Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 481
________________ 855555555555555555555 5 553 26. On being asked thus by Chamarendra, the overlord (Indra) of 4 Asurs, the gods of his Samanik Sabha (gods having same status) were very pleased and contented. With pleasure and contentment they joined their palms bringing all the ten nails together, waved them overhead and touched their forehead before greeting Chamrendra with hails of victory. After that they said-"Beloved of gods ! This is Shakrendra, the 4. overlord of gods who is enjoying divine pleasures." ॐ २७. तए णं से चमरे असुरिंदे असुरराया तेसिं सामाणियपरिसोववन्नगाणं देवाणं अंतिए एयमटुं ॐ सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे ते सामाणियपरिसोववन्नए देवे एवं वयासी-'अन्ने खलु भो ! से सक्के देविंदे देवराया, अन्ने खलु भो ! से चमरे असुरिंदे असुरराया, महिड्डीए ॐ खलु से सक्के देविंदे देवराया, अप्पिडीए खलु भो ! से चमरे असुरिंदे असुरराया। तं इच्छामि गं देवाणुप्पिया ! सक्कं देविंदं देवरायं सयमेव अच्चासाइत्तए' त्ति कटु उसिणे उसिणभूए याऽवि होत्था। 卐 २७. तत्पश्चात् उन सामानिक परिषद् के देवों का उत्तर सुनकर मन में अवधारण करके वह असुरेन्द्र असुरराज चमर शीघ्र ही क्रुद्ध (लाल-पीला), रुष्ट, कुपित एवं चण्ड, रौद्र आकृतियुक्त हुआ और क्रोधावेश में आकर बड़बड़ाने लगा। फिर उसने सामानिक परिषद् के देवों से इस प्रकार कहा-'अरे ! वह क देवेन्द्र देवराज शक्र कोई दूसरा है, और यह असुरेन्द्र असुरराज चमर कोई दूसरा है ! देवेन्द्र देवराज शक्र तो महाऋद्धि वाला है। जबकि असुरेन्द्र असुरराज चमर अल्पऋद्धि वाला ही है, (यह सब मैं जानता हूँ, # फिर भी मैं इसे कैसे सहन कर सकता हूँ ?) अतः हे देवानुप्रियो ! मैं चाहता हूँ कि मैं स्वयमेव (अकेला ही) म उस देवेन्द्र देवराज शक्र को उसके स्वरूप-(पद या शोभा) से भ्रष्ट कर दूं।' यों कहकर वह चमरेन्द्र (कोपवश) उष्ण-(उत्तप्त) हो गया, उष्णभूत-(अस्वाभाविक रूप से उत्तेजित) हो उठा। 27. On hearing and understanding the reply from the gods born in his Samanik Sabha, that Chamarendra, the overlord (Indra) of Asurs soon became angry and enraged. He lost his temper and looked dreadful. In fit of anger he started jabbering. He then said to the gods of his Samanik Sabha-"Hey! That is some other Shakrendra, the king of gods and that is some other Chamarendra, the overlord (Indra) of Asurs. That Shakrendra, the king of gods is endowed with great opulence and in comparison Chamarendra, the overlord (Indra) of Asurs is, indeed, endowed with lesser opulence. (I am aware of all this. Still, how can I tolerate it ?) Therefore, O Beloved of gods ! I, on my own, want to dislodge this Shakrendra, the king of gods from his present state (of grandeur and status)." Uttering these words that Chamrendra became 4i agitated (ushna) and enraged (ushnabhoot). २८. (क) तए णं से चमरे असुरिंदे असुरराया ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता ममं ओहिणा आभोएइ, ॐ आभोएत्ता इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था-'एवं खलु समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे दीवे भारहे 8$$$$$$$$5$$$$$$$$ 555555555555555555 B5555555555555 | तृतीय शतक : द्वितीय उद्देशक (419) Third Shatak : Second Lesson 内牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙岁岁岁岁岁步步步牙牙牙牙牙%%%%%% Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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