Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 565
________________ ) )) )) ) ) ) 35555)))))))))))))))))) [उ.] गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए ॐ बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उटुं चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं बहूई जोयणाई जाव + पंचवडिंसया पण्णत्ता, तं जहा-असोयवडेंसए सत्तवण्णवडिसए चंपयवडिसए चूयवडिसए मझे 卐 सोहम्मवडिसए। तस्स णं सोहम्मवडेंसयस्स महाविमाणस्स पुरथिमेणं सोहम्मे कप्पे असंखेज्जाई जोयणाई वीतीवइत्ता एत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारण्णो संझप्पभे नाम महाविमाणे पण्णत्ते अद्भतेरस जोयणसयसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, उणयालीसं जोयणसयसहस्साई बावण्णं च सहस्साई ॐ अट्ठ य अडयाले जोयणसए किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते। जा सूरियाभविमाणस्स वत्तव्वया सा अपरिसेसा भाणियव्वा जाव अभिसेओ नवरं सोमे देवे। ॐ ४. [प्र. १ ] भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल सोम नामक महाराज का सन्ध्याप्रभ नामक म महाविमान कहाँ है ? [उ.] गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मन्दर (मेरु) पर्वत से दक्षिण दिशा में इस रत्नप्रभा पृथ्वी + के प्रायः समतल भूमिभाग से ऊपर चन्द्र, सूर्य, ग्रह नक्षत्र और तारागण आते हैं। उनसे बहुत योजन ऊपर यावत् पाँच अवतंसक हैं, यथा-(१) अशोकावतंसक, (२) सप्तपर्णावतंसक, (३) चम्पकावतंसक, म (४) चूतावतंसक, और मध्य में (५) सौधर्मावतंसक हैं। उस सौधर्मावतंसक महाविमान से पूर्व में, सौधर्मकल्प से असंख्य योजन दूर जाने के बाद, वहाँ पर देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल-सोम नामक * महाराज का सन्ध्याप्रभ नामक महाविमान आता है, जिसकी लम्बाई-चौड़ाई (आयाम-विष्कंभ) साढ़े म बारह लाख योजन है। उसका परिक्षेप (परिधि) उनचालीस लाख बावन हजार आठ सौ अड़तालीस (३९,५२,८४८) योजन से कुछ अधिक है। इस विषय में सूर्याभदेव के विमान की जो वक्तव्यता है, वह ॐ सारी वक्तव्यता (राजप्रश्नीयसूत्र में वर्णित) 'अभिषेक' तक कहनी चाहिए। इतना विशेष है कि यहाँ ॐ सूर्याभदेव के स्थान ‘सोमदेव' कहना चाहिए। 4. [Q. 1] Bhante ! What is the location of the mahavimaan (great celestial vehicle) named Sandhyaprabh belonging to Soma Maharaj, th 4. Lok-pal of Devendra Shakra, the overlord of gods? [Ans.) Gautam ! To the south of Mandar (Meru) mountain in the continent called Jambu Dveep, over the level land of this Ratnaprabha Prithvi are located Chandra (the moon), Surya (the sun), graha (planets), nakshatra (constellations) and tara (stars). Above these are five 41 Avatamsaks (great celestial vehicles or abodes)—(1) Ashokavatamsak, (2) Saptaparnavatamsak, (3) Champakavatamsak, (4) Chootavatamsak, and in the center (5) Saudharmavatamsak. To the east of that 41 Saudharmavatamsak Mahavimaan, on going innumerable Yojans away from Saudharma Kalp, comes the mahavimaan (great celestial vehicle) named Sandhyaprabh belonging to Soma Maharaj, the Lok-pal of Devendra Shakra, the overlord of gods. Its length-breadth (ayam 555555551555555555555555;))))))))))))5558 (495) Third Shatak : Seventh Lesson | तृतीय शतक : सप्तम उद्देशक 8955) ))))))) )))))))))))))))18 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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