Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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5 नागकुमारेन्द्र धरण आदि की ऋद्धि OPULENCE OF NAAGKUMARENDRA DHARAN
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११. [ प्र. ] तए णं से दोच्चे गोयमे अग्गिभूती अणगारे समणं भगवं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी-जइ णं भंते ! बली वइरोयणिंदे वइरोयणराया एमहिड्ढीए जाव एवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए धरणं भंते! नागकुमारिंदे नागकुमारराया केमहिड्ढीए जाव केवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए ?
सामाणिय- तायत्तीस - लोगपाला अग्गमहिसीओ य तहेव जहा चमरस्स । नवरं संखिज्जे दीव - समुद्दे भाणियव्यं । एवं जाव थणियकुमारा, वाणमंतर - जोतिसिया वि । नवरं दाहिणिल्ले सव्वे अग्गिभूती पुच्छति, 5 उत्तरिल्ले सब्वे वाउभूती पुच्छइ ।
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११. [ प्र. ] तत्पश्चात् द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन - F नमस्कार किया । वन्दन - नमस्कार करके इस प्रकार कहा- 'भगवन् ! यदि वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि
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इस प्रकार की महाऋद्धि वाला है यावत् विकुर्वणा करने में इतनी सामर्थ्य है, तो भगवन् ! नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण कितनी बड़ी ऋद्धि वाला है ? यावत् कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है ?'
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[ उ. ] गोयमा ! धरणे णं नागकुमारिंदे नागकुमारराया एमहिड्ढीए जाव से णं तत्थ चोयालीसाए भवणावाससयसहस्साणं, छण्हं सामाणियसाहस्सीणं, तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं, चउन्हं लोगपालाणं, छण्हं फ्र 6 अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिन्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवईणं, चउवीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीणं, अन्नेसिं च जाव विहरइ । एवइयं च णं पभू विउव्वित्तए - से जहानामए जुवई जुवाणे # जाव पभू केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं जाव तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे बहूहिं नागकुमारीहिं जाव विउव्विस्संति वा ।
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[उ.] गौतम ! वह नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरणेन्द्र महान् ऋद्धि वाला है, यावत् वह चवालीस लाख भवनावासों पर, छह हजार सामानिक देवों पर, तेतीस त्रायस्त्रिंशक देवों पर, चार लोकपालों पर, 5 परिवार सहित छह अग्रमहिषियों पर, तीन सभाओं पर, सात सेनाओं पर, सात सेनाधिपतियों पर और Б
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चौबीस हजार आत्मरक्षक देवों पर तथा अन्य अनेक दक्षिण दिशावर्ती नागकुमार देवों और देवियों पर 5 आधिपत्य करता हुआ रहता है। उसकी विकुर्वणा - शक्ति इतनी है कि जैसे युवा पुरुष, युवती स्त्री के कर-ग्रहण करके अथवा गाड़ी के पहिये की धुरी में संलग्न आरों के दृष्टान्त से वह अपने द्वारा वैक्रियकृत # बहुत से नागकुमार देवों और नागकुमार देवियों से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को भरने में समर्थ है और तिर्यग्लोक 5 के संख्येय द्वीप - समुद्रों जितने स्थल को भरने की शक्ति वाला है । परन्तु यह उसकी शक्तिमात्र है, फ क्रियारहित विषय है, किन्तु ऐसा उसने कभी किया नहीं, करता नहीं और भविष्य में करेगा भी नहीं ।
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धरणेन्द्र के सामानिक देव, त्रायस्त्रिंशक देव, लोकपाल और अग्रमहिषियों की ऋद्धि आदि तथा
वैक्रिय शक्ति का वर्णन चमरेन्द्र के वर्णन की तरह कहना चाहिए । विशेषता इतनी है कि इन सबकी 5 विकुर्वणा-शक्ति संख्यात द्वीप- समुद्रों तक के स्थल को भरने की समझनी चाहिए। इसी तरह स्तनितकुमारों तक सभी भवनपति देवों, वाणव्यन्तर एवं ज्योतिष्क देवों (के इन्द्र और उनके अधीनस्थ देववर्ग की ऋद्धि आदि तथा विकुर्वणा - शक्ति) के सम्बन्ध में जानना चाहिए। विशेष यह है कि दक्षिण दिशा के सभी इन्द्रों के विषय में द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार प्रश्न पूछते हैं और उत्तर दिशा के सभी इन्द्रों के विषय में तृतीय गौतम वायुभूति अनगार प्रश्न करते हैं।
तृतीय शतक : प्रथम उद्देशक
Third Shatak: First Lesson
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