Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 556
________________ फ्र [ उ. ] गौतम ! वह उस जनपदवर्ग को तथाभाव से नहीं जानता - देखता; किन्तु अन्यथाभाव से जानता-देखता है। [प्र. २ ] भगवन् ! वह उस जनपदवर्ग को अन्यथाभाव से यावत् जानता - देखता है, इसका क्या कारण है ? [उ.] गौतम ! उस अनगार के मन में ऐसा विचार होता है कि यह वाराणसी नगरी है, यह राजगृह नगर है तथा इन दोनों के बीच में यह एक बड़ा जनपदवर्ग है । परन्तु यह मेरी वीर्यलब्धि, वैक्रियलब्धि या विभंगज्ञानलब्धि नहीं है; और न ही मेरे द्वारा उपलब्ध, प्राप्त और अभिसमन्वागत यह ऋद्धि, धुति, यश, बल और पुरुषकार पराक्रम है। इस प्रकार का उक्त अनगार का दर्शन विपरीत होता है। इस कारण से, यावत् वह अन्यथाभाव से जानता - देखता है। 5. [Q. 1] Bhante ! Does he see and know that janapad-varg realistically (tatha-bhaava) or unrealistically (anyatha-bhaava)? [Ans.] Gautam ! He does not see and know realistically (tatha - bhaava) but sees and knows unrealistically (anyatha-bhaava). [Q. 2] Bhante ! Why is it said that he does not see and know realistically (tatha-bhaava) but sees unrealistically (anyatha-bhaava) ? [Ans.] Gautam ! That ascetic thinks (due to delusion) that this was Varanasi city and this was Rajagriha city. In between these two this was a vast janapad-varg. But this is neither his potency (virya labdhi), power of transmutation (vaikriya labdhi) and power of pervert knowledge (vibhang jnana labdhi) nor the riddhi (opulence), dyuti (radiance), bal (physical strength ), yash (fame) or self-exertion (purushakar-parakram) received, acquired, confirmed by him. This is how the vision of that ascetic is distorted. That is why it is said that... and so on up to... he sees and knows unrealistically (anyatha-bhaava). विवेचन : यहाँ प्रश्न उठता है कि जो भावितात्मा अनगार है, वह मायी मिथ्यादृष्टि कैसे हो सकता है ? इसके उत्तर में वृत्तिकार का स्पष्टीकरण है कि यहाँ अनगार का अर्थ गृहवास त्याग करने वाले से है, न कि जैनभिक्षु से, तथा भावितात्मा का अर्थ है अपने शास्त्र व स्व-दर्शन के अनुसार शम, दम, यम आदि नियमों का धारक । ऐसा अनगार सकषायी और मिथ्यादृष्टि होने से उसका दर्शन भी विपरीत होता है। वह अपने वैक्रियकृत रूपों को वास्तविक रूप में नहीं देखकर दिग्मूढ़ या उन्मत्त मनुष्य जैसी अवस्था में विपरीत रूप में ही ग्रहण करता है । इसलिए उसका अनुभव, दर्शन और क्षेत्र सम्बन्धी विचार विपरीत होता है। ( वृत्ति, पत्रांक १९३) तीन लब्धियाँ - (१) वीर्यलब्धि, (२) वैक्रियलब्धि, और (३) विभंगज्ञानलब्धि । ये तीनों लब्धियाँ विकुर्वणा करने की मुख्य साधन हैं - (१) वीर्यलब्धि से शक्ति स्फुरण करता है, (२) वैक्रियलब्धि से वैक्रिय समुद्घात करके विविध रूपों की विकुर्वणा करता है, और (३) विभंगज्ञानलब्धि से राजगृहादिक पशु, पुरुष आदि विविध रूपों को जानता - देखता है। मिथ्यादृष्टि होने के कारण इसका दर्शन और ज्ञान विपरीत ग्राही होता है। भगवतीसूत्र (१) (486) Jain Education International நிமிமிமிமிமிமிமிமிழ*****************மிமிமிமிமிமிமிY Bhagavati Sutra (1) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662