Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 511
________________ * 55 55 5959595959595959595959595959595 95 95 95 95 95 95 95 95 95959595959595958 फफफफफफ 卐 卐 卐 फ्र name. Svahast-praanatipat kriya-destroying life of self and others with תתתתתתתתתתתת one's own hands. Parahast-praanatipat kriya-causing other person to destroy life of self and others. (Note-In all aforesaid cases activity or act also includes the acquisition of karmas caused by that activity or act.) ८. [प्र. ] पुब्विं भंते! किरिया पच्छा वेदणा ? पुव्विं वेदणा पच्छा किरिया । [उ.] मंडियपुत्ता ! पुव्विं किरिया, पच्छा वेदणा; णो पुव्विं वेदणा, पच्छा किरिया । ८. [.] भगवन् ! क्या पहले क्रिया होती है, और पीछे वेदना होती है ? अथवा पहले वेदना होती है, पीछे क्रिया होती है ? [उ. ] मण्डितपुत्र ! पहले क्रिया होती है, बाद में वेदना होती है; परन्तु पहले वेदना हो और पीछे क्रिया हो, ऐसा नहीं होता । 5 activity next ? 8. [Q.] Bhante ! Is activity first and pain next? or is pain first and [Ans.] Mandit-putra ! It is activity first and pain next, not pain first and activity next? ९. [ प्र.] अत्थि णं भंते ! समणाणं निग्गंथाणं किरिया कज्जइ ? [उ. ] हंता, अत्थि । ९. [ प्र. ] भगवन् ! क्या श्रमणनिर्ग्रन्थों के ( भी ) क्रिया लगती है ? ! [ उ. ] हाँ, उनके भी (क्रिया) लगती है। 9. [Q.] Bhante ! Is kriya ( acquisition of karmas) applicable (also) to Shraman-nirgranths (Jain ascetics) ? [Ans.] Yes, it is applicable to them also. १०. [ प्र. ] कहं णं भंते ! समणाणं निग्गंथाणं किरिया कज्जइ ? [उ. ] मंडियपुत्ता ! पमायपच्चया जोगनिमित्तं च, एवं खलु समणाणं निग्गंथाणं किरिया कज्जति । १०. [ प्र.] भगवन् श्रमणनिर्ग्रन्थों के क्रिया किस प्रत्यय ( निमित्त ) से लगती है ? [ उ. ] मण्डितपुत्र ! प्रमाद के कारण और योग (मन - वचन काया की प्रवृत्ति) के निमित्त से, इन दो कारणों से श्रमणनिर्ग्रन्थों को क्रिया लगती है। 10. [Q.] Bhante ! For what reason kriya (acquisition of karmas) is applicable to Shraman-nirgranths (Jain ascetics) ? तृतीय शतक : [Ans.] Mandit-putra ! Kriya (acquisition of karmas) is applicable to F Shraman-nirgranths (Jain ascetics) for two reasons, due to stupor 5 (pramad) and due to yoga (association of mind, speech and body). फफफफफ Jain Education International : तृतीय उद्देशक (445) For Private & Personal Use Only 5 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95595 8 Third Shatak: Third Lesson फ्र फ www.jainelibrary.org

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