Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
View full book text
________________
5
फ
F
फ्र
LELE LE LE LE LE LE LE LE LE LE LE LE LE LE LE LE LE
५. [ प्र. १ ] से भंते ! किं आयाए अवक्कमइ ? अणायाए अवक्कमइ ?
[उ.] गोयमा ! आयाए अवक्कमइ, णो अणायाए अवक्कमइ ।
५. [ प्र. १ ] भगवन् ! क्या जीव आत्मा (स्व) से अपक्रमण करता है अथवा अनात्मा (पर) से करता है ?
[उ.] गौतम ! आत्मा से अपक्रमण करता है, अनात्मा से नहीं करता ।
5. [Q. 1] Bhante ! Does a living being do this downward movement by soul (atma or self) or non-soul (anatma or the other ) ?
[Ans.] Gautam ! He does this downward movement by soul (atma or y self) and not by non-soul (anatma or the other) ?
[प्र. २ ] मोहणिज्जं कम्मं वेदेमाणे से कहमेयं भंते ! एवं ?
उ.] गोयमा ! पुव्विं से एवं एवं रोयइ इदाणिं से एवं एवं नो रोयइ, एवं खलु एवं एवं ।
[प्र. २ ] भगवन् ! मोहनीय कर्म को वेदता हुआ यह (जीव ) इस प्रकार क्यों होता है अर्थात् अपक्रमण क्यों करता है ?
[Ans.] Gautam ! Earlier he had a liking for this (Word of the Jina ) but now he does not have that liking. For this reason he moves downward. विवेचन : मोहनीय का प्रासंगिक अर्थ यहाँ मोहनीय कर्म का अर्थ साधारण मोहनीय नहीं, अपितु 'मिथ्यात्वमोहनीय कर्म' विवक्षित है। श्री गौतम स्वामी का आशय यह है कि कई अज्ञानी भी उपस्थान क्रिया5 परलोक के लिए बहुत उग्र एवं कठोर क्रिया करते हैं अतः क्या वे मिथ्यात्व का उदय होने पर भी परलोक 5 साधन के लिए क्रिया करते हैं या मिथ्यात्व के अनुदय से ? भगवान का उत्तर स्पष्ट है कि मिथ्यात्व मोहनीय का उदय होने पर जीव परलोक सम्बन्धी क्रिया करते हैं।
F
[.] गौतम ! पहले उसे इस प्रकार - (जिनेन्द्र भगवान द्वारा कथित तत्त्व) रुचता है और अब उसे 4 इस प्रकार नहीं रुचता; इस कारण यह अपक्रमण करता है।
५
[Q. 2] Bhante ! While experiencing mohaniya karma (deluding karma ) ५ why does this happen to a living being (why does he move downward)?
वीर्य तीन प्रकार का है - बालवीर्य, पण्डितवीर्य और बाल - पण्डितवीर्य । जो मिथ्यादृष्टि एवं अज्ञानी है, वह बाल है, उसका वीर्य ( पुरुषार्थ) बालवीर्य है। जो जीव सर्वपापों का त्यागी है, वह पण्डित है, उसका वीर्य पण्डितवीर्य है। जिन त्याज्य कार्यों को मोहकर्म के उदय से त्याग नहीं सका, किन्तु त्यागने योग्य समझता है, वह बालपण्डित है, उसका वीर्य बाल- पण्डितवीर्य है।
उपस्थान क्रिया और अपक्रमण क्रिया-मिथ्यात्वमोहनीय का उदय होने पर जीव के द्वारा उपस्थान क्रिया बालवीर्य द्वारा ही होती है । उपस्थान की विपक्षी क्रिया अपक्रमण है। अपक्रमण क्रिया का अर्थ है- उच्च गुणस्थान से नीचे गुणस्थान को प्राप्त करना । इसका तात्पर्य यह है कि जब जीव के मिथ्यात्व का उदय हो, तब वह सम्यक्त्व से, संयम (सर्वविरति ) से, या देशविरति (संयम) से वापस मिथ्यादृष्टि बन जाता है। पण्डितवीर्यत्व
प्रथम शतक : चतुर्थ उद्देशक
फ्र
Jain Education International
hhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh फफफफ
(107)
For Private & Personal Use Only
५
First Shatak: Fourth Lesson
卐
www.jainelibrary.org