Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 400
________________ फफफफफफफफफफ 卐 卐 卐 卐 卐 卐 卐 卐 फफफफफफफफ 卐 gods. Of these ten, five find mention here – (1) Indra — overlord of all other classes of gods, including Samanik and endowed with great powers like Anima (power of miniaturization). (2) Samanik-other than wealth and reign they command the same status as Indra in terms of life-span, potency, retinue and comforts. (3) Trayastrinshak-they act as ministers and priests of the overlords and are 33 in number (4) Lok- 5 pal-they are protectors and supporters of people as governors different directions. (5) Atmarakshak-equipped with weapons they attend Indras as personal guards. ४. [ प्र.] जति णं भंते ! चमरे असुरिंदे असुरराया एमहिड्ढीए जाव एवइयं च णं पभू चमरस्स णं भंते ! असुर्रिदस्स असुररण्णो सामाणिया देवा केमहिड्ढीया जाव केवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए ? [उ. ] गोयमा ! चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो सामाणिया देवा महिड्ढीया जाव महाणुभागा। ते णं तत्थ साणं साणं भवणाणं, साणं साणं सामाणियाणं, साणं साणं अग्गमहिसीणं, जाव दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणा विहरंति । एमहिडूढीआ जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए अदुत्तरं च णं गोयमा ! पभू चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो एगमेगे सामाणियदेवे तिरियमसंखेज्जे दीव - समुद्दे बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य आइण्णे वितिकिण्णे उवत्थडे संथडे फुडे अवगाढावगाढे करेत्तए । एस णं गोयमा ! चमरस्स असुर्रिदस्स असुररण्णो एगमेगस्स सामाणियदेवस्स अयमेयारूवे विसए 5 विसयमेत्ते बुइए, णो चेव णं संपत्तीए विकुव्विंसु वा विकुव्वति वा विकुव्विस्सति वा । ४. [ प्र. ] भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर जब ( इतनी ) ऐसी महान ऋद्धि वाला है, इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ है, तब भगवन् ! उस असुरराज असुरेन्द्र चमर कितनी बड़ी ऋद्धि है, यावत् वे कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ हैं ? of विकुव्वित्तए, फ्र से नाम जुवति जुवाणं हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरस्सउत्ता सिया, एवामेव गोयमा ! चमरस्स असुरिंदस्स असुरण्णो एगमेगे सामाणिए देवे वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णइ, समोहणित्ता जाव दोच्चं पि वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णइ, पभू णं गोतमा ! चमरस्स असुरिंदस्स 5 असुररणो एगमेगे सामाणिए देवे केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य आइण्णं वितिकिणं उवत्थड थडं फुडं अवगाढावगाढं करेत्तए । भगवतीसूत्र (१) (344) Jain Education International फ्र 25545555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 - For Private & Personal Use Only [उ. ] गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के सामानिक देव, महती ऋद्धि वाले हैं, यावत् फ्र महाप्रभावशाली हैं। वे वहाँ अपने-अपने भवनों पर, अपने-अपने सामानिक देवों पर तथा अपनी- 5 अपनी अग्रमहिषियों पर आधिपत्य करते हुए, यावत् देवलोक सम्बन्धी भोगों का उपभोग करते हुए विचरते हैं। वे इस प्रकार की महान् ऋद्धि वाले हैं, यावत् इतनी विकुर्वणा करने में समर्थ हैं फ्र यावत् सामानिक देवों की फ्र 'गौतम ! विकुर्वणा करने के लिए असुरेन्द्र असुरराज चमर का एक-एक सामानिक देव, वैक्रिय समुद्घात द्वारा समुद्घात क्रिया करता है। यावत् दूसरी बार भी वैक्रिय समुद्घात द्वारा समवहत होता. Bhagavati Sutra (1) फ्र 卐 25 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 2 卐 www.jainelibrary.org

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