Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 408
________________ 卐 卐 5 9. “Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is so ” With these words the f third Gautam, ascetic Vayubhuti, paid homage and obeisance to Shraman Bhagavan Mahavir. After paying homage and obeisance, he went where the second Gautam, ascetic Agnibhuti, was seated. Coming near, he paid homage and obeisance to the second Gautam, ascetic Agnibhuti and sought his forgiveness again and again with great 卐 sincerity and humility (for failing to accept his statement). 卐 சு 卐 फफफफफ க 卐 卐 卐 फ्र भूत अनगार को वन्दन - नमस्कार किया और पूर्वोक्त बात के लिए ( उनकी कही हुई बात नहीं 5 मानी थी, इसके लिए) उनसे सम्यक् प्रकार से विनयपूर्वक बार-बार क्षमायाचना की । विवेचन : दो दृष्टान्तों द्वारा स्पष्टीकरण - चमरेन्द्र वैक्रियकृत बहुत-से असुरकुमार देव - देवियों से इस सम्पूर्ण 卐 5 जम्बूद्वीप को किस प्रकार ठसाठस भर देता है ? इसकी सघनता को स्पष्ट करने के लिए यहाँ दो दृष्टान्त दिये गये फ्र हैं-वृत्तिकार ने इनकी व्याख्या इस प्रकार की है - (१) जैसे कोई युवापुरुष कामोद्रेक की अवस्था में युवती का हाथ दृढ़ता से पकड़ता है, वैसे ही वैक्रिय शक्ति द्वारा निर्मित रूप सम्पूर्ण जम्बूद्वीप में सघन रूप में फैल जाते हैं। (२) जैसे गाड़ी के पहिये की धुरी चारों ओर आरों से सम्बद्ध रहती है, वैसे ही सम्पूर्ण जम्बूद्वीप वैक्रिय रूपों से व्याप्त हो जाता है। वृद्ध आचार्यों ने इस प्रकार व्याख्या की है - जैसे-यात्रा (मेले) आदि में जहाँ बहुत भीड़ होती है, वहाँ युवती स्त्री युवा पुरुष के हाथ को दृढ़ता से पकड़कर उसके साथ संलग्न होकर चलती हुई भी उस पुरुष से पृथक् दिखाई देती है, वैसे ही वैक्रियकृत अनेक रूप वैक्रियकर्ता मूल पुरुष के साथ संलग्न होते. हुए 5 उससे पृथक् दिखाई देते हैं । अथवा अनेक आरों से जुड़ी पहिये की धुरी सघन (पोलरहित ) और छिद्ररहित दिखाई देती है; इसी तरह से वह असुरेन्द्र असुरराज चमर अपने शरीर के साथ प्रतिबद्ध ( संलग्न) वैक्रियकृत अनेक असुरकुमार देव-देवियों से पृथक् दिखाई देता हुआ इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को ठसाठस भर देता है। इ प्रकार अन्य देवों की विकुर्वणा - शक्ति के विषय में समझ लेना चाहिए। वैक्रिय - समुद्घात में क्या रत्नादि औदारिक पुद्गलों का ग्रहण होता है ? इसका समाधान यह है कि वैक्रिय-समुद्घात में ग्रहण किये जाने वाले रत्न आदि पुद्गल औदारिक नहीं होते, वे रत्न-सदृश सारयुक्त होते कुछ आचार्यों के मतानुसार रत्नादि औदारिक पुद्गल भी वैक्रिय-समुद्घात द्वारा ग्रहण करते समय वैक्रिय पुद्गल बन जाते हैं। (भगवतीसूत्र : विवेचन, पं. घेवरचन्द जी, भाग २, पृष्ठ ५३९) Elaboration-Explanation with two examples-How does Chamarendra fill Jambu Dveep with numerous transmuted Asur Kumar gods and goddesses? Two examples have been given to convey the compact nature of this crowding. The commentator (Vritti) has elaborated them as follows-(1) As a lusty young man tightly holds the hand of a young woman, in the same way the forms created by Vaikriya power compactly fill the whole Jambu Dveep. (2) As the spokes of a wheel tightly held by its axle, in the same way the Vaikriya forms tightly envelope the whole Jambu Dveep. The senior acharyas have explained as follows-In a crowded fair a young woman holds the hand of her male companion and walks in his close proximity, but is still separately भगवतीसूत्र (१) (350) Jain Education International 2559595955555 5 5555955555595555559555555595555 5 5 52 young फ्र ததததததமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிதிமிமிமிமிமிமிமிமிமிததி For Private & Personal Use Only Bhagavati Sutra (1) 卐 फ्र फ्र फ्र www.jainelibrary.org

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