णं सक्केणं देविंदेणं देवरण्णा दिव्या देविड्ढी जाव अभिसमनागता तारिसिया णं देवाणुप्पिएहिं दिव्या देविड्ढी जाव अभिसमनागता। से णं भंते ! तीसए देवे केमहिड्ढीए जाव केवतियं च णं पभू विकुवित्तए ? [उ.] गोयमा ! महिड्ढीए जाव महाणुभागे, से णं तत्थ सयस्स विमाणस्स, चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं चउण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिहं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवइणं, सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं अन्नेसिं च बहूणं वेमाणियाणं देवाणं य देवीण य जाव + विहरति। एमहिड्ढीए जाव एवइयं च णं पभू विकुवित्तए-से जहा णामए जुवई जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेजा जहेव सक्कस्स तहेव जाव एस णं गोयमा ! तीसयस्स देवस्स अयमेयारूवे विसए विसयमेत्ते बुइए, नो चेव णं संपत्तीए विउविंसु वा विउव्वइ वा विउबिस्सइ वा। 卐ध )))5555555555555555555 ) ऊ | भगवतीसूत्र (१) (358) Bhagavati Sutra (1) 5 55555555;)))))) )) )) म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662