Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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55555555555555555555555555555555558 fi opulence (came to pay homage and obeisance to Bhagavan)... and so on fi up to... went away in the direction from which he came. (For the detailed
description of arrival of Suryabh god and his dance display refer to Illustrated Rayapaseniya Sutra) कूटाकारशाला दृष्टान्त EXAMPLE OF KUTAKAR-SHALA
२३. [प्र. १] 'भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-अहो णं भंते ! ईसाणे देविंदे देवराया महिड्डीए। ईसाणस्स णं भंते ! सा दिव्या देविड्ढी कहिं # गया ? कर्हि अणुपविट्ठा ? म [उ. ] गोयमा ! सरीरं गता, सरीरं अणुपविट्ठा।
२३. [प्र. १ ] 'हे भगवन् !' इस प्रकार सम्बोधित करके भगवान गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार किया। वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार पूछा- “अहो, भगवन् ! देवेन्द्र # देवराज ईशान इतनी महाऋद्धि वाला है। भगवन् ! ईशानेन्द्र की वह (नाट्य-प्रदर्शनकालिक) दिव्य देव-ऋद्धि (अब) कहाँ चली गई ? कहाँ प्रविष्ट हो गई ?'
[उ. ] गौतम ! (ईशानेन्द्र द्वारा प्रदर्शित) वह दिव्य देव-ऋद्धि (उसके) शरीर में चली गई, शरीर में प्रविष्ट हो गई है।
23. [Q. 1] “Bhante !" Addressing thus Gautam Swami asked Bhagavan Mahavir after paying homage and obeisance--"Bhante ! Ishanendra, the overlord (Indra) of gods is endowed with so great opulence. Bhante !
Where did that divine (display of) opulence (created by Ishanendra).go fi and disappear (now) ?"
(Ans.) “Gautam ! The divine opulence (displayed by Ishanendra) was fi drawn into and disappeared within his own body.
[प्र. २ ] से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चति सरीरं गता, सरीरं अणुपविट्ठा ?
[उ. ] गोयमा ! से जहानामए कूडागारसाला सिया दुहओ लित्ता गुत्ता गुत्तदुवारा णिवाया णिवायगंभीरा, तीसे णं कूडागारसालादिटुंतो भाणियव्यो।
[प्र. २ ] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि वह दिव्य देव-ऋद्धि शरीर में चली गई और शरीर में प्रविष्ट हो गई?
[उ. ] गौतम ! जैसे कोई कूटाकार (शिखर के आकार की) शाला हो, जो दोनों तरफ से गोबर आदि से लीपी हुई हो, गुप्त हो, गुप्त-द्वार वाली हो, निर्वात हो, वायुप्रवेश से रहित गम्भीर (ऊँडी) हो, 5 यावत् ऐसी कूटाकारशाला का दृष्टान्त (यहाँ) कहना चाहिए।
(पूर्वोक्त) कूटाकारशाला दृष्टान्त-जैसे शिखराकार अथवा वर्तुलाकार शाला जिसके ऊपर का भाग 5 शिखर जैसा प्रतीत हो। कोई शाला हो और उसके पास बहुत-से मनुष्य खड़े हों, इसी बीच आकाश में
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1 | तृतीय शतक : प्रथम उद्देशक
(369)
Third Shatak: First Lesson
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