Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 580
________________ फफफफफफफफ Kumaris, Y ५ ५ Vanavyantar gods and goddesses. These and other such gods 5 devoted to him (Vaishraman )... and so on up to ... live under his command. [ ३ ] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं जाई इमाई समुप्पज्जंति, तं जहा - अयागरा इवा, ५ तयागरा इवा, तंबागरा इ वा, एवं सीसागरा इ वा, हिरण्णागरा इ वा, सुवण्णागरा इ वा, रयणागरा इवा, वइरागरा इवा, वसुहारा इ वा, हिरण्णवासा इवा, सुवण्णवासा इवा, रयणवासा इवा, 4 वइरवासा इवा, आभरणवासा इवा, पत्तवासा इवा, पुप्फवासा इवा, फलवासा इवा, बीयवासा इवा, मल्लवासा इवा, वण्णवासा इवा, चुण्णवासा इवा, गंधवासा इवा, वत्थवासा इवा, हिरण्णवुट्ठी इवा, 4 सुवण्णवुट्ठी इवा, रयणवुट्टी इ वा, वइरवुट्ठी इवा, आभरणवुट्ठी इ वा, पत्तवुट्ठी इ वा, पुप्फवुट्टी इ वा, ५ फलबुट्टी इ वा, बीयवुट्ठी इ वा, मल्लवुट्टी इ वा, वण्णवुट्टी इ वा, चुण्णवुट्टी इ वा, गंधबुट्टी, वत्थवुट्ठी इवा, भायणवुट्ठी इवा, खीरखुट्टी इ वा, सुकाला इवा, दुकाला इ वा अप्पग्घा इवा, महग्घा इवा, ५ सुभिक्खा इवा, दुभिक्खा इ वा, कयविक्कया इ वा, सन्निहि इ वा, सन्निचया इ वा निही इवा, Y णिहाणा इवा, चिरपोराणा इ वा, पहीणसामिया इ वा, पहीणसेतुया इ वा, पहीणमग्गाणि वा, ५ पहीणगोत्तागारा इवा, उच्छन्नसामिया इ वा, उच्छन्नसेतुया इ वा उच्छन्नगोत्तागारा इ वा सिंघाडगफतिग- चउक्क - चच्चर - चउम्मुह - महापह - पहेसु नगर - निमणेसु सुसान - गिरि-कंदर-संति15 सेलोवट्ठाण - भवणगिहेसु सन्निक्खित्ताइं चिट्ठति, ण ताई सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो वेसमणस्स ५ ५ 5 Y Y 卐 अण्णायाइं अदिट्ठाई असुयाइं अविन्नायाई, तेसिं वा वेसमणकाइयाणं देवाणं । महारणी 卐 4 Y y ५ [ ३ ] जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मंदर पर्वत से दक्षिण में जो ये स्थितियाँ होती हैं, जैसे कि लोहे की ५ खानें, राँगे की खानें, ताँबे की खानें तथा शीशे की खानें, हिरण्य (चाँदी) की, सुवर्ण की, रत्न की और वज्र की खानें, वसुधारा ( रत्नों की वृष्टि) हिरण्य की, सुवर्ण की, रत्न की, वज्र की, आभरण की, पत्र ५ की, पुष्प की, फल की, बीज की, माला की, वर्ण की, चूर्ण की, गन्ध की और वस्त्र की वर्षा, भाजन (बर्तन) और क्षीर की वृष्टि, सुकाल, दुष्काल, अल्पमूल्य ( सस्ता ), महामूल्य (महँगा), सुभिक्ष (भिक्षा की सुलभता ), दुर्भिक्ष (भिक्षा की दुर्लभता ), क्रय-विक्रय ( खरीदना - बेचना ), सन्निधि ( घी, गुड़ आदि का ५ संचय), सन्निचय ( अन्न आदि का संचय), निधियाँ ( खजाने - कोष), निधान (जमीन में गड़ा हुआ धन ), 5 चिर- पुरातन ( बहुत पुराने), जिनके स्वामी समाप्त हो गए, जिनकी सारसम्भाल करने वाले नहीं रहे, ५ 5 जिनकी कोई खोजखबर (मार्ग) नहीं है, जिनके स्वामियों के गोत्र और आगार (घर) नष्ट हो जिनके स्वामी उच्छिन्न (छिन्न-भिन्न ) हो गए, जिनकी सारसंभाल करने वाले छिन्न-भिन्न हो गए, जिनके ५ स्वामियों के गोत्र और घर तक छिन्न-भिन्न हो गए, ऐसे खजाने, शृङ्गाटक (सिंगाड़े के आकार वाले) 5 मार्गों में, त्रिक ( तिकोने मार्ग), चतुष्क (चौक), चत्वर, चतुर्मुख एवं महापथों, सामान्य मार्गों, नगर के गन्दे नालों में, श्मशान, पर्वतगृह गुफा (कन्दरा), शान्तिगृह, शैलोपस्थान ( पर्वत को खोदकर बनाए गए सभा-स्थान), भवनगृह (निवासगृह) इत्यादि स्थानों में गाड़कर रखा हुआ धन; ये सब पदार्थ देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल वैश्रमण महाराज से अथवा उसके वैश्रमणकायिक देवों अज्ञात, अदृष्ट अश्रुत, अविस्मृत और अविज्ञात नहीं हैं । Y गए, 4 (परोक्ष), भगवतीसूत्र (१) (508) Jain Education International தமிமிததமிதமி******மிதமி****த*********** फ्र Bhagavati Sutra (1) For Private & Personal Use Only H Y Y www.jainelibrary.org

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