Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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5555555555555555555555555555 ध्यानादि-) करके, क्या (शीलव्रतादि या प्रतिलेखन-प्रमार्जन आदि धर्मक्रियाओं का-) सम्यक् आचरण करके, अथवा किस तथारूप श्रमण या माहन के पास से एक भी आर्य (तीर्थंकरोक्त) एवं धार्मिक सुवचन सुनकर तथा हृदय में धारण करके (पुण्य-पुँज का उपार्जन किया), जिस (पुण्य-प्रताप) से देवेन्द्र देवराज ईशानेन्द्र ने वह दिव्य देव-ऋद्धि उपलब्ध की है, प्राप्त की है और अभिमुख की है ?
[उ. ] गौतम ! उस काल उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भारतवर्ष में ताम्रलिप्ती नाम की नगरी थी। उस ताम्रलिप्ती नगरी में तामली नाम का मौर्यपुत्र (मौर्यवंश में उत्पन्न) गृहपति (गृहस्थ) रहता था। वह धनाढ्य था, दीप्तिमान (तेजस्वी) था, और बहुत-से मनुष्यों द्वारा अपराभूत (नहीं दबने वाला) था।
24. (Q.) "Bhante ! How did Ishanendra, the overlord (Indra) of gods acquire and manifest (abhimukh) that divine opulence, radiance and influence? Who was he in the past birth? What was his name and clan name (gotra) ? In which village, city... and so on up to... inhabited area did he live ? What (noble words) did he hear ? What did he give (charity) ? What did he eat (dry and drab food) ? What deed did he perform (austerities, meditation etc.) ? What conduct did he properly follow (vows, critical review and other religious rituals) ? And what religious and noble words he listened to and accepted from a sagacious Shraman or Brahmin (to acquire heaps of meritorious karmas)? By dint of which (meritorious karma's) that Ishanendra, the overlord (Indra) of gods got endowed with and manifested such divine opulence and power ?
[Ans.] Gautam ! During that period of time there was a city named Tamralipti in Bharat-varsh in this Jambu continent. In that Tamralipti city lived a householder (gathapati) named Tamali born in Maurya clan. He was very rich brilliant and insuperable (aparabhoot; due to his status and influence he could not be insulted, ignored or belittled) by one or more adversaries.
२५. तए णं तस्स मोरियपुत्तस्स तामलिस्स गाहावतिस्स अनया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थियए जाव समुप्पज्जित्था-"अस्थि ता मे पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणे फलवित्तिविसेसे जेणाहं हिरण्णेणं बड्ढामि, सुवण्णेणं वड्ढामि, धणेणं वड्ढामि, धनेणं वड्ढामि, पुत्तेहिं वड्ढामि, पसूहि वड्ढामि, विउल धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसारसावतेज्जेणं अतीव अतीव अभिवडूढामि।
तं किं णं अहं पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं जाव कडाणं कम्माणं एगंतसोक्खखयं उवेहेमाणे विहरामि ? तं जाव च णं मे मित्त-नाति-नियग-संबंधिपरियणो आढाति परियाणाइ सक्कारेइ सम्माणेइ कल्लाणं | तृतीय शतक : प्रथम उद्देशक
(371)
Third Shatak : First Lesson | जम ए
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