Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 477
________________ )) )) ) ) ) ))) ) ) ) 11 bowl to crows and dogs. I will give whatever alms are collected in the 45 third compartment of my bowl to fish and turtles. Lastly, I will eat whatever alms are collected in the fourth compartment of my bowl." With this resolve, after two days of fasting, when the night ended and sun arose he would follow the aforesaid procedure and eat whatever Hi alms were collected in the fourth compartment of his bowl. २१. तए णं से पूरणे बालतवस्सी तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं बालतवोकम्मेणं तं चेव जाव बेभेलस्स सनिवेसस्स मझंमज्झेणं निग्गच्छति, निग्गच्छित्ता पाउयकुंडियमादीयं उवकरणं चउप्पुडयं च दारुमयं पडिग्गहं एगंतमंते एडेइ, एडित्ता बेभेलस्स सन्निवेसस्स दाहिणपुरथिमे दिसीभागे + अद्धनियत्तणियमंडलं आलिहित्ता संलेहणा-झूसणाझूसिए भत्त-पाणपडियाइक्खिए पाओवगमणं निवण्णे।। * २१. तदनन्तर पूरण बाल-तपस्वी उस उदार, विपुल, प्रदत्त और प्रगृहीत बाल-तपश्चरण के के कारण शुष्क एवं रूक्ष हो गया। (यहाँ बीच का सारा वर्णन तामली तापस की तरह जानना चाहिए) यावत् वह (पूरण बाल-तपस्वी) भी 'बेभेल' सन्निवेश के बीचोंबीच होकर निकला। निकलकर उसने पादुका (खड़ाऊ) और कुण्डी आदि उपकरणों को तथा चार खानों वाले काष्ठपात्र को एकान्त प्रदेश में 5 छोड़ दिया। फिर बेभेल सन्निवेश के अग्निकोण (दक्षिण-पूर्व दिशाविभाग) में अर्द्ध-निर्वर्तनिक मण्डल A (आधे शरीर प्रमाण रेखा खींचकर) बनाया, उसे साफ किया, यों मण्डल बनाकर उसने संलेखना की 5 जूषणा (आराधना) से अपनी आत्मा को सेवित, किया। फिर यावज्जीवन आहार-पानी का प्रत्याख्यान करके उस पूरण बाल-तपस्वी ने पादपोपगमन अनशन-(संथारा) स्वीकार किया। h 21. Then, as a consequence of the said naive austerity (baal-tap); that fi was free of expectations (udaar), extended (vipul), consented by the guru 1 (pradatt), and observed with great devotion (pragrihit); that naive-hermit # Puran became dehydrated and haggard. (detailed description should be read as that of Tamali Tapas)... and so on up to... He moved through the heart of Bebhel and deposited his sandals, bowls and other belongings at fi some forlorn spot. After doing that he went towards south-east of Bebhel. f. There he selected, demarcated and cleaned a limited area (equivalent to the dimensions of half his body). Puran hermit then spent his time enriching his soul by observing the ultimate vow (sallekhana). He abandoned food fi and water completely and commenced the padapopagaman santhara (fast fiunto death lying still like a severed branch of tree). २२. तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा ! छउमत्थकालियाए एक्कारसवासपरियाए छटुंछट्टेणं म अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे पुव्वाणुपुरि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे * जेणेव सुंसुमारपुरे नगरे जेणेव असोगवणसंडे उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे जेणेवे पुढविसिलावट्टए तेणेव म उवागच्छामि, असोगवरपायवस्स हेट्ठा पुढविसिलावट्टयंसि अट्ठमभत्तं पगिण्हामि, दो वि पाए साहटु )) FFFFFFFFFFFFhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh hhhhhhh ) ) 卐5555))))))) तृतीय शतक : द्वितीय उद्देशक (415) Third Shatak : Second Lesson 3555555555555555555555555995))))158 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662