Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 544
________________ 85555555555555555555555555555555555555 । भावियप्पा केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहहिं इत्थीरूवेहिं आइण्णं वितिकिण्णं। जाव एस णं गोयमा ! । # अणगारस्स भावियप्पणो अयमेयारूवे विसए विसयमेत्ते बुइए, नो चेव णं संपत्तीए विकुव्विंसु वा विउव्वति । वा विउव्विस्सति वा। एवं परिवाडीए नेयव्वं जाव संदमाणिया। ३. [प्र. ] भगवन् ! भावितात्मा अनगार, कितने स्त्रीरूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ है ? म [उ. ] गौतम ! जैसे कोई युवक, अपने हाथ से युवती के हाथ को (भय या काम की विह्वलता के ! # समय दृढ़तापूर्वक) पकड़ लेता है, अथवा जैसे चक्र (पहिये) की धुरी (नाभि) आरों से युक्त (संलग्न) । म होती है, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी वैक्रियसमुद्घात से समवहत होकर सम्पूर्ण जम्बूद्वीप नामक । द्वीप को, बहुत-से स्त्रीरूपों से आकीर्ण (व्याप्त), व्यतिकीर्ण (विशेषरूप से परिपूर्ण रूप में) कर सकता है; यावत् (ठसाठस भर सकता है।) हे गौतम ! भावितात्मा अनगार का यह विषय (शक्ति) है, विषयमात्र है; उसने इतनी वैक्रिय शक्ति सम्प्राप्त होने पर भी कभी इतनी विक्रिया की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं। इस प्रकार परिपाटी से (क्रमशः) यावत् स्यन्दमानिका-सम्बन्धी रूपविकुर्वणा करने में तक जानना चाहिए। 3. [Q.] Bhante ! How many such woman-forms a sagacious ascetic (bhaavitatma anagar) is capable of creating by transmutation (vikurvana)? [Ans.) Gautam ! Employing the process of Vaikriya Samudghat a A sagacious ascetic can pervade (akirna), merge (vyatikirna)... and so on up to... tightly pack (gaadhavagaadh) the whole of Jambudveep continent with numerous woman-forms, exactly like a young man tightly holding 4 the hand of a young woman or like the spokes of a wheel tightly held by _its axle. However, Gautam ! This great power of a sagacious ascetic (bhaavitatma anagar) is theoretical. In practice, in spite of acquiring f such power of transmutation, he has never performed transmutation to aforesaid extant, neither he does, nor will he do. The same statement about transmutation should be repeated in proper order up to i syandamanika (large palanquin). ४. [प्र. ] से जहानामए केइ पुरिसे असिचम्मपायं गहाय गच्छेज्जा एवामेव अणगारे णं भावियप्पा - असि-चम्मपायहत्थ-किच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पइज्जा ? # [उ. ] हंता, उपइज्जा। ४. [प्र. ] (भगवन् !) जैसे कोई पुरुष (किसी कार्यवश) तलवार और चर्मपात्र (ढाल अथवा म्यान) में हाथ में लेकर जाता है, क्या उसी प्रकार कोई भावितात्मा अनगार भी तलवार और ढाल (अथवा म्यान) के हाथ में लिए हुए किसी कार्यवश (संघ आदि के प्रयोजन से) स्वयं आकाश में ऊपर उड़ सकता है ? # [उ. ] हाँ, (गौतम !) वह ऊपर उड़ सकता है। ܡܡܡܡܡܡܡܡܡܡܡܡܡ ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת भगवतीसूत्र (१) (474) Bhagavati Sutra (1) 1॥॥॥ ॥ ॥॥4 ) ) ))))) ))))))) www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

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