Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 537
________________ फ़फ़55555555555555555555555555558 55555555555555555555555555555555555555 (Ans.] Gautam ! It is born among the same leshya (soul complexion) i group of Jyotishks (Stellar gods) as the leshya (hue) of the matter particles (karmas) he acquires at the time of death. For example-among those with Tejoleshya. १३. [प्र. ] जीवे णं भंते ! जे भविए वेमाणिएसु उववज्जित्तए से णं भंते ! किंलेस्सेसु उववज्जइ ? [उ. ] गोयमा ! जल्लेसाइं दव्वाइं परियाइत्ता कालं करेइ तल्लेसेसु उववज्जइ, तं जहा-तेउलेस्सेसु वा ॐ पम्हलेसेसु वा सुक्कलेसेसु वा। १३. [प्र. ] भगवन् ! जो जीव वैमानिक देवों में उत्पन्न होने वाला है, वह किस लेश्या वालों में ॥ उत्पन्न होता है ? 1 [उ. ] गौतम ! जिस लेश्या के द्रव्यों को ग्रहण करके जीव काल करता है, उसी लेश्या वालों में वह ऊ उत्पन्न होता है। जैसे-तेजोलेश्या, पद्मलेश्या अथवा शुक्ललेश्या वालों में। ____13. [Q.] Bhante ! In which leshya (soul complexion) group is born a 4 being about to die) destined to be born among Vaimanik Devs (Vehicular gods)? (Ans.] Gautam ! It is born among the same leshya (soul complexio group of Vaimanik Devs (Vehicular gods) as the leshya (hue) of the matter particles (karmas) he acquires at the time of death. For example-among those with Tejoleshya, Padmaleshya or Shuklaleshya. विवेचन : जैनदर्शन का एक निश्चित एवं अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है कि अन्तिम समय में जिस लेश्या में 卐 जीव मरता है, अर्थात् अन्तिम समय में जिस प्रकार के परिणाम, मनोभाव होते हैं, वह मरकर उसी लेश्या वाले + जीवों में उत्पन्न होता है। इसी दृष्टिकोण को लेकर शास्त्रकार ने इसी सिद्धान्त वाक्य को पुनः-पुनः दोहराया है 'जल्लेसाई दव्वाइं परिआइत्ता कालं करेइ, तल्लेसेसु उववज्जइ।' इसी सिद्धान्त को लोक भाषा में 'जैसी मति वैसी 卐 गति' कहा जाता है। यहाँ विशेष बात ध्यान देने की है कि-जो देहधारी मरणोन्मुख है, उसका मरण बिल्कुल अन्तिम उसी लेश्या में ऊ हो सकता है, जिस लेश्या के साथ उसका सम्बन्ध कम से कम अन्तर्मुहूर्त तक रहा हो। इसका अर्थ है-कोई भी मरणोन्मुख प्राणी लेश्या के साथ सम्पर्क के प्रथम पल में ही मर नहीं सकता, अपितु जब इसकी कोई अमुक लेश्या निश्चित हो जाती है, तभी वह अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करने जा सकता है और लेश्या के निश्चित होने में कम से कम अन्तर्मुहूर्त लगता है। अर्थात् लेश्याओं के परिणाम को अन्तर्मुहूर्त बीत जाने पर __ और अन्तर्मुहूर्त शेष रहने पर जीव परलोक में जाते हैं। उदाहरण रूप-ज्योतिष्क देवों में तेजोलेश्या है। जिस जीव ' ने ज्योतिष्क देव का आयुष्य बन्ध किया है, वह मृत्यु के अन्तिम समय में तेजोलेश्या के द्रव्यों को ग्रहण कर उसके भाव में परिणत होकर मरेगा और मृत्यु के पश्चात् ज्योतिष्क देव रूप में उत्पन्न होगा। उपर्युक्त तथ्य मनुष्यों और ॐ तिर्यंचों के लिए समझना चाहिए, क्योंकि उनकी लेश्याएँ बदलती रहती हैं। देवों और नारकों की लेश्या . +जीवनपर्यन्त बदलती नहीं, वह एक-सी रहती है। अतः कोई भी देव या नारक अपनी लेश्या का अन्त आने में 5 卐5555555555555555555555555555555555555555555558 | तृतीय शतक : चतुर्थ उद्देशक (467) Third Shatak: Fourth Lesson Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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