Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 585
________________ 5 फफफफफफफफफफफफफफफ 卐 5 卐 3. What has been stated here about overlords of Naag Kumar gods should be repeated for the following gods - ( 3 ) Suparna Kumar gods (are 5 reigned over) by-Venudev, Venudali, Chitra, Vichitra, Chitrapaksh and 卐 5 Vichitrapaksh. ( 4 ) Vidyut Kumar gods (are reigned over ) by — Harikant, 5 Harisimha, Prabh, Suprabh, Prabhakant and Suprabhakant. (5) Agni 5 Kumar gods (are reigned over ) by - Agnisimha (shikh), Agnimanav 5 (ssaha), Tejas, Tejahsimha and Tejaprabh. ( 6 ) Dveep Kumar gods (are 5 reigned over) by-Purna, Vishisht (Vaashisht), Rupa, Rupamsh, Rupakant and Rupaprabh. (7) Udadhi Kumar gods (are reigned over) by-Jalakant, Jalaprabh, Jala, Jalarupa, Jalakant and Jalaprabh. (8) Disha Kumar gods (are reigned over) by-Amit-gati, Amit-vahan, Turyagati, Kshipragati, Simhagati and Simhavikramgati. (9) Vayu 5 Kumar gods (are reigned over) by-Velamb, Prabhanjan, Kaal, Mahakaal, Anjan and Risht. (10) Stanit Kumar gods (are reigned over) by-Ghosh, 5 Mahaghosh, Avart, Vyavart, Nandikavart and Mahanandikavart. These should be stated following the pattern of Asur Kumar gods. फ्र 卐 卐 卐 卐 फ 卐 फ्र 5 卐 The names of the first Lok-pals of the Indras reigning over the abode 5 dwelling gods of the south are – (1) Soma, (2) Kaal-pal, (3) Chitra, 5 (4) Prabh, (5) Tejas, (6) Rupa, (7) Jala, (8) Tvaritgati, ( 9 ) Kaal, and 5 5 (10) Avart. 卐 卐 卐 फ्र 卐 Elaboration-Protocol of governance-As there are protocols relating to posts and powers in human beings so also exist among divine beings. For example, all the ten kinds of abode dwelling gods including Asur 5 Kumars have two overlords (Indra) each. Asur Kumars have two 卐 विवेचन : आधिपत्य में तारतम्य - जिस प्रकार मनुष्यों में भी पदों और अधिकारों के सम्बन्ध में तारतम्य होता है, वैसे ही यहाँ दशविध भवनपति देवों के आधिपत्य में तारतम्य समझना चाहिए। जैसे कि असुरकुमार आदि 5 दसों प्रकार के भवनपतियों में प्रत्येक के दो-दो इन्द्र होते हैं, यथा-असुरकुमार देवों के दो इन्द्र हैं(१) चमरेन्द्र, और (२) बलीन्द्र । नागकुमार देवों के दो इन्द्र हैं - ( १ ) धरणेन्द्र, और (२) भूतानन्देन्द्र । इसी प्रकार प्रत्येक के दो-दो इन्द्रों का आधिपत्य अपने अधीनस्थ चार लोकपालों तथा अन्य देवों पर होता है और 5 लोकपालों का अपने अधीनस्थ देवों पर आधिपत्य होता है । इस प्रकार आधिपत्य, अधिकार, ऋद्धि, वर्चस्व एवं प्रभाव आदि में तारतम्य समझ लेना चाहिए। सूत्र (३) में जो छह-छह नाम हैं-उनमें प्रथम दो इन्द्रों के तथा आगे के चार उनके लोकपालों के नाम हैं। इस प्रकार २० इन्द्र तथा उनके ८० लोकपाल हैं। मूल में भवनपति देव दो प्रकार के हैं-उत्तर दिशावर्ती और दक्षिण दिशावर्ती । उत्तर दिशा के दशविध फ भवनपति देवों के जो-जो देव होते हैं इन्द्र से लेकर लोकपाल आदि तक, उनका उल्लेख इससे पूर्व किया जा चुका है। इसके पश्चात् दाक्षिणात्य भवनपति देवों के सर्वोपरि अधिपति इन्द्रों के प्रथम लोकपालों के नाम सोम फ यावत् आवर्त तक सूचित किये हैं। (स्थानांगसूत्र, स्था. ४, उ. १ सूत्र में भी इनके नाम आये हैं) तृतीय शतक : अष्टम उद्देशक 卐 (513) Jain Education International 卐 卐 卐 Third Shatak: Eighth Lesson For Private & Personal Use Only फफफफफफफफफफफ 5 फ 5 卐 5 卐 卐 ㄓ 卐 फ 卐 www.jainelibrary.org

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