Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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5 अगरुयल हुयपज्जवा, नत्थि पुण से अंते । से त्तं दव्वओ जीवे सअंते, खेत्तओ जीवे सअंते, कालओ जीवे
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अनंते, भावओ जीवे अनंते ।
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फफफफफफफफफ
[ २ ] हे स्कन्दक ! तुम्हारे मन में यह विकल्प उठा था, कि यावत्- 'जीव सान्त है या अन्तरहित
है ?' उसका भी अर्थ (स्पष्टीकरण) इस प्रकार है- 'यावत् (१) द्रव्य से एक जीव अन्त - सहित है । ( २ )
क्षेत्र से जीव असंख्य प्रदेश वाला है और असंख्य प्रदेशों का अवगाहन किये हुए है, अतः वह 5 अन्त - सहित है। (३) काल से ऐसा कोई काल नहीं था, जिसमें जीव न था, यावत् जीव नित्य है, अन्तरहित है। (४) भाव से जीव अनन्त ज्ञानपर्यायरूप है, अनन्त दर्शनपर्यायरूप है, अनन्त चारित्रपर्यायरूप है, अनन्त गुरु- लघुपर्यायरूप है, अनन्त - अगुरु- लघुपर्यायरूप है और उसका अन्त नहीं (अन्तरहित) है। इस प्रकार द्रव्य से और क्षेत्र से जीव अन्त - सहित है, तथा काल और भाव की अपेक्षा जीव अन्तरहित है। अतः हे स्कन्दक ! जीव अन्त-सहित भी है और अन्तरहित भी है ।'
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[2] Skandak! Your mind is plagued with the doubt ... and so on up to... that 'Are the souls with or without limit?' In this regard the answer follows the same pattern. - ' ... and so on up to ... ( 1 ) In context of 5 substance (dravya) one Jiva (soul as a living being) has a limit. (2) In context of area (kshetra) Jiva (soul) has innumerable space-points 5 (pradesh) and it occupies innumerable space-points (pradesh), thus it has a limit. (3) In context of time (kaal) there was no such time when
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(guru-laghu paryaya) and non-grossness-subtleness (aguru-laghu
paryaya). It is without a limit. Thus Skandak! In context of Dravya and
Kshetra Jiva (soul) is with limit, and in context of Kaal (time) and
Bhaava (state) Jiva (soul) is without limit. Therefore Jiva (soul) is with
limit as well as without limit.
Jiva did not exist, and so on up to... nitya (perpetual). It is without 5
limit. (4) In context of state (bhaava) Jiva has infinite alternatives of
knowledge (jnana ), perception / faith (darshan) and conduct (chaaritra).
In the same way it has infinite alternatives of grossness-subtleness
सिद्धि-विषयक प्रश्न QUESTION ABOUT SIDDHI
[ ३ ] जे विय ते खंदया ! पुच्छा । दव्वओ णं एगा सिद्धी सअंता; खेत्तओ णं सिद्धी पणयालीसं
जोयणसय सहस्सा आयाम - विक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च जोयणसयसहस्साइं तीसं च
णं सिद्धी न कयावि न आसिः भावओ य जहा लोयस्स तहा भाणियव्वा । तत्थ दव्वओ सिद्धी सअंता,
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5 खेत्तओ सिद्धी सअंता, कालओ सिद्धी अणंता, भावओ सिद्धी अनंता ।
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क जोयणसहस्साइं दोन्त्रि य अउणापत्रे जोयणसए किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं, अत्थि पुण से अंते; कालओ फ्र
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द्वितीय शतक : प्रथम उद्देशक
फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ
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[ ३ ] हे स्कन्दक ! तुम्हारे मन में जो यह विकल्प उठा था कि सिद्धि (सिद्धशिला) सान्त है या अन्तरहित है ? उसका भी यह अर्थ (समाधान) है - हे स्कन्दक ! मैंने चार प्रकार की सिद्धि बताई है- 5
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Second Shatak: First Lesson
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