Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 555
________________ ))))))555555558 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 8))))))))))))))))))) ))))) 5 delusion) that while living in Rajagriha city he had created Varanasi city 4 4 and doing that he sees and knows the make-up of Rajagriha city. Thus 5 his vision is opposite. That is why... and so on up to... he sees and knows 卐 unrealistically (anyatha-bhaava). ४. [प्र.] अणगारे णं भंते ! भावियप्पा मायी मिच्छद्दिवी वीरियलद्धीए वेउब्वियलद्धीए विभंगणाणलद्धीए वाणारसिं नगरि रायगिहं च नगरं अंतरा य एगं महं जणवयवगं समोहए, समोहणित्ता वाणारसिं नगरि रायगिहं च नगरं तं अंतरा एगं महं जणवयवग्गं जाणति पासति ? [उ. ] हंता, जाणति पासति। ४. [प्र. ] भगवन् ! मायी मिथ्यादृष्टि भावितात्मा अनगार अपनी वीर्यलब्धि से, वैक्रियलब्धि से, और विभंगज्ञानलब्धि से वाराणसी नगरी और राजगृह नगर के बीच में एक बड़े जनपद-वर्ग (देश-समूह) की विकुर्वणा करके उस (वाराणसी और राजगृह के बीच में विकुर्वित) बड़े जनपद वर्ग को जानता और देखता है ? [उ. ] हाँ, गौतम ! वह (उस विकुर्वित बड़े जनपद-वर्ग को) जानता और देखता है। 4. (Q.) Bhante ! Can an unrighteous (mithyadrishti) and maayi (under influence of passions) sagacious ascetic (bhaavitatma anagar) create by transmutation a janapad-varg (a state-like vast inhabited area) between Varanasi city and Rajagriha city with the help of his potency (virya labdhi), power of transmutation (vaikriya labdhi) and power of pervert knowledge (vibhang jnana labdhi) and then see and know it (that vast inhabited area between Varanasi city and Rajagriha city) ? ___ [Ans.] Yes, Gautam ! He (the ascetic) sees and knows that (the vast inhabited area created by transmutation). ५.[प्र. १] से भंते ! किं तहाभावं जाणइ पासइ, अनहाभावं जाणइ पासइ ? [उ. ] गोयमा ! णो तहाभावं जाणति पासइ, अनहाभावं जाणइ पासइ। __ [प्र. २ ] से केपट्टेणं जाव पासइ ? [उ. ] गोयमा ! तस्स खलु एवं भवति-एस खलु वाणारसी नगरी, एस खलु रायगिहे नगरे, एस खलु अंतरा एगे महं जणवयवग्गे, नो खलु एस महं वीरियलद्धी वेउवियलद्धी विभंगनाणलद्धी इड्डी जुती म जसे बले वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमन्त्रागए, से से दंसणे विवच्चासे भवति, से तेणट्टेणं ॐ जाव पासति। ५. [प्र. १] भगवन् ! क्या वह उस जनपदवर्ग को तथाभाव से जानता-देखता है, अथवा ॐ अन्यथाभाव से जानता-देखता है ? 卐))))))))))))))))))))) | तृतीय शतक : छठा उद्देशक (485) Third Shatak: Sixth Lesson 05555555555555555555555555555555555558 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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