Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 549
________________ [प्र. २ ] से भंते ! किं आयड्डीए गच्छति, परिड्डीए गच्छति ? [उ. ] गोयमा ! आयड्डीए गच्छइ, नो परिडीए गच्छइ। [प्र. २ ] भगवन् ! क्या वह (इतने योजन तक) आत्म-ऋद्धि (अपनी शक्ति) से जाता है या पर-ऋद्धि से जाता है ? [उ. ] गौतम ! वह आत्म-ऋद्धि से जाता है, पर-ऋद्धि से नहीं जाता। (Q. 2] Bhante ! Does that sagacious ascetic (bhaavitatma anagar) move (many Yojans) with its own power or that of others ? (Ans.] He moves with his own power and not with that of others. [ ३ ] एवं आयकम्मुणा, नो परकम्मुणा। आयप्पओगेणं, नो परप्पओगेणं। [४] उस्सिओदगं वा गच्छइ पतोदगं वा गच्छइ। __ [३] इसी प्रकार वह स्वकर्म (अपनी क्रिया) से जाता है, परकर्म से नहीं; आत्म-प्रयोग से जाता है, किन्तु पर-प्रयोग से नहीं। [४] वह उच्छ्रितोदय (सीधे खड़े) रूप में भी जा सकता है और पतितोदय (पड़े हुए) रूप में भी जा सकता है। [3] In the same way he moves with his own action and not with that of others. Also he moves with his own effort and not with that of others. [4] He can move both in erect posture as well as prostrate posture. १४. [प्र. १ ] से णं भंते ! किं अणगारे आसे ? [उ. ] गोयमा ! अणगारे णं से, नो खलु से आसे। [ २ ] एवं जाव परासररूवं वा। १४. [प्र. १ ] भगवन् ! वह अश्वरूपधारी भावितात्मा अनगार, क्या (अश्व की विक्रिया के समय) अश्व है? [उ. ] गौतम ! (वास्तव में) वह अनगार है, अश्व नहीं। [२] इसी प्रकार पराशर (शरभ या अष्टापद) तक के रूपों के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए। 14. [Q. 1] Bhante ! (At that time) is that sagacious ascetic $ (bhaavitatma anagar) in the form of a horse, actually a horse ? __[Ans.] Gautam ! He is, in fact, an ascetic and not a horse. [2] All these fi details should be repeated for other forms up to Parashar. विवेचन : प्रस्तुत तीनों सूत्रों का सार इस प्रकार हैम (१) भावितात्मा अनगार विद्या आदि के बल से बाह्य पुद्गलों को ग्रहण किये बिना अश्वादि रूपों का है अभियोजन नहीं कर सकता। (२) अश्वादि रूपों का अभियोजन करके वह अनेकों योजन जा सकता है, पर ))))))))))555555555555555555555555 卐))))))) (479) Third Shatak: Fifth Lesson तृतीय शतक : पंचम उद्देशक 35555 555555555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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