Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 448
________________ 卐 )))))))))55555555555555555 95555555558 55555 听听听听听听听听听听听听听听FFFFFFFFFFFFFFFFFFFF तत्काल उत्पन्न वह देवेन्द्र देवराज ईशान, आहारपर्याप्ति से लेकर यावत् भाषा-मनःपर्याप्ति तक, पंचविध ! पर्याप्तियों से पर्याप्तिभाव को प्राप्त हुआ। 34. During that period of time Ishan Dev Lok was without an Indra (overlord) and a Purohit (the priest-god). At that time naive-hermit Tamali, who led tapas (hermit) life for complete sixty thousand years enkindling his soul by taking the ultimate vow (sallekhana) of two month duration, avoiding one hundred twenty meals, died at the time of 4 death and reincarnated in Ishan Dev Lok. Covered by a divine cloth 41 (Dev-dushya) in the divine bed (Dev-shayaniya) in the divine hall of birth (upapat sabha) in the Ishanavatamsak Vimaan (celestial vehicle). In absence of the Indra there he has taken birth as Devendra Ishan the 卐 Indra (overlord) of Devs (gods) and having space occupation (avagahana) of innumerable fraction of an Angul. That instantaneously born 45 Devendra Ishan the Indra (overlord) of Devs (gods) attained the state of full development (paryapti bhaava) through five kinds of full development (paryapti) namely, aahaar (food) paryapti... and so on up to... bhasha-man (speech and mind) paryapti. ॐ असुरों द्वारा तामली के शव की कदर्थना DISRESPECT OF TAMALI'S DEAD-BODY BY ASURS ३५. तए णं बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तामलिं बालतवस्सिं : ॐ कालगयं जाणित्ता ईसाणे य कप्पे देविंदत्ताए उववन्नं पासित्ता आसुरुत्ता कुविया चंडिक्किया मिसिमिसेमाणा बलिचंचाए रायहाणीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता ताए उक्किट्ठाए, जाव जेणेव भारहे वासे जेणेव तामलित्ती नयरी जेणेव तामलिस्स बालतवस्सिस्स सरीरए तेणेव उवागच्छंति। वामे पाए सुंबेणं + बंधति, बंधित्ता तिक्खुत्तो मुहे उट्ठहंति। म तामलित्तीए नगरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु आकड्ढ-विकड्ढेि करेमाणा महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणा उग्धोसेमाणा एवं वयासि-'केस णं भो ! से तामली बालतवस्सी सयंगहियलिंगे पाणामाए पव्वज्जाए पव्वइए ! केस णं से ईसाणे कप्पे ईसाणे देविंद देवराया' इति कटु तामलिस्स बालतवस्सिस्स सरीरयं हीलंति निंदंति खिंसंति गरिहंति अवमन्नंति तज्जंति ताति ॐ परिवहेंति पव्वहेंति आकड्ढ-विकडिं करेंति, हीलेत्ता जाव आकड्ढ-विकडिं करेत्ता एगंते एउंति, जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया। ३५. उस समय बलिचंचा-राजधानी के निवासी बहुत-से असुरकुमार देवों और देवियों ने जब म यह जाना कि तामली बाल-तपस्वी कालधर्म को प्राप्त हो गया है और ईशानकल्प में वहाँ के देवेन्द्र के - रूप में उत्पन्न हुआ है, तो यह जानकर वे एकदम क्रोध आवेश से मूढ़मति हो गये, (क्रोध से भड़क उठे) , वे अत्यन्त कुपित हो गये, उनके चेहरे क्रोध से भयंकर उग्र रौद्र रूप हो गये, वे क्रोध की आग से , भगवतीसूत्र (१) (386) Bhagavati Sutra (1) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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