Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 451
________________ F goddesses from Capital city Balichancha knowing that you, beloved of gods, had died and reincarnated in Ishan Kalp as king of gods, turned Ff blind with anger... and so on up to ... dragging the corpse recklessly as they pleased, they threw it at a forlorn place. Then they returned back in the direction they came from. 5 F त 5555555555555***************5E FEE ३७. तए णं से ईसाणे देविंदे देवराया तेसिं ईसाणकप्पवासीणं बहूणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य अंतिए एयमटं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे तत्थेव सयणिज्जवरगए तिवलियं भिउडिं निडाले साहट्टु बलिचंचं रायहाणिं अहे सपक्खिं सपडिदिसिं समभिलोएइ, तए णं सा बलिचंचा रायहाणी 5 ईसाणेणं देविंदेणं देवरण्णा आहे सपक्खिं सपडिदिसिं समभिलोइया समाणी तेणं दिव्वप्यभावेणं इंगालब्भूया फ मुम्मुरब्भूया छारिब्भूया तत्तकवेल्लकब्भूया तत्ता समजोइन्भूया जाया यावि होत्था । 5 F त 卐 卐 37. On hearing this from those numerous Vaimanik gods and 5 goddesses from Ishan Kalp, and thinking about it, Ishanendra, the Indra 5 (overlord) of Devs (gods) was soon enraged... and so on up to ... gnashing 卐 their teeth in anger. While still on his divine bed Ishanendra frowned, making three lines appear on his forehead. He then focused, from four 5 cardinal direction (sapaksh) and four intermediate directions 5 (sapratidik), and fixed his gaze down upon the capital city Balichancha. Due to his divine power of that angry gaze, the capital city Balichancha started burning and it looked like burning coal, sparks of fire, seething f ash, scorching sand, red hot plate and pan, and a burning pyre. म Б ३८. तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमार देवा य देवीओ य तं बलिचंचं रायहाणिं इंगालब्भूयं जाव समजोतिन्भूयं पासंति, पासित्ता भीया तत्था तीसया उब्विग्गा संजायभया सव्वओ समंता आधावेंति परिधावेंति, अन्त्रमन्त्रस्स कायं समतुरंगेमाणा चिट्ठति । ३७. उस समय ईशानकल्प के देवेन्द्र देवराज उन ईशानकल्पवासी बहुत-से वैमानिक देवों और देवियों से यह बात सुनकर और मन में विचारकर शीघ्र ही क्रोध से आगबबूला हो उठा, यावत् क्रोधाग्नि से तिलमिलाता हुआ, वहीं देवशय्या स्थित हुए ईशानेन्द्र ने ललाट पर तीन रेखाएँ डालकर एवं भ्रकुटि तानकर ( भौंहें चढ़ाकर ) बलिचंचा राजधानी को नीचे ठीक सामने, सपक्ष- (चारों दिशाओं से 5 बराबर सम्मुख) और सप्रतिदिक् (चारों विदिशाओं से भी एकदम सम्मुख) होकर एकटक दृष्टि से देखा । சு इस प्रकार कुपित दृष्टि से बलिचंचा राजधानी को देखने से वह (राजधानी) उस दिव्य प्रभाव से जलते हुए अंगारों के समान, अग्नि- कणों के समान, तपी हुई राख के समान, तपतपाती बालू जैसी या तपे 5 गर्म तवे यात काही सरीखी और साक्षात् अग्नि की राशि जैसी हो गई, जलने लगी। 卐 卐 ३८. जब बलिचंचा राजधानी में रहने वाले बहुत से असुरकुमार देवों और देवियों ने उस बलिचंचा राजधानी को अंगारों सरीखी यावत् साक्षात् अग्नि की लपटों जैसी देखी तो वे उसे देखकर तृतीय शतक : प्रथम उद्देशक 卐 (389) Jain Education International 卐 卐 फ्र 卐 फ्र फ्र Third Shatak: First Lesson For Private & Personal Use Only 卐 फ्र 卐 फ्र फ्र 卐 卐 फफफफ 5 卐 卐 www.jainelibrary.org

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